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मोदी की यात्रा से नए शिखर पर पहुंचेंगे भारत-जापान संबंध

उम्मीद है कि प्रधानमंत्री की यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाएगी...

Amit Singh

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब पड़ोसी चीन के साथ भारत के संबंध चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले चीन द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ की खबर आई थी. इसके अलावा चीन दक्षिण चीन सागर के मामले में भारत को लगातार चेतावनी देता रहा है.

हाल ही में उसने कहा कि भारत ने अगर जापान के साथ मिलकर बीजिंग का विरोध किया तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. ऐसे में यह यात्रा अहम होने जा रही है. प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच में सात बार मुलाकात हो चुकी है. मोदी की यह दूसरी जापान यात्रा है.


पीएम मोदी जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से टोक्यो में मिले. दोनों हाईस्पीड ट्रेन शिंकंसेन में बैठकर टोक्यो से कोबे तक गए. यह दूरी कुल 530 किलोमीटर है.

गौरतलब है कि जब आबे भारत आए थे तो वह गुजरात गए थे. वहां से वह और मोदी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी गए थे. दोनों नेताओं के बीच संबंधों की मधुरता इससे पता चलती है. ऐसे में जब दो देश के शीर्ष नेता रिश्तों को मजबूत करने का निश्चय कर चुके हो, तो संबंध निश्चित ही प्रगाढ़ होंगे.

यानी भारत और जापान अब अपने बीच के रिश्तों को नए शिखर पर ले जाने की ओर अग्रसर हैं. इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के अलावा व्यापार, निवेश व सुरक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा होने की उम्मीद है.

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ पीएम मोदी। (फोटो: @MEAIndia)

प्रधानमंत्री की इस यात्रा में सबसे बड़ा मसला असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर का है. पिछली बार जब जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भारत की यात्रा की थी उस दौरान असैन्य परमाणु ऊर्जा में सहयोग के लिए व्यापक समझौते को एक रूपरेखा प्रदान कर दी थी. हालांकि इस दौरान अंतिम संधि पर हस्ताक्षर होना बाकी था, क्योंकि कुछ तकनीकी एवं कानूनी मुद्दों को सुलझाया जाना था.

गौरतलब है कि जापान में विशेषकर वर्ष 2011 की फुकूशिमा परमाणु संयंत्र आपदा के बाद भारत के साथ परमाणु करार की दिशा में आगे बढ़ने के विरुद्ध राजनीतिक विरोध के स्वर हैं. फिलहाल इस समझौते के बाद भारत परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत किए बिना जापान के साथ समझौता करने वाला पहला देश हो गया है. इस समझौते से दोनों देशों के सुरक्षा संबंध और मजबूत होंगे.

इसके बाद दक्षिण चीन सागर का मसला है. यह मसला भारत के राष्ट्रीय हित के लिए महत्वपूर्ण है. गौरतलब है कि भारत के एशिया-पैसिफिक क्षेत्र से व्यापार का लगभग 55 फीसदी दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरता है. ऐसे में भारत और जापान निश्चित ही इस मसले में एकराय बनाने की कोशिश करेंगे. हालांकि इस मसले पर किसी भी तरह की बातचीत चीन को नागवार गुजरेगी.

तीसरा प्रमुख मसला व्यापार का है. मोदी ने जापान में व्यापार प्रमुखों को संबोधित करते हुए इसके संकेत भी दे दिए हैं. जापान में व्यापार प्रमुखों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, 'मेरा संकल्प इसे दुनिया में सबसे खुली अर्थव्यवस्था बनाने का है... मैं वादा करता हूं कि हम 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत आर्थिक सुधार की नई दिशा में बढ़ रहा है, हम सुधार नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.'

उन्होंने कहा,'हम आपकी चिंताओं का सक्रियता से समाधान करेंगे. हम जापानी औद्योगिक टाउनशिप सहित विशेष तंत्र को आगे और मजबूत करेंगे. भारत की विकास जरूरतें विशाल और वास्तविक हैं, यहां जापानी कंपनियों के लिए अभूतपूर्व अवसर हैं.' साफ है कि जापान के उद्योग जगत और निवेशकों के लिए भारत के आर्थिक विकास में भागीदार होने का सुनहरा अवसर है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा के दौरान कौशल विकास, सांस्कृतिक आदान प्रदान और आधारभूत संरचना जैसे क्षेत्रों पर समझौते होने हैं. इन क्षेत्रों में होने वाले समझौते से निसंदेह भारत को फायदा मिलेगा. जापान-भारत का समुद्री सहयोग प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में बहुत कारगर साबित होगा.

एक ऐसे समय जब भारत में मजबूत और स्थिर शासन है और भारतीय प्रधानमंत्री द्विपीक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने की ओर ले जाने के लिए अग्रसर हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री की यह यात्रा दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाएगी.