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जीडीपी के आंकड़े: विकास पर भारी पड़ रहा है मोदी का 'हार्डवर्क'

2016-17 की चौथी तिमाही जनवरी-मार्च 2017 में जीडीपी ग्रोथ दर घट कर 6.1% रह गई है

Rajesh Raparia

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों ने लगातार दूसरी बार सबको चकित कर दिया है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के ताजा आंकड़ों से जाहिर है कि वित्त वर्ष 2016-17 के जीडीपी ग्रोथ के अनुमानों में कोई अंतर नहीं आया है और यह 7.1% के स्तर पर बरकरार है.

वित्त वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही जनवरी-मार्च 2017 में जीडीपी ग्रोथ दर घट कर 6.1% रह गई है, जो दिसंबर 2014 से सबसे कम स्तर पर है. इसे नोटबंदी के फैसले का असर माना जा रहा है.


अपनी सरकार की तीसरी सालगिरह मना रहे पीएम मोदी के लिए यह बड़ा झटका है, क्योंकि इसी साल की तीसरी तिमाही अक्टूबर-दिसंबर 2016 में यह ग्रोथ अनेक आशंकाओं के विपरीत 7% रही थी. तब प्रधानमंत्री मोदी नोटबंदी के फैसले को अद्वितीय कहते नहीं अघाते थे. एक नहीं, अनेक अवसरों पर मोदी सरकार की तरफ से दावा किया गया कि नोटबंदी के फैसले से अर्थव्यवस्था पर कोई खास प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा. फिलवक्त इस तिमाही की ग्रोथ रेट ने सबसे तेज विकास दर का तमगा भारत से छिन गया है. वैसे इस तमगे का जमीन पर कोई महत्व नहीं है.

जनवरी-मार्च 2017 की तिमाही में जीवीए (ग्रोस वेल्यू एडेड) ग्रोथ इससे पहले की तिमाही अक्टूबर-दिसंबर 2016 से 110 अंक आधार गिर कर 5.6 रह गई है. आजकल दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों को आंकने को जीवीए को सबसे सटीक माना जाता है. इस गिरावट का सीधा मतलब है कि अर्थव्यवस्था में नोटबंदी का असर ज्यादा गहरा और व्यापक है.

मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और वित्तीय सेवाओं पर गहरा असर

कृषि और सरकार के खर्च को अलग रख दें तो यह गिरावट मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और वित्तीय सेवाओं में ज्यादा तीव्र और व्यापक है. इस तिमाही में सरकारी खर्च की ग्रोथ रेट 17% रही. अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तिमाही में 10.3% थी. सातवें वेतन आयोग के भुगतानों के कारण सरकारी खर्च में तेज बढ़ोतरी इसका मूल कारण है.

इस तिमाही में सबसे ज्यादा प्रतिकूल असर कंस्ट्रक्शन पर पड़ा है, इसकी ग्रोथ रेट सिकुड़ कर 3.7% हो गई. पिछले साल की समान तिमाही में यह ग्रोथ रेट 6% थी. इस सेक्टर में नगद भुगतान ज्यादा होते हैं. मजदूरी का पूरा भुगतान आमतौर पर नगद ही इस सेक्टर में दिया जाता है.

वित्तीय सेवाओं पर गहरा प्रतिकूल असर पड़ा है. इस सेक्टर की ग्रोथ रेट जनवरी मार्च 2017 की तिमाही में 2.2% बढ़ी है. यह वृद्धि अक्टूबर-दिसंबर 2016 की तिमाही में 3.3% थी. इससे पूर्व की छह तिमाहियों में यह वृद्धि 7-13% थी. सरकारी दावा था कि बैंकों में अकूत नगद प्रवाह के कारण बैंकों की कर्ज देने की ग्रोथ में वृद्धि होगी, लेकिन वितत सेवाओं की ग्रोथ रेट में व्यापक कमी आई है. पर यह कोई अबूझ रहस्य नहीं है.

बैंकों से कर्ज की मांग सतत कमजोर बनी हुई है, संकटग्रस्त कर्ज बेहिसाब बढ़े हैं और बड़ी इंडस्ट्री भी बैंकों से नए कर्ज लेने की इच्छुक नहीं दिखाई देती है. इसका सीधा असर है कि बैंकों के कर्ज देने की ग्रोथ पिछले 6 दशक के सबसे निचले स्तर पर है.

यदि जनवरी-मार्च की तिमाही में कृषि और सरकारी खर्च को अलग कर दें, तो इस तिमाही की ग्रोथ रेट 5.6 से घट कर 3.8% रह जाती है, जो जनवरी-मार्च 16 की तिमाही में 10.3% थी.

पर नाजुक स्थिति का इन आंकड़ों में पूरा-पूरा पता नहीं चलता है, क्योंकि जीडीपी या जीवीए के आंकड़ों से इनफॉर्मल सेक्टर (असंगठित क्षेत्र) की माली आर्थिक हालत का कतई अंदाज नहीं होता है. यह दशा मनमोहन सिंह काल में भी थी और मोदी राज में भी.

प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार काउंसिल के पूर्व सदस्य के गोविंद राव कहते हैं कि नोटबंदी अर्थव्यव्स्था के लिए बुरी खबर थी. जीडीपी के जो ताजा आंकड़े आये हैं, उनका पूरा अंदेशा था. पर यह आंकड़े पूरी अर्थव्यव्स्था पर अचानक आयी आपदा का पूरा बयां नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इनफॉर्मल सेक्टर की विपदा को दरशाने में ये आंकड़े असमर्थ हैं. देश में कुल रोजगार में इनफॉर्मल सेक्टर की हिस्सेदारी 90% है. इस सेक्टर की नैया नगदी से ही चलती है. इसलिए नीति आयोग के सदस्य बिबेक देवराय कहने लगे हैं कि बेरोजगारी पर काबू पाने के लिए इनफॉर्मल सेक्टर में रोजगार बढ़ाने होंगे.

हार्ड वर्क भी काम न आया

वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर में जीडीपी ग्रोथ दर 7% के आकलन से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार खुशी से फूल कर कुप्पा हो गयी थी.

बेहद तल्ख अंदाज में मार्च 17 में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि उनके हार्डवर्क ने हार्वर्ड के अर्थशास्त्रियों को पीछे छोड़ दिया है. जीडीपी के ताजा आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इससे नोटबंदी का विरोध करने वालों को करारा जवाब मिल गया है. विपक्ष के लोग आर्थिक विकास चौपट होने और पिछड़ने का दुष्प्रचार कर रहे थे.

मोदी ने कहा कि हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड के बड़े-बड़े विद्वानों ने नोटबंदी के कारण जीडीपी में 2% गिरावट का दावा किया था. लेकिन जीडीपी के ताजा आंकड़ों (तीसरी तिमाही 2016-17) ने साबित कर दिया है कि हार्वर्ड और हार्डवर्क में कितना फर्क है. एक गरीब मां का बेटा हार्डवर्क से देश की आर्थिक तस्वीर नीति बदलने में लगा हुआ है. देश के ईमानदारों ने दिखा दिया है कि हार्वर्ड से ज्यादा दम हार्डवर्क में है.

असल मोदी का यह हमला परोक्ष रूप से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, नोबेल पुरस्कार विजेता प्रख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन समेत तमाम अर्थशास्त्रियों पर था. सेन ने कहा था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था का विश्वास भंग हुआ है. मनमोहन सिंह ने संसद में नोटबंदी को संगठित और कानूनी लूट बताया था और इसे ऐतिहासिक कुप्रबंधन कहा था. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी से जीडीपी ग्रोथ में 2% गिरावट का बड़ा अंदेशा बताया था.

जीवीए का आंकड़ों पर नजर डालें, तो मनमोहन सिंह का अंदेशा बेदम भी नहीं था, जिससे प्रधानमंत्री मोदी चिढ़ से गए थे. उन्होंने संसद में मनमोहन सिंह के लिए यह तक कह दिया था कि मनमोहन सिंह के काल में बड़े-बड़े घोटाले हुए पर वे बेदाग बने रहे. केवल डॉक्टर मनमोहन सिंह रेनकोट पहनकर नहाने की कला जानते हैं.

जनवरी-मार्च 16 की तिमाही में जीवीए ग्रोथ 8.7% थी जो एक साल बाद यानी जनवरी-मार्च 2017 की तिमाही में घट कर 5.6 रह गई, यानी 3% की गिरावट.

वित्त मंत्री अरुण जेटली लगातार कह रहे हैं कि कर संग्रह में तेज उछाल है. तो आर्थिक गतिविधयां इतनी सुस्त कैसे हो सकती हैं. वे अब भी अपने रुख पर कायम हैं और कहते हैं कि इस गिरावट के पीछे केवल नोटबंदी ही नहीं, अन्य कारक भी हैं. वह यह भी कहने में नहीं चूके कि कांग्रेस से मिली भ्रष्ट और कमजोर विरासत भी एक कारक है.

जीवीए के ताजा आंकड़ों का साफ संदेश है कि निजी निवेश कमजोर बना हुआ है, बैंकों के कर्ज देने की दर में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो रही है, बल्कि न्यूनतम दर बनी हुई है. इसका असर चालू साल में देखने को मिल सकता है. रोजगार कैसे बढ़ेंगे, इस पर वित्त मंत्री मौन ही रहते हैं. रोजगार सृजन पिछले 10 सालों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.