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भोजन में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे वेज-नॉनवेज में नहीं बांटा जा सकता

यह भेद बड़ा मायने रखता है, खासकर जब आप शाकाहारी हों और आपको तय करना हो कि जीवन के किस रूप को चोट नहीं पहुंचानी है

Maneka Gandhi

जीवन बहुत जटिल है. हम मानते हैं कि जीवन का एक रूप पशुओं में है तो दूसरा अपने को पेड़-पौधों की शक्ल में जाहिर करता है. और यह भेद बड़ा मायने रखता है, खासकर जब आप शाकाहारी हों और आपको तय करना हो कि जीवन के किस रूप को चोट नहीं पहुंचानी है.

पशु को जिंदा रहने के लिए एक ना एक सजीव को अपना आहार बनाना पड़ता है क्योंकि पशु सीधे सूरज की रोशनी से ऊर्जा हासिल नहीं कर सकता. हर पशु अपने जीवन-चक्र में एक दफे भ्रूण(एम्ब्रियो) की अवस्था में होता है. पशुओं की कोशिकाओं की दीवार ज्यादातर नर्म होती हैं. पशुओं को अपने ढांचे के लिए कंकाल या फिर किसी कठोर कवच(खोल) की जरूरत होती है. यह ढांचा उन्हें मजबूती देता है और उनकी सुरक्षा में काम आता है.


पेड़-पौधों की कोशिकाओं को ताकत सेल्यूलोज से मिलती है. सेल्युलोज में हरे रंग के कुछ कणिकाएं होती हैं जिन्हें क्लोरोप्लास्ट कहते हैं. क्लोरोप्लास्ट के जरिए सूरज की रोशनी का इस्तेमाल होता है ताकि वह चीज बनायी जा सके जिससे पेड़-पौधों की कोशिकाओं की रक्षा होती है. पेड़-पौधों में भोजन बनाने की इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण(फोटो सिन्थेसिस) कहा जाता है. फोटो-सिन्थेसिस की प्रक्रिया में पेड़-पौधे वातावरण से कार्बन डायऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन बनाते हैं.

सीधे सरल ढंग से कहें तो पशु जीवित रहने के लिए दूसरे पशुओं या फिर पेड़ पौधों को अपना आहार बनाते हैं. वे गतिशील होते हैं यानी चलते-फिरते हैं जबकि पेड़-पौधे जीवित रहने के लिए सीधे सूरज से ऊर्जा ग्रहण करते हैं और वे गतिशील नहीं होते.

लेकिन कुछ सजीव ऐसे भी हैं जिनपर ये नियम लागू नहीं होते. कुछ सजीव समान रूप से दोनों श्रेणियों में रखे जा सकते हैं यानी उनमें पशुओं के गुण होते हैं तो पेड़-पौधों के भी. कुछ पशु पेड़-पौधों की तरह दिखते हैं तो कुछ पशु पेड़-पौधों का रूप ले सकते हैं या फिर कुछ पेड़-पौधे ऐसे हैं जो पशुओं का रूप ले सकते हैं!

वीनस फ्लाई ट्रैप है तो एक वनस्पति ही लेकिन वह जीवित रहने के लिए कीड़े-मकोड़ों को अपना आहार बनाता है और इस वनस्पति के कुछ अंग आहार बनने वाले कीड़े-मकोड़ों की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से काम करते हैं. पशुओं में कुछ समूह ऐसे हैं जो उम्र भर नहीं हिलते-डुलते, ताजिन्दगी धरातल से चिपके रहते हैं जैसे कि स्पॉन्ज, कोरल(मूंगा), म्युसेल(कौड़ी) और बर्नाकल्ज(नकचिपटी/सीपी).

कोरल पौधा नहीं बल्कि पशु-जगत का प्राणी है. खूब चमकदार नजर आने वाला समुद्री रतनजोत(एनामोन) कोई फूल नहीं है. यह कोरल और जेलीफिश का ही नजदीकी रिश्तेदार है. समुद्र के तल पर पड़ी चट्टानों पर चिपककर यह अपनी जिंदगी बिताता है. इन चट्टानों को कोरल-रीफ कहते हैं. कोरल-रीफ पर चिपककर यह इंतजार करते रहता है कि एकदम नजदीक से मछलियां गुजरें तो अपने विषैले तंतुओं में फांसकर उन्हें अपना आहार बना ले.

समुद्री एनामोन के बीच में फंसी एक मछली

समुद्री रतनजोत यानी एनामोन की तकरीबन 1000 प्रजातियां हैं. एनामोन का शरीर बेलनाकार होता है, साथ ही उसमें एक चिपचिपा डिस्क या कह लें पैर लगा होता है. शरीर में आगे की तरफ मुंह वाले हिस्से के पास बहुत सारे तंतु लगे होते हैं. इन तंतुओं से एनामोन अपने शिकार को जकड़कर उन पर अपना विष छोड़ता है. शिकार न्यूरोटॉक्सिन के असर में असहाय हो जाता है और एनामोन तंतुओं के सहारे उसे अपने मुंह में रख लेता है.

ये जीव अपनी शक्ल में पौधों से इतना मिलते-जुलते हैं कि प्राचीन यूनान के दार्शनिक अरस्तू भी इन्हें लेकर बहुत हैरान थे. अरस्तू ने इन जीवों को जूफायट (पौधा और जंतु दोनों एक साथ) कहा. अरस्तू ने ही दुनिया में सबसे पहले जीव-जंतुओं के वर्गीकरण की प्रणाली बनायी. लेकिन ये जीव पशुओं की श्रेणी में रखे जायेंगे क्योंकि वे गतिशील हैं और जीवित रहने के लिए दूसरे प्राणियों को आहार बनाते हैं, ऐसे प्राणियों को जो उनके तंतुजाल में फंस जाते हैं. एक दिलचस्प बात यह भी है कि इन जीवों का तंत्रिका-तंत्र(नर्वस सिस्टम) बहुत कुछ मनुष्यों से मिलता-जुलता है. हां, शरीर की बनावट(एनाटॉमी) के मामले में बेशक ये मनुष्यों से एकदम ही अलग हैं.

ऐसा ही एक उदाहरण समुद्री स्पॉन्ज का है. ये कवचदार प्राणि हैं. इनके खोल यानी कवच पर हजारों छोटे-छोटे छेद होते हैं. अलग-अलग रूप-रंग, आकार और तरतीब की कम से कम 5000 प्रजातियां हैं स्पॉन्ज की. कवच पर बने छोटे छेद के सहारे पानी इनके अंदर-बाहर आसानी से आता-जाता है. इससे एक तो उन्हें जरूरत भर का पोषक आहार मिल जाता है साथ ही इस प्रक्रिया के जरिए वे अपने शरीर में जमा भोजन का बेकार हिस्सा बाहर कर देते हैं.  लंबे समय तक बहस चली कि समुद्री स्पॉन्ज को पौधों में रखा जाय या पशुओं में. फिर संयोग ऐसा हुआ कि जीवविज्ञानियों ने उन्हें बहुकोशकीय(मल्टी-सेल्युलर), तलचर(बॉटम-ड्युवेलिंग) पशुओं की श्रेणी में रख लिया.

ऐसे ही एक और हैरतअंगेज जीव का नाम है ‘सी लिलीज’. यों तो ये पशुओं की श्रेणी में आयेंगे लेकिन दिखते पौधों की तरह हैं और समुद्र के तल से एक डंठलनुमा संरचना के सहारे चिपके रहते हैं. अब यह बात पता चल गई है कि सी लिलीज अपने पंखदार बाहों का इस्तेमाल घिसटने में करते हैं और अपनी देह से जुड़े डंठल को भी खींचते हुए चलते हैं.

सी लिली

जीव-जगत का एक सदस्य शैवाल(एल्गी) है. यह भी पानी में पैदा होता है और अक्सर पानी के सतह पर कई रंगों में पसरा नजर आता है. शैवाल पौधों की तरह जान पड़ते हैं लेकिन वे गतिशील नहीं होते. शैवाल में प्रकाश-संश्लेषण(फोटो सिन्थेसिस) की प्रक्रिया होती है. शैवाल को पौधों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि उनमें कुछ गुण पशुओं के भी होते हैं. सी-वीड्स(समुद्री खर-पतवार) सूक्ष्म शैवाल(माइक्रो एल्गी) होते हैं. इन्हें रंगों के आधार पर हरे, लाल और भूरे रंग के परिवारों मे बांटा गया है. सिवार(केल्प) पानी के भीतर उगने वाला एक झुरमुट है कहीं-कहीं इसकी ऊंचाई 80 मीटर तक पहुंच जाती है. सिवार एशिया के लोगों के भोजन मे शामिल एक अहम चीज है. सिवार(केल्प) एल्गी के भूरे रंग के परिवार में शामिल है.

नोरी सीवुडस् नाम से एक हरे रंग का शैवाल(एल्गी) होता है. यह जापानी लोगों के प्रिय भोजन सुशी और चावल पर वर्क की मानिन्द लपेटने के काम आता है. लाल रंग के शैवाल-परिवार में शामिल रेड ड्यूल्स को आयरलैंड और आईसलैंड में स्नैक्स के रूप में इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि इसे तल दिया जाय तो इसका स्वाद कुछ-कुछ सुअर के नमकीन मांस(बेकन) से मिलता-जुलता है. शक्ल सूरत से पौधे की तरह जान पड़ते और जानवर के मांस की तरह स्वाद देने के बावजूद नोरी और ड्यूल्स रेड एल्गी हैं यानी ना तो पूरा का पूरा पौधा ही कह सकते हैं इन्हें और ना ही ठीक-ठीक पशु. सालाद की ड्रेसिंग, सॉस, डायट फूड, मांस और मछली के उत्पाद, डेयरी प्रॉडक्ट तथा बेक्ड फूड(सिंके हुए भोजन) में इस्तेमाल होने वाले कोंड्रस क्रिस्पस का प्रचलित नाम कोरेगीनन मॉस है. यह भी रेड एल्गी है. ऐसा ही इस्तेमाल एगर का होता है.

पोरीफायरा नाम का एक और एल्गी है जो सूप, सुशी या फिर भात बनाने में इस्तेमाल होता है. बेल्जे में सीवीडस् को दूध, वनीला, जायफल और इलायची को मिलाकर एक शरबत तैयार करते हैं जिसका नाम डल्के है. सीवीड्स का इस्तेमाल टूथपेस्ट, कॉस्मेटिक्स और पेन्टस् बनाने में भी होता है.

पोरीफोरा

मशरूम का इस्तेमाल अक्सर सब्जी के रूप में होता है लेकिन यह एक कवक(फंगी जिसमें यीस्ट और मोल्ड शामिल हैं) है और कवक पौधे से ज्यादा पशुओं के निकट हैं. कवक(फंगी) जैसे कि मशरूम गतिशील नहीं होते लेकिन उनमें प्रकाश-संश्लेषण(फोटो सिन्थेसिस) भी नहीं होता. कवक अपनी ऊर्जा और पोषण के लिए दूसरे जीवाणुओं को आहार बनाते हैं.

बेशक दूसरे पशुओं के समान वे अपना भोजन हासिल करने के लिए शिकार नहीं करते लेकिन वे सड़ी-गली चीजों( जैसे फंफूद लगी रोटी या फिर मृत पशु के गलते हुए मांस), पेड़, मिट्टी या मनुष्य के पैरों पर उग आते हैं और इसी तरह अपना भोजन ग्रहण करते हैं. कवक(फंगी) होने के नाते मशरूम चूंकि अपनी विकास-प्रक्रिया में पशुओं के कहीं ज्यादा निकट है इसलिए आप अगर ब्रेड या बन में मशरूम दबाकर खा रहे हैं तो माना जायेगा कि आप हैम्बर्गर खा रहे हैं ना कि सोया(बीन) का कोई विकल्प. यीस्ट(खमीर) का इस्तेमाल ब्रेड और बीयर में होता है.

पानी में अक्सर नजर आने वाली एक और चीज है यूग्लीना. यूग्लीना ना तो पौधा है ना ही पशु. नाशपाती नुमा यूग्लीना एक कोशिका की बनी होती है और चाबुक की तरह इसकी एक पूंछ भी होती है. इस पूंछ के सहारे यूग्लीना पानी में आगे बढ़ती है. ऐसे में आप चाहें तो इसे पशुओं की श्रेणी में रख सकते हैं लेकिन यूग्लीना में पौधे का भी गुण होता है क्योंकि उसमें क्लोरोप्लास्ट पाये जाते हैं. पौधों के समान यूग्लीना भी अपना भोजन खुद ही बनाता है और इसके शरीर पर आंख जैसी जान पड़ती एक बनावट होती है जो सूरज की रोशनी के प्रति संवेदनशील होती है. इसकी खोज 1660 में हुई लेकिन यूग्लीना के बारे में आज तक समझ में नहीं आया है कि उसे पौधों की प्रजाति में रखें या पशुओं की प्रजाति में.

साल 2012 में वैज्ञानिकों को कुदरत के एक और करिश्मे से भेंट हुई. हरे रंग के इस जीव को मेसोडिनियम नाम दिया गया जो ना पौधे की श्रेणी में रखा जा सकता है और ना ही पशुओं की श्रेणी में. मेसोडिनियम समुद्र की तली में रहता है और देखने से ऐसा जान पड़ता है मानो ऊन का कोई गोला बिखरा पड़ा हो. अपने हजारों तंतुओं के इस्तेमाल से यह पानी में खूब तेज गति से चलता है और राह में कोई पौधा मिले तो उसे खा जाता है.

पौधे को खाने के बाद यह खुद भी एक पौधे में तब्दील हो जाता है. एक कोशिका वाला हरे रंग का यह विचित्र जीव डेनमार्क के पानी में पाया जाता है. यह ऐसे छोटे पौधों की तलाश में रहता है जिनमें क्लोरोफिल हो. ऐसा पौधा नजर आये तो गिरगिट की सिफत(गुण) वाला मेसोडिनियम उसे खा लेता है और खुद एक पौधे में बदल जाता है.

क्लोरोफिल की कणिकाएं अपने पेट में सक्रिय रखने की वजह से मेसोडिनियम उसके सहारे सूरज की रोशनी के इस्तेमाल से ऊर्जा हासिल करता है. प्रकाश-संश्लेषण(फोटोसिन्थेसिस) की प्रक्रिया जारी रखने के कारण मेसोडिनियम को पौधा कहा जा सकता है. लेकिन एक वक्त के बाद मेसोडिनियम निगले गये पौधे को पचा जाता है और एक बार फिर से जंतु में बदल जाता है. फिर यह किसी पशु के समान ही शिकार में लग जाता है, किसी ऐसे पौधे की तलाश में लग जाता है जिसे खाया जा सके.

आखिर में यह कि अनोखेपन का ऐसा कोई कांबिनेशन नहीं जिसे कुदरत ने पहले ही ना सोच लिया हो!