समाजवादी पार्टी आज बेशक आंतरिक कलह से जूझ रही है लेकिन एक दौर में राजनीति में मुलायम सिंह का सिक्का पुजता था. वो किंग से लेकर किंग मेकर तक की भूमिका अदा कर चुके हैं. मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक करियर में कई बुलंदियां देखीं मगर इसके साथ ही उनपर सियासी धोखे देने और परिवार-जातिवाद की राजनीति के कई आरोप लगे.
साल 1939 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में जन्में मुलायम सिंह यादव का परिवार पहले बेशक राजनीति राजनीति से न जु़ड़ा हो. लेकिन आज उनके परिवार के कण-कण में राजनीति बसती है. देश में उनके परिवार से बड़ा राजनीतिक परिवार शायद ही हो. पंचायत स्तर से लेकर संसद तक हर स्तर पर उनके परिवार के सदस्य मौजूद हैं. चलिए नज़र डालते हैं मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन से जुड़े कुछ अहम विवादों और मकामों पर.
लोहिया और चरण सिंह की विरासत
मुलायम 1967 में लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (SSP) से विधायक बने. 1968 में लोहिया की मौत के बाद मुलायम चरण सिंह के साथ आ गए. 1974 में चरण सिंह की पार्टी भारतीय कृषक दल से विधायक बने. चरण सिंह की पार्टी जब जनता पार्टी से मिली तो मुलायम उसके साथ गए. जब अलग हुई तो वापस चरण सिंह के साथ आए.
मुलायम सिंह की राजनीतिक मौकापरस्ती की मिसाल चरण सिंह की मौत के बाद दिखाई देती है. लोहिया के समाजवाद का तमगा उनके पास था. 1987 में चरण सिंह के मरने के बाद मुलायम ने लोकदल के दो हिस्से करवा दिए. किसान राजनीति की विरासत चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के हाथ से मुलायम सिंह की तरफ जाने लगी थी. इसके बाद मुलायम के उत्तर प्रदेश का सबसे कद्दावर नेता बनने का सफर टॉप स्पीड में चलने लगा. राम मंदिर में जहां भाजपा ने हिंदुत्व को भुनाया मुलायम मुस्लिम और ओबीसी के मसीहा बन गए.
दलितों का साथ और गेस्ट हाउस
यूपी में ओबीसी बनाम दलित हमेशा से एक मुद्दा था. दलितों पर अत्याचार में कुछ एक ओबीसी जातियां बदनाम रहीं. मंदिर आंदोलन और मंडल के दौर में ब्राह्मण और दूसरा सवर्ण वर्ग नेताजी के साथ नहीं आता. ऐसे में 1993 में मुलायम ने दलित नेता कांशीराम के साथ समझौता किया. सरकार भी बनी मगर चल नहीं पाई. दोनों नेता अपनी जाति को सत्ता की चाबी सौंपना चाहते थे.
कांशीराम ने ऐसे में अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी मायावती को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बड़ा दांव चला. उन्होंने बीजेपी के साथ समझौता कर लिया. मायावती का सीएम बनना तय हो गया. लखनऊ में मायावती पर सीएम बनने से एक दिन पहले हमला हुआ. वो सरकारी गेस्ट हाउस में बंद रहीं. इस घटना को गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है. इस दिन से सपा और बसपा की जो लड़ाई शुरू हुई, आज भी जारी है.
अमर सिंह का आना जाना
मुलायम सिंह के कुनबे में सबकुछ तय था. नेताजी मुखिया थे. शिवपाल जमीनी संगठन और रामगोपाल सियासी हिसाब-किताब देखने वाले थे. अमर सिंह पार्टी में ग्लैमर लेकर आए. जमीन की राजनीति में दिखावा घुला. सैफई महोत्सव में किसी अंतर्राष्ट्रीय कन्सर्ट जैसी चमक-दमक दिखने लगी. इसके बाद अमर सिंह का मुलायम सिंह से झगड़ा भी हुआ. वजह क्या थी दोनों तरफ से इसपर चुप्पी रही. अमर वापस भी आ गए मगर कुनबे में उनको पूरी तरह स्वीकार नहीं किया गया. अखिलेश यादव ने कारवां को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि खटिया पर सोने वाले मेरे बाप को अमर सिंह ने 5 स्टार की आदत पड़वा दी.
लड़के हैं गलती हो जाती है
मुलायम सिंह ने कभी नहीं सोचा होगा कि 'लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती हैं' जैसा एक लाइन का ये बयान उनके पीछे ताउम्र पड़ा रहेगा. मुलायम सिंह के इस बयान को बहुत तूल मिला. सपा जब भी सत्ता में आई उससे जुड़े लोगों की गुंडागर्दी की खबर रोज सुनने को मिलती. कार्यकर्ता से लेकर विधायक-सांसद तक हर स्तर पर कानून का मजाक बना. मुलायम आंखें मूंदे रहे.
अखिलेश यादव जब सत्ता में आए तो शुरू के दो साल साढ़े पांच मुख्यमंत्रियों को मैनेज करने में ही निकल गए. 1090 जैसी अच्छी योजनाएं शुरू करने के बाद भी गुंडागर्दी का तमगा उनकी पार्टी से नहीं छूटा. अंत में पार्टी में दो हिस्से हो गए जिसमें प्रोजेक्ट किया गया कि गुंडागर्दी वाला इतिहास या काम-काज वाला भविष्य.
आज मुलायम अपने पार्टी कार्यालय में अखिलेश के साथ जन्मदिन मना रहे हैं. उनके प्रधानमंत्री बनने की हसरत शायद हसरत ही रहेगी. लगभग एक साल पहले तक मुलायम सिंह कहते थे कि पार्टी में कितना भी विवाद हो नेताजी की बात के आगे सब चुप हो जाते हैं. इस साल वो ऐसा नहीं कह सकते हैं. इस परिवर्तन में सबसे बड़ा झटका उनके लड़के ने ही उन्हें दिया.