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नोटबंदी और मोदी सरकार की आॅनलाइन ठिठोली

हमारी नरेंद्र मोदी सरकार की ठिठोली बड़ी क्यूट है

Sandipan Sharma

हमारी नरेंद्र मोदी सरकार की ठिठोली बड़ी क्यूट है.

पहले तो वह एक नया फुटबॉल का खेल ईजाद करती है. ऐसा खेल जिसमें मैदान उसका, नियम भी उसके. और ऐसे नियम जो बार-बार बदलते रहते हैं, और फिर हर खिलाड़ी से कहा जाता है कि सब एक तरफ ही गोल दागो. फिर बड़ी मासूमियत से सरकार कहती है वह 9-1 से जीत गई.


वाह, लाख-लाख बधाइयां!

सरकार की खुशी जायज है. जब से 500 और 1000 के नोट नाजायज करार दिए गए हैं, तब से उसे इस बात की चिंता है कि लोग क्या कहेंगे. अब अगर वह मानती है कि 90 प्रतिशत लोग नोटबंदी के पक्ष में हैं, तो गालिबन उसका खुशी से मर जाना लाजिम है. डेमोक्रेसी के इतिहास में सिर्फ उत्तर कोरिया की सरकार को ऐसा छप्पर फाड़ के समर्थन मिलता है.

पर अगर मैं सरकार होता तो मुझे कुछ चिंता भी होती. जब खेल मेरा, मैदान मेरा, सब खिलाड़ी मेरे, जब गोल एक ही तरफ दागना था तो यह एक गोल टीम नोटबंदी के खिलाफ कौन मार गया? हमारी जेल में सुरंग!

मोदी जी का नोटबंदी ऐप असल में कुछ पुरानी यादें ताजा कर गया. कुछ वक्त पहले एक विज्ञापन आता था जिसमें कहा जाता था, जो बीवी से सुचमुच करे प्यार, वह प्रेस्टीज से कैसे करे इनकार?

मोदी जी का सर्वे भी कुछ ऐसा ही है: जो देश से सचमुच करे प्यार वह नोटबंदी से कैसे करे इनकार?

कितने प्यारे सवाल हैं. बानगी देखिए.

क्या देश में काला धन हैं? जी हुजूर, दुनिया के हर देश में. क्या काले धन और करप्शन के खिलाफ जंग होनी चाहिए? जी हुजूर, पाकिस्तान के खिलाफ भी.

सवाल कुछ इस तरह के हैं: देश का बेस्ट पीएम कौन है?

(ए) नरेंद्र मोदी (बी) हिमेश रेशमिया (सी) नरेंद्र मोदी (डी) अनुपम खेर.

अब कोई बतलाए हमें कि हम बतलाएं क्या?

वैसे, सरकार ने दस सवाल पूछने की जहमत ही क्यों की? बस इतना ही कह देते प्रेम से बोलो भारत माता की जय. और भक्ति रस देश के कोने-कोने से आप के कान में घुल जाता.

मोदी जी के मन में सर्वे के लिए क्या बात है, वो हम सब जानते हैं. दिल्ली चुनाव के वक्त उन्होंने कहा था कि कुछ बाजारू किस्म के सर्वे भ्रांति फैला रहे हैं, गुमराह कर रहे हैं. पर ये सर्वे जरूर अलग होगा. तो खुश रहिए, आबाद रहिए. हंसते रहिए.

ये अलग बात है कि देश रो रहा है और दुनिया हंस रही है. दुनिया के अर्थशास्त्री नोटबंदी को त्रासदी कह रहे हैं. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर इसका बुरा असर होगा. नौकरी, व्यापार, सामाजिक व्यवस्था सब पर बुरा असर पड़ेगा. चिड़िया मारने के लिए आपने एटम बम दाग दिया है. लोग मर रहे हैं. सड़क पर आ गए हैं. बैंक खाली. एटीएम खाली. सिर्फ दर्द से दामन भरा है.

इस पर अर्थशास्त्री क्या कहते हैं, आप पढ़ सकते हैं: यहां, यहां और यहां)

और एक बार ये मान भी लिया जाए कि इससे काला धन और करप्शन छू-मंतर हो जाएंगे, आतंकवाद की गर्दन टूट जाएगी, पाकिस्तान तबाह हो जाएगा, कश्मीर में भारत के लिए असीम प्यार उमड़ पड़ेगा, दूध-दही की नदियां बहने लगेंगी, देश सोने की चिड़िया हो जाएगा, तब भी ये तो बताइए कि सरकार की प्लानिंग इतनी लचर क्यों थी? नोट क्यों नहीं छापे? अगर छापे भी तो एटीएम में फिट होने वाले क्यों नहीं छापे?

जूता छोटा बना लिया, अब पांव काटने के औजार ढूंढ रहे हैं! सर्जिकल स्ट्राइक थी या नीम-हकीम के मर्जे-ए-इलाज?

पर, चलिए आप खुश रहिए. ये मान लीजिए कि 125 करोड़ लोगों को सड़क पर लाकर 5 लाख की वाह-वाह तो सुन ली. रहिए अपने इकोचैंबर में. सुनिए अपनी ही आवाज. सुनिए मुकेश के वह वह नगमा- जो तुमको हो पसंद वही...

1975 में इंदिरा गांधी ने भी सोचा था इमरजेंसी देश के लिए वरदान है. उन्हें भी लगा था 1977 के चुनाव मक्खन की तरह जीत जाएंगी. संजय गांधी ने भी पूछा था: क्या बढ़ती आबादी एक समस्या है? क्या इसका इलाज होना चाहिए?

चूंकि मौसम सवालों का है तो मैं भी दो सवाल पूछ लेता हूं.

क्या सरकार के प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में बांदा जिले के तिंदवारी गांव के धर्मेंद्र कुमार ने हिस्सा लिया था? शायद नहीं, वह अपनी तीन साल की बेटी के अंतिम संस्कार में थे. वह बीमार थी और कई बार लाइन में लगने पर भी इलाज का पैसा नहीं मिला था.

घर में बेटी बीमार है, पर पैसा नहीं हैं.

दूसरा सवाल-

ये सुनकर क्या आप (1) हंसने लगे (2) रोने लगे या (3) भारत माता की जय जय करने लगे?

(खबर कैसी लगी बताएं जरूर. आप हमें फेसबुक, ट्विटर और जी प्लस पर फॉलो भी कर सकते हैं.)