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मॉब लिंचिंग से निपटने के लिए 'मासुका' कानून लाने की तैयारी में मोदी सरकार

तीन सदस्यों वाली कमेटी यूपी, झारखंड, बंगाल, असम, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार से लगातार संपर्क में है और प्रतिक्रियाएं ले रही है. इन्हीं प्रदेशों में हिंसा की ज्यादातर घटनाएं सामने आई हैं

FP Staff

देश में बढ़ती भीड़ की हिंसा (मॉब लिंचिंग) पर काबू पाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार कानूनी बदलावों पर विचार कर रही है. इसके लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक दंड संहिता में फेरबदल कर हिंसा और अपराधियों पर नकेल कसने की तैयारी है.

इस दिशा में आगे बढ़ते हुए केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा ने एक मसौदा रिपोर्ट तैयार की है. गाबा फिलहाल उस कमेटी के अनौपचारिक अध्यक्ष हैं जो इस मुद्दे पर गौर कर रही है.


मसौदा रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि भीड़ की हिंसा का अपराध गैर-जमानती हो, इससे जुड़ा मामला किसी त्वरित अदालत (फास्ट ट्रैक कोर्ट) में चलाया जाए और पीड़ित व्यक्ति को केंद्रीय फंड से वित्तीय सहायता प्रदान की जाए.

केंद्रीय गृह मंत्रालय की यह कमेटी 23 जुलाई को बनाई गई है जिसके गठन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि गाबा की अगुवाई वाली यह कमेटी 21 अगस्त को भीड़ की हिंसा से जुड़ी रिपोर्ट मंत्री समूह को सौंपेगी.

तीन सदस्यों वाली कमेटी यूपी, झारखंड, बंगाल, असम, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार से लगातार संपर्क में है और प्रतिक्रियाएं ले रही है. इन्हीं प्रदेशों में हिंसा की ज्यादातर घटनाएं सामने आई हैं. इस कमेटी ने कानून और व्यवस्था से जुड़े अन्य कई प्राधिकारियों से भी संपर्क साधा है. तीन सदस्यों की कमेटी और अलग-अलग प्रदेश सरकारें इस सवाल पर मंथन कर रही हैं कि क्या मानव सुरक्षा कानून (मासुका, एमएएसयूकेए) लाकर भीड़ की हिंसा से निपटा जा सकता है?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कमेटी में केंद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव एससीएल दास, प्रवीण वशिष्ठ और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के महानिदेश अभय शामिल हैं. मसौदा रिपोर्ट पढ़ने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की कमेटी कानूनी बदलावों और जरूरी कार्रवाई पर फैसला करेगी.

अंतिम रिपोर्ट तैयार होने के बाद इसे मंत्री समूह को भेजा जाएगा जिसकी अगुवाई केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे हैं. मंत्री समूह के अन्य सदस्यों में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, विधि मंत्री रवि शंकर प्रसाद और सामाजिक एवं आधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत शामिल हैं. अंत में यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी जाएगी.

बीते 17 जुलाई को मॉब लिंचिंग की घटनाओं के खिलाफ सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और प्रदेश सरकारों को इसके लिए जवाबदेह माना था और इस पर नियंत्रण करने के लिए सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म पर निगरानी रखने का आदेश दिया था.