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उपभोक्ता के हाथ मजबूत करने की तैयारी में सरकार

कंज्यूमर कोर्ट के नियमों में बदलाव से उपभोक्ताओं के हक में फैसला आने की उम्मीद ज्यादा और फटाफट होगी सुनवाई

Ravishankar Singh

अामतौर पर लोगों की शिकायत होती है कि कोई मामला कंज्यूमर कोर्ट में लेकर जाने पर उन्हें बार-बार चक्कर काटना पड़ता है और लंबा वक्त लगता है. लेकिन अब मुमकिन है कि अगली बार जब आप अपनी शिकायत लेकर कंज्यूमर कोर्ट जाएंगे तो आपका काम ज्यादा आसानी से हो सकेगा.

कैसे बदलेगी सूरत


मोदी सरकार देश के उपभोक्ता अदालतों के कामकाज में बड़ा बदलाव करने जा रही है. इसके तहत उपभोक्ता अदालतों में सुनवाई करने वाली डबल बेंच और राजनीतिक नियुक्तियों को भी खत्म किया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने पिछले साल देश की उपभोक्ता अदालतों के रवैये पर सवाल खड़ा किया था. उपभोक्ता अदालतों के खराब बुनियादी ढांचे, खराब सांगठनिक व्यवस्था, पर्याप्त और प्रशिक्षित लोगों की कमी को लेकर एक कमेटी का गठन किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज अरिजीत पसायत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की कमेटी ने उपभोक्ता अदालतों के कार्यप्रणाली का बारीकी से अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

कमेटी ने उपभोक्ता अदालतों के बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए कई सिफारिशें की हैं. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में कई अहम सुझाव को सरकार जल्द लागू करने जा रही है.

डबल बेंच खत्म करने से उपभोक्ता को आसानी से मिलेगा हक  

कमेटी द्वारा बताए गए सुझावों में से एक अहम सुझाव देश के उपभोक्ता अदालतों में सुनवाई करने वाली डबल बेंच को खत्म करने की है. जिला उपभोक्ता फोरम से लेकर राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम तक अब सिर्फ सिंगल बेंच ही मामले की सुनवाई करेगी. डबल बेंच खत्म होने से मामले की सुनवाई में तेजी आएगी.

पहले किसी भी उपभोक्ता मामले की शिकायत का निपटारा डबल बेंच करता था. जिसमें एक अध्यक्ष और एक सदस्य का रहना अनिवार्य होता था. दोनों मिलकर मामले की सुनवाई करते थे.

नए कानून में किसी मामले की सुनवाई या तो सदस्य या फिर अध्यक्ष ही कर सकता है. दोनों मिलकर मामले की सुनवाई नहीं कर सकते हैं. जिला फोरम से लेकर राष्ट्रीय फोरम तक के अध्यक्ष न्यायिक सेवा से जुड़े होते हैं.

उपभोक्ता अदालतों में सदस्यों की नियुक्ति राजनीतिक होती है. सरकार राजनीतिक नियुक्तियों को अब खत्म करने जा रही है. जिला फोरम से लेकर राष्ट्रीय फोरम तक एक महिला सदस्य का भी रहना अनिवार्य है.

सरकार ऐसे कई सुधार करने जा रही है जिससे देश की उपभोक्ता अदालतों में लंबित मामलों का निपटारा जल्द से जल्द किया जा सके. सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से उपभोक्ता के किसी भी शिकायत का निपटारा 90 दिन के अंदर किया जाएगा.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

शिकायतों की लिस्ट लाखों में

इस समय जिला फोरम से लेकर राष्ट्रीय फोरम तक उपभोक्ताओं से जुड़ी शिकायतों की लिस्ट लाखों में हैं. देश में आज तक लगभग 4 लाख 65 हजार 393 मामले राष्ट्रीय, राज्य और जिला फोरमों में लंबित हैं. इनमें से 3 लाख 9 हजार 31 मामले केवल जिला फोरम के हैं.

अरिजीत पसायत की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय समिति ने सर्वोच्च अदालत को सूचित किया था कि भारत में काम कर रहे उपभोक्ता अदालतों की स्थिति सामान्य नहीं है. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट देते समय कहा था कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में उपभोक्ता जागरूकता का स्तर अभी भी काफी पीछे है. उपभोक्ता अदालतों की भूमिका शायद ही कभी बड़े पैमाने पर लोगों के लिए जानी जाती है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अरिजीत पसायत ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे अपने रिपोर्ट में कई खामियों का जिक्र किया है. कमेटी ने गौर किया कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) और दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और तमिलनाडु सहित कई राज्यों में उपभोक्ता अदालतें सही से काम नहीं कर रही हैं. राजनीति से जुड़े लोगों के उपभोक्ता अदालतों में घुसने पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं.

अक्सर गंभीर आरोप लगते हैं

जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम पर भी अक्सर गंभीर आरोप लगते रहे हैं. राज्य सरकारें भी जिला और राज्य उपभोक्ता फोरम के लिए जरूरी संसाधन मुहैया नहीं करा पाती हैं. जबकि जिला और राज्य में उपभोक्ता अदालतों के गठन की सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेवारी राज्य सरकारों की होती है. कमेटी ने कई राज्यों के सदस्यों को एक महीने का वेतन 500 रुपए देने पर एतराज जताया था.

जिला और राज्य फोरम में होने वाली नियुक्तियां राज्य सरकार के अधीन आती हैं. इस समय नेशनल कमीशन में दो न्यायिक पद खाली है. वहीं देश के जिला उपभोक्ता अदालतों में 70 न्यायिक पद और 279 सदस्य पद भरे जाने हैं. राज्य उपभोक्ता अदालतों में 9 सदस्यों की सीटें खाली हैं, जिन्हें राज्य सरकारों को भरना है.

जिला उपभोक्ता फोरम को एक करोड़ और राज्य उपभोक्ता अदालतों को 10 करोड़ रुपए तक के मामले की सुनवाई का अधिकार है.

कमेटी की सिफारिश के बाद केंद्र की सिलेक्शन कमेटी नेशनल कमीशन में खाली पदों को भरने के लिए कुछ नामों पर विचार कर रही है. साथ ही जिला और राज्य कमीशन में भी खाली पदों को भरने के लिए राज्य सरकारों को बोला जा चुका है. भारत सरकार के उपभोक्ता एवं खाद्य मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने राज्य सरकारों को पत्र लिख कर जल्द से जल्द खाली पदों को भरने के लिए कहा है.

कमेटी ने जो महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं वह हैं:-

1. जिला से लेकर राष्ट्रीय फोरम तक सिंगल बेंच के जरिए मामले की सुनवाई की जाए. इस सुझाव के लागू होने के बाद उपभोक्ताओं को लंबे समय तक चलने वाले मुकदमेबाजी से छुटकारा मिलेगा और जल्दी फैसले आएंगे. उपभोक्ताओं के समय की बचत होगी. दूसरे मामलों का भी जल्दी निपटारा होगा और मोलभाव में कमी आएगी.

2. जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सप्ताह में कम से कम 5 दिन मामले की सुनवाई की जाए. इससे पहले ऐसा नहीं होता था. हफ्ते में 5 दिन सुनवाई होने से मामलों का निपटारा जल्दी-जल्दी हो सकेगा. लाखों में जो शिकायतें हैं उसमें कमी आएगी.

3. सुनवाई की समय सीमा निर्धारित की जाए. इससे पहले उपभोक्ताओं को सुनवाई के लिए कोई टाइम टेबल नहीं दिया जाता था. शिकायत करने वाले उपभोक्ता अदालतों से वक्त लेने के लिए चक्कर काटते रहते थे. समय सीमा तय करने से उपभोक्ताओं के वक्त की बचत होगी.

4. कई राज्य सरकारों ने उपभोक्ता न्यायालयों के लिए अभी तक जगह आवंटित नहीं किया है. कमेटी की सिफारिशों में राज्य सरकारों को जल्द से जल्द जगह सुनिश्चित कराने की बात कही गई है. पहले, जिला उपभोक्ता अदालतों का एक निश्चित जगह पर अदालत नहीं होता था. अदालतों का जगह बदलता रहता था.

5. कमेटी ने सिफारिश की है कि केंद्र और राज्य सरकारें रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरें. साथ ही जिला और राज्य फोरम के सदस्यों को अब सरकारी मुलाजिम माना जाए. पहले जिला फोरम और राज्य फोरम में काम करने वाले सदस्यों को सरकारी मुलाजिम नहीं माना जाता था. इस सिफारिश के लागू होने से उपभोक्ता और कंपनी के बीच बिचौलिए का काम करने वाले सदस्यों की संख्या में कमी आएगी. पहले जो लोग सदस्य बनते थे उन्हें काफी कम सैलेरी दी जाती थी. इससे वह सदस्य बन कर अवैध वसूली को जरिया बना लेते थे.

'अपने' लोगों को नियुक्त करते हैं

कमेटी ने रिपोर्ट में नौकरशाहों और राजनेताओं पर अपने लोगों के लिए अनुचित पद दिलवाने का आरोप लगाया है. नौकरशाह और राजनीतिक लोग गैर-न्यायिक सदस्य पदों पर 'अपने' लोगों को नियुक्त करते हैं, जिससे सही उम्मीदवारों को फोरम में शामिल होने से वंचित रखा जाता है.

जिला उपभोक्ता अदालतों में तीन लोगों की कमेटी होती है, जिसमें अध्यक्ष न्यायिक सेवा से और दो सदस्य गैर-न्यायिक सेवा से होते हैं. राज्य उपभोक्ता फोरम में 5 लोगों की कमेटी होती है, जिसमें एक सदस्य न्यायिक सेवा से और चार सदस्य गैर-न्यायिक सेवा के होते हैं. वहीं, राष्ट्रीय फोरम में अध्यक्ष सहित 12 लोग होते हैं, जिसमें 6 न्यायिक सेवा से और 6 गैर-न्यायिक सेवा के होते हैं.