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#MeTooVsAkbar: जब सच बोलने से ज्यादा मुश्किल सच साबित करना हो जाए

एमजे अकबर ने अपने बयान से साबित कर दिया कि वह वरिष्ठ पत्रकार ही नहीं 'असली' नेता भी हैं जहां हर चीज राजनीति से प्रेरित है और सच बस इतना है कि 10 औरतें मिलकर उनकी छवि बिगाड़ रही हैं...

Pratima Sharma

#MeToo कैंपेन के दूसरे चरण की शुरुआत जब भारत में हुई तो महिलाओं ने भरपूर हिम्मत और जोश दिखाई. इस बार उन्होंने नाम लेने का दम भी दिखाया. उम्मीद थी कि हालात बदलेंगे. बड़े बड़े नामों के खिलाफ खड़ी होने वाली महिलाओं को एकबार के लिए यह भी लगा कि बरसों से जो टीस उनके मन में दबी है, वह खत्म हो जाएगी. लेकिन 67 साल के विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर के ताजा बयान से यह इन महिलाओं को न्याय मिलने की उम्मीद कमजोर पड़ी है.

अकबर करीब 8 दिनों के दौरे के बाद विदेश से लौटे हैं. उनकी वापसी पर हर एक को उम्मीद थी कि वह इस्तीफा देंगे. लेकिन पत्रकारिता के हर गुर से वाकीफ अकबर ने ना गलती मानी और ना इस्तीफा दिया. खुद को पाक साफ करार देते हुए अकबर ने कहा कि उनपर झूठे इल्जाम लगाए गए हैं. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मिलने के बाद उन्होंने अपना एक बयान जारी किया. इस बयान में उन्होंने कहा, 'अगले छह महीने बाद लोकसभा चुनाव है तब इतना बवाल क्यों हैं? मैं अब भारत लौट आया हूं और मेरे वकील इस मामले में एक्शन लेंगे.'


अकबर की शान रहेगी या जाएगी?

एमजे अकबर के इस बयान के दो मायने हैं. पहला, उन्होंने आम महिलाओं के इस #MeToo कैंपेन को एक राजनीतिक एजेंडा बना दिया. 'अब जब चुनाव में 6 महीने बाकी है तब क्यों इतना हंगामा मच रहा है.' दशकों से चली आ रही समस्या पर जब पहली बार महिलाओं ने खुलकर बोलना और नाम लेना शुरू किया तो इसे राजनीतिक रंग देकर मामले को हल्का करने का हुनर किसी 'शातिर' राजनीतिज्ञ की ही हो सकती है.

भारत में #MeToo कैंपेन के जोर पकड़ने के बाद से कई महिलाओं ने अपने बयां की है

एक दो नहीं कुल 9 महिलाओं ने अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की है. इनमें से कई महिलाओं ने कहा कि उनके करियर के शुरुआत में अकबर ने उनका बेजा फायदा उठाने की कोशिश की है. लेकिन अकबर और उनकी पार्टी के लिए इन महिलाओं की शिकायत का कोई मोल नहीं है. यह भारत है जनाब यहां के नेता पर आम आदमी का उंगली उठाना नामुमकिन ना सही लेकिन मुश्किल जरूर है. अब मामला जब एक वरिष्ठ पत्रकार और नेता की हो तो क्या कहने!

भारत है जनाब, यहां कुछ भी आसान नहीं है

हॉलीवुड में जब पहली बार पावरफुल फिल्म प्रोड्यूसर हार्वे वेइंस्टन के खिलाफ अभिनेत्री एशले जुड और रोज मैक्गवान ने आवाज उठाई थी तो उनकी समस्या सिर्फ खुलकर सामने आने तक थी. उनकी बात पर किसी ने शक नहीं किया था. लेकिन भारत में इन महिलाओं को ना सिर्फ बड़े-बड़े नामों के खिलाफ अपनी बात रखनी है बल्कि समाज को यह भरोसा भी दिलाना है कि वह सच कह रही हैं.

अकबर के आज बयान को दूसरे तरीके से देखें तो यह सामने आने वाली महिलाओं के लिए एक खुली चेतावनी है. अव्वल तो मिडिल क्लास की महिलाएं अब तक इस डर से खुलकर सामने नहीं आईं कि लोग क्या कहेंगे? उनके घर वालों पर ऐसे खुलासों का क्या असर होगा? समाज उन्हें कैसे जज करेगा. यानी कुल मिलाकर देखें तो अकबर के बयान ने इस मुहिम को खत्म भले ही नहीं कर पाई हो लेकिन कमजोर जरूर कर दिया है. विदेश से लौटने के बाद अकबर का इस्तीफा देना कितना लाजिमी था, उस बात का अंदाजा पत्रकार और लेखक प्रिया रमानी के ट्वीट से लगाया जा सकता है.

इस्तीफा! ये क्या होता है?

रविवार सुबह अकबर के देश लौटते ही उनके इस्तीफा देने के कयास लगाए जाने लगे थे. उड़ती-उड़ती खबर आई कि उन्होंने अपना इस्तीफा मेल कर दिया है. तब रमानी ने ट्वीट करके कहा कि #MeToo मूवमेंट की यह बड़ी जीत है. लेकिन इसे यहीं खत्म नहीं करना चाहिए. मुझे खुशी है कि एमजे अकबर अब किसी ऑफिस में नहीं होंगे. प्रिया रमानी ही वह पहली महिला पत्रकार हैं जिन्होंने विदेश राज्य मंत्री पर यौन शोषण का आरोप लगाया था.

अकबर अपने खिलाफ आरोप लगाने वाली महिलाओं पर दोतरफा वार कर रहे हैं. एक तरफ वो यह कह रहे हैं कि प्रिया रमानी और गजाला वहाब जैसी पत्रकारों ने उनके साथ काम करना जारी क्यों रखा और दूसरी तरफ इसे राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं.

एक मंजे हुए वकील की तरह उन्होंने कहा कि 'इन लोगों ने उनके साथ काम करना जारी रखा. इससे साबित होता है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी.' उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्हें दिक्कत थी तो इतने साल तक चुप क्यों रहीं. प्रिया...गजाला...रूथ डेविड जैसे 10 नाम जो अकबर के सामने खड़े हैं अब देखना है कि जीत किसकी होती है.