view all

कैसे लगेगी उत्तराखंड के पहाड़ों से पलायन पर रोक?

पलायन इस पहाड़ी राज्य की सबसे भीषण समस्या है और पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी भूभाग की ओर लगातार पलायन कई प्रकार की समस्याओं को जन्म दे रहा है

Namita Singh

पहाड़ से पलायन के गंभीर मुद्दे से निबटने के लिए बीजेपी सरकार ने पिछले वर्ष सितंबर के महीने में जिस पलायन आयोग का गठन किया था, उसकी पहली रिपोर्ट 2 मई को सरकार के सामने पेश कर दी गई. सरकार ने गत सितंबर में भारतीय वन सेवा से रिटायर्ड अधिकारी एसएस नेगी के नेतृत्व में उत्तराखंड पलायन आयोग का गठन कर पलायन की वर्तमान स्थिति और मूलभूत कारणों का अध्ययन करने की दिशा में पहल की थी.

क्या कहती है पलायन आयोग की रिपोर्ट


आयोग का कार्यालय पौड़ी स्थित ग्राम विकास आयुक्त मुख्यालय में बनाया गया है. करीब 9 महीने बाद आयोग ने अब सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. यह रिपोर्ट पलायन के संदर्भ में जो तस्वीर पेश करती है उससे पता चलता है कि पलायन अभी भी जारी है पर पहाड़ दूसरे भूभाग के क्षेत्रों के लोगों को रोजगार के लिए आकर्षित करने लगा है.

ग्रामीण विकास और पलायन आयोग की सात सदस्यीय टीम ने 7950 ग्राम पंचायतों का सर्वे करने के बाद ये पाया कि प्रदेश के 6 पहाड़ी जिलों के 30 विकास खंडों में सबसे ज्यादा पलायन हुआ और प्रदेश में पलायन से खाली हुए भुतहा गांव की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. रिपोर्ट ये भी बताती है की प्रदेश के 800 गांव में रिवर्स पलायन भी हुआ.

पलायन इस पहाड़ी राज्य की सबसे भीषण समस्या है और पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी भूभाग की ओर लगातार पलायन कई प्रकार की समस्याओं को जन्म दे रहा है. जहां उत्तराखंड का मैदानी हिस्सा तुलनात्मक रूप से पहाड़ी क्षेत्रों से ज्यादा प्रगति कर रहा है और बढ़ती जनसंख्या का बोझ उठाने के लिए मजबूर है वहीं लगातार खाली होते पहाड़, इस पहाड़ी राज्य की दूसरी कहानी कहते हैं.

पलायन आयोग की रिपोर्ट बताती है की पलायन से खाली हुए भुतहा गांव की संख्या जहां 2011 की जनगणना में 1034 थी वहीं 2018 में बढ़कर 1734 हो चुकी है. सर्वे में पाया गया की 70% लोग उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों की तरफ और 29% बाकी अन्य राज्यों में रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा के लिए पलायन कर गए.

पलायन और विस्थापन के चलते गांव के गांव वीरान हो गए हैं (फोटो: फेसबुक से साभार)

इन जिलों से हुआ है सबसे अधिक पलायन

2011 की जनगणना के अनुसार पौड़ी और अल्मोड़ा में सबसे ज्यादा पलायन हुआ है और इन रिपोर्ट के अनुसार इन क्षेत्रों में जनसंख्या लगातार घटती जा रही है. 2011 में हुए जनगणना के अनुसार, जहां पौड़ी और अल्मोड़ा में जनसंख्या घटी है वहीं देहरादून और हरिद्वार जिलों में 32.38% से लेकर 33.16% जनसंख्या बढ़ी है.

वर्तमान मुख्यमंत्री और थल सेना प्रमुख विपिन रावत पौड़ी जिले से आते हैं और पौड़ी सबसे ज्यादा पलायन का दंश झेल रहा है. रिपोर्ट की सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि पहाड़ से पहाड़ी पलायन कर रहे हैं लेकिन नेपाली पहाड़ में आकर बस रहे हैं. उनकी जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है.

रिपोर्ट में डेमोग्राफिक परिवर्तन का भी उल्लेख है, जहां पहाड़ के स्थानीय निवासी मैदान और तराई की ओर जा रहे हैं वहीं पिथौरागढ़ और चंपावत जैसे जिलों में नेपाली मजदूर आकर पहाड़ों में स्थाई रूप से बस गए हैं और मजदूरी के अतिरिक्त, जीवन यापन के लिए खेती-बाड़ी का भी काम शुरू कर दिया है. पहाड़ के स्कूलों में नेपाली बच्चों के संख्या लगातार बढ़ रही है. उत्तराखंड से सटे अन्य राज्यों के जिलों से भी लोग पहाड़ी क्षेत्रों में आकर पर्यटन, डेरी आदि में आजीविका कमा रहे हैं.

पलायन आयोग की रिपोर्ट में सौ से अधिक लोगों और संस्थाओं का जिक्र है जिन्होंने मैदानों से पहाड़ में आकर यहां के संसाधनों का प्रयाग रोजगार सृजन में किया जिसमें पर्यटन, डेरी, फूड प्रोसेसिंग, उद्यान और खेती प्रमुख हैं. खासकर नैनीताल जिले के बेताल हाट में काम कर रहे रूरल बीपीओ का जिक्र रोजगार सृजन के मॉडल के तौर पर किया गया है.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

स्वरोजगार से लगेगी पलायन पर रोक

ग्रामीण विकास और पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डा. एस. एस. नेगी ने फ़र्स्टपोस्ट से हुई बातचीत में बताया की पहाड़ में माइग्रेशन को रोकने के लिए केवल स्वरोजगार की दिशा में उठाए कदम ही महत्वपूर्ण हैं. ऑफ सीजन कल्टीवेशन, एपल कल्टीवेशन और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में होमस्टे, एडवेंचर टूरिज्म ऐसे क्षेत्र हैं जहां रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं और काफी लोगों ने इन क्षेत्रों में काम भी किया है जिनकी लिस्ट हम अगले हफ्ते जारी कर देंगे. नेगी ने नैनीताल जिले के रिमोट एरिया में काम कर रहे रूरल बीपीओ बीटूआर का भी जिक्र किया जिसने करीब 300 से 400 बच्चों को टेक्नोलॉजी से जोड़कर रोजगार सृजन किया है.

पिछले साल त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने पहाड़ से पलायन कर गए लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ने की एक मुहिम भी शुरू की थी जिसमें लोगों को अपने बच्चों को गांव लाकर उनकी सेल्फी लेने और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने का अनुरोध किया गया था. 'selfie from my village' के नाम से यह मुहिम पहाड़ से नई पीढ़ी को जोड़ने के प्रयास में उठाया गया एक कदम था.