view all

राधामोहन सिंह से याद आया...कभी वाजपेयी जी भी ऐसे ही ‘हल्के’ होते पकड़े गए थे

एक मुफीद जगह देखकर सुरक्षा गार्डों की निगरानी में अटल जी ‘हल्का’ होने की प्रक्रिया में लग गए

Vivek Anand

बड़ी फजीहत हो रही है हमारे कृषि मंत्री राधामोहन सिंह की. प्रधानमंत्री मोदी ने मिशन छेड़ रखा है स्वच्छता का. टेलीविजन पर मेगास्टार अमिताभ बच्चन ‘दरवाजा बंद करो...दरवाजा बंद करो...’ कहते नहीं थक रहे... और यहां अपने कृषि मंत्री खुले में... छी... छी... अगर थोड़ा कंट्रोल रख लिया होता... कहीं किसी दरवाजे की तलाश ही कर लिए होते... तो कम से कम इतनी बेइज्जती तो न होती. लेकिन भाईसाहब खुले में करने की जो आदत होती है ना... बड़े बड़ों को भी... वो आदत इतनी जल्दी छूटती नहीं.. ये स्वच्छता-वच्छता तो आज के चोंचले हैं.

‘खुलेपन’ की भारतीय परंपरा इतनी समृद्ध है कि ये इतनी जल्दी नहीं जाने वाली... और क्या कहें... एक किस्सा ही सुन लीजिए... कि कैसे एक ऐसे ही वाकये में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कुछ नौजवानों की नजरों में ‘हल्के’ होते पकड़े गए थे. बिल्कुल आंखोंदेखी कहानी है ये.


जब बिहार शरीफ में लगने लगे अटल जी के समर्थन में नारे

वो अस्सी का दशक था... हमारे भाईसाहब वाजपेयी जी के खुले में ‘हल्का’ होने का आंखों देखा हाल सुनाते हैं. 1985 में बिहार विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. इमरजेंसी के दौरान ‘अटल बिहारी बोल रहा है, इंदिरा शासन डोल रहा है’ के नारे ने वाजपेयी की सशक्त राजनीतिक छवि और ओजस्वी भाषणों के जादू ने उन्हें गांव-कस्बों तक में पहुंचा दिया था. जहां भी उनके भाषण होते लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता.

छोटे शहर कस्बों तक में लोग उन्हें सुनने मोटरगाड़ियों से लेकर बैलगाड़ियों तक में भर-भर के आते थे. 1985 में विधानसभा चुनावों के दौरान बिहार में नालंदा जिले के मुख्यालय बिहार शरीफ में उनके भाषण का प्रोग्राम था. बिहार शरीफ के श्रम कल्याण मैदान में उन्हें सुनने के लिए हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई थी.

तब हमारे भाईसाहब हाईस्कूल में हुआ करते थे. वाजपेयी जी के भाषणों के सुने सुनाए किस्सों का उन पर ऐसा असर था कि स्कूल बंक कर अपने दस-बारह दोस्तों की टोली के साथ उनका भाषण सुनने चल दिए. वाजपेयी जी ने बीजेपी के स्थानीय उम्मीदवार के समर्थन में बड़ा ओजस्वी भाषण दिया. बीजेपी उम्मीदवार का कोई नामलेवा भी नहीं था. लेकिन रैली स्थल में अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन में अच्छा-खासा माहौल बन गया था. पूरा इलाका ‘अटल बिहारी वाजपेयी जिंदाबाद’ और ‘वाजपेयी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं’ के नारों से गूंज उठा. राजनीतिक माहौल की सरगर्मी नौजवानों की टोली के सिर पर ऐसे चढ़ी कि वे लोग भी जोरशोर से नारे लगाने में लगे रहे.

सुरक्षा गार्डों की निगरानी में अटल जी हल्के होने लगे

भाषणबाजी खत्म हुई और वाजपेयी जी का काफिला रैलीस्थल से कूच कर गया. इधर नौजवानों की टोली भी अपनी-अपनी साइकिल के पैडल मारते हुए घर की ओर निकली. इत्तेफाक ये रहा कि जिधर से वाजपेयी जी का काफिला निकला था, टोली को उस रास्ते से ही घर जाना था. शहर के बाहर बाईपास सड़क का सुनसान इलाका था. आगे वाजपेयी जी का कारों वाला काफिला और पीछे से साइकिल पर सवार नौजवानों की टोली का काफिला.

अचानक सुनसान सड़क के एक किनारे वाजपेयी जी का काफिला रुका. सफेद रंग की एम्बेस्डर कार से अटल बिहारी वाजपेयी नीचे उतरे. उनके रुकने के साथ ही साइकिल वाली नौजवान टोली भी रुक गई. नौजवान लड़के भीड़ से अलग इतने करीब से पहली बार वाजपेयी जी को देख रहे थे. सो उत्सुकतावश ठहर गए कि देखें इस सुनसान में अटलजी किन कारणों से रुके हैं.

उधर अटलजी झाड़ियों का ओट ढूंढ़ने में लगे थे और एक मुफीद जगह देखकर सुरक्षा गार्डों की निगरानी में ‘हल्का’ होने की प्रक्रिया में लग गए. इस नितांत निजी क्षण की संवेदनशीलता नौजवान लड़के समझ ही नहीं पाए. वो तो अटलजी के ओजस्वी भाषणों और उनकी मजबूत राजनीतिक शख्सियत की छवि से ऐसे प्रभावित थे कि आव देखा न ताव एक लाइन में खड़े हो गए. बिना घटना की नजाकत समझे मौके पर ही ‘अटल बिहारी जिंदाबाद’ और ‘वाजपेयी जी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं’ के नारे लगाने लगे.

अटलजी भौंचक्क कि आवाज कहां से आ रही है. पता नहीं फारिग हुए भी थे कि बीच में ही उठना पड़ गया, वो पीछे मुड़कर देखने लगे. चेहरे पर झिझक और मुस्कान का मिलाजुला भाव था. वहीं से हाथ हिलाया और अपनी कार में सवार हो लिए. काफिला अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़ गया.

अब क्या करें मंद-मंद हवा के बीच हल्का होने का मजा ही कुछ और था

जब अटलजी का काफिला नौजवानों की आंखों से ओझल हो गया तब जाकर उन लोगों के दिमाग की बत्ती जली. ‘ अरे !... अच्छा !... तो ये करने रुके थे अटलजी. हमलोग भी ना...’ नौजवानों की टोली भी हंसते-मुस्कुराते अपने घरों की ओर रवाना हो गई. और ये मजेदार किस्सा अपने घरवालों को सुनाया.

अच्छा!... उस वक्त स्वच्छता-वच्छता का सचमुच में इतने चोंचले नहीं थे. किसी को हैरानी नहीं हुई ये किस्सा सुनकर. वो दौर ही ऐसा था कि लोग ऐसे ही सुनसान सड़क के किनारे ‘हल्का’ होने के लिए रुकते थे. झाड़ियों की झुरमुट में मंद-मंद हवा के बीच ‘हल्का’ होने का मजा ही कुछ और था. बड़े-बुजुर्ग शायद इसलिए ये आदत छोड़ नहीं पाते. राधामोहन सिंह भी उन्हीं में से हैं.

वो दौर मोबाइल का नहीं था. नहीं तो क्या पता नौजवानों की टोली उस ‘नाजुक’ मौके पर भी अटलजी की तस्वीरें उतार लेती. और फिर वो इसी तरह वायरल होती. जैसे आज राधामोहन सिंह की तस्वीरें हो रही हैं.

गांव-गंवई की आदत अब तक नहीं गई है

बहरहाल, अटलजी का किस्सा यूं ही राधामोहन सिंह की वायरल तस्वीर देखकर याद हो आ गया. वैसे देखा जाए तो राधामोहन सिंह कृषि मंत्री हैं और ये उनके जमीन से जुड़े होने का सबूत ही है. गांव-गंवई की आदत अब तक नहीं गई है. बुरा हो मुए उस कैमरा वाले शख्स का. जिसने ऐसे ‘नाजुक’ पल की तस्वीर उतार ली और उसे मीडिया में फैला दिया.

अब कृषिमंत्री हैं तो क्या गांव-जवार की आदत बदल लें. ठीक है… ये स्वच्छता-वच्छता का मिशन अपनी जगह है. लेकिन कहां-कहां ढूंढते फिरें दरवाजा. सीरियसली न लें. होता है ऐसा. राधामोहन सिंह के ‘हल्के’ होने वाली तस्वीरों को हल्के में लिया जाए. माफ किया जाए.