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ये हैं 'अनाथों की मां', भीख मांग कर सैंकड़ों बच्चों को पाला

सिंधुताई वो शख्स हैं, जिसने अनाथों को मां का प्यार दिया और उनका पेट भरने के लिए खुद सड़कों पर भीख मांगी

FP Staff

जिस अनाथ का कोई नहीं उसके लिए सिंधुताई हैं. सिंधुताई वो शख्स हैं, जिसने अनाथों को मां का प्यार दिया और उनका पेट भरने के लिए खुद सड़कों पर भीख मांगी. सिंधुताई को 'अनाथों की मां' और महाराष्ट्र की मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है. उनका जन्म 14 नवंबर, 1948 में महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिंप्री मेघे गांव में हुआ था. उन्हें हमेशा एक आवंछित बच्चे के रूप में देखा गया, जिस कारण उन्हें चिंडी (फटे हुए कपड़े का टुकड़े) नाम दिया गया.

पिता के अलावा किसी ने नहीं दिया प्यार


कहते हैं सिंधुताई के पिता के अलावा उन्हें किसी और न प्यार नहीं दिया. उनके पिता उन्हें पढ़ाना लिखाना चाहते थे. लेकिन सिंधुताई की मां उनकी शिक्षा के खिलाफ थी. जिसके चलते वो सिर्फ चौथी क्लास तक ही पढ़ पाईं और 10 साल की उम्र में उनकी उनसे करीब 20 साल ज्यादा उम्र के एक व्यक्ति संग शादी कर दी गई.

प्रेगनेंसी के वक्त पति ने घर से निकाला

हालांकि इसके बाद भी सिंधु के जीवन में कोई खुशी नहीं आई, बल्कि उनका जीवन पहले से भी बद्तर हो गया. जब वो नौ महीने की गर्भवती थीं तब उनके पति ने उन्हें पीट-पीट कर घर से निकाल दिया था. उस वक्त वो 20 साल की थी. उन्होंने एक गौशाला में अपनी बेटी को जन्म दिया और उसी हालत में कुछ किलोमीटर चलकर अपनी मां के घर शरण मांगने के लिए गईं. लेकिन उनकी मां ने भी उन्हें घर में घुसने से मना कर दिया.

कहां से मिली प्रेरणा

इस सबके बाद अपना और अपनी बेटी का पेट भरने के लिए सिंधुताई ने रेलवे प्लेटफॉर्म पर भीख मांग कर गुजर बसर किया. उन्होंने काफी समय तक भीख मांग कर गुजारा किया और इस दौरान उन्होंने इस बात का एहसास हुआ कि ऐसे अनाथ और माता-पिता द्वारा छोड़े गए बहुत से बेसहारा बच्चे होंगे. खुद इस दुख को झेल रही सिंधुताई ने यहीं से अनाथों को अपनाने का फैसला किया और अभी तक वो करीब 1400 बच्चों को गोद ले चुकी हैं.

आज चला रही हैं ढेरों संस्थाएं

सिंधुताई ने अनाथों को पालने के लिए दिन रात काम किया और चिखलदरा में अपना पहला अनाथालय खोला. फंड जुटाने के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर पैसा जुटाया और जब कभी पैसे की कमी हुई उन्होंने भीख मांगने में भी संकोच नहीं किया. आज वो महाराष्ट्र के कई हिस्सों में ढेरों ऐसी संस्थाएं चला रही हैं, जोकि अनाथ बच्चों को शिक्षा और शरण देने का काम कर रही हैं.

300 से ज्यादा अवार्ड मिल चुके हैं

अपने इस बेमिसाल प्रयास के लिए उन्हें 300 से ज्यादा अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है. यहां तक की उनके जीवन पर 'मी सिंधुताई सकपाल' नाम की मराठी फिल्म भी आ चुकी है. उनके द्वारा बड़े किए गए कई बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर बन गए हैं. आज सिंधुताई का परिवार किसी गांव से भी बड़ा है और जिसमें उनके करीब 207 सन-इन-लॉ, 36 डॉटर्स-इन-लॉ और 1000 से ज्यादा पोते-पोतियां मौजूद हैं.