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पर्यावरण के नाम जीवन: इंजीनियर की नौकरी छोड़ देश भर में बनाए 33 से ज्यादा जंगल

तेजी से तबाह होते जंगलों के कारण आज ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है.

FP Staff

दुनिया को बचाने के लिए जंगलों को बचाना बेहद जरूरी है. तेजी से तबाह होते जंगलों के कारण आज ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम में अजीबो-गरीब बदलाव देखने को मिल रहा है. इस कारण जहां कम बारिश होती है वहां बाड़ की स्थिति पैदा हो रही है, जबकि अच्छी बारिश वाले इलाकों में सूखे पड़ रहा है. ऐसे में जंगलों और पेड़ों को बचाना बेहद जरूरी है. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपना जीवन पर्यावरण की रक्षा के नाम कर दिया है.

कहां से मिला आइडिया ?


इंडस्ट्रियल इंजीनियर की नौकरी छोड़ जंगलों की रक्षा के लिए कदम बढ़ाने वाले शुभेंदू अभी तक देश भर में 40 से ज्यादा जंगल पैदा कर चुके हैं. आपको ये जानकर हैरानी जरूर होगी पर ये बात सच है. द बेटर इंडिया के मुताबिक, इस सब की शुरुआत तब हुई, जब शुभेंदू नेचुरलिस्ट अकीरा मियावाकी को टोयोटा प्लांट में जंगल को विकसित कराने में असिस्ट कर रहे थे. तभी शुभेंदू ने इस तकनीक को भारत में शुरू करने की सोची. मियावाकी की तकनीक की मदद से थाइलैंड से लेकर अमेजन तक जंगलों को दोबारा उगाया गया था.

खुद के घर से की शुरुआत

इसके बाद शर्मा ने मियावाकी के मॉडल पर एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया और कुछ बदलावों के साथ इसका इंडियन वर्जन बनाया. उन्होंने सबसे पहले उत्तराखंड में अपने घर के बैकयार्ड में ही जंगल उगाने का प्रयास किया और वो एक साल में हरा भरा जंगल उगाने के अपने प्रयास में सफल भी हुए. इसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी और करीब एक साल तक रिसर्च में जुटे रहे. तब जाकर काफी प्लानिंग और रिसर्च के बाद शुभेंदू ने 'एफोरेस्ट' की शुरुआत की. जोकि नेचुरल, वाइल्ड, मैंनटेनेंस फ्री जंगल बनाने की सर्विस मुहैया कराती है.

कैसे काम करती हैं Afforest ?

खुद का जंगल बनाने में मदद करने के लिए एफोरेस्ट दो तरह से काम करती है. पहली है उसकी एंड टू एंड सर्विस, जहां वो प्रोजेक्ट एग्जिक्यूशन से लेकर लेबर तक उपलब्ध कराती है और दूसरे तरीके में वो प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और सॉफ्टवेयर सपोर्ट देती है.

जंगल बनाने का सारा प्रोसेस मिट्टी के सर्वे से शुरू होता है और इसके लिए कम से कम 1000 स्कवायर फीट की जरूरत पड़ती है. इसके बाद देशी पौधे प्रजातियां और बायोमास पर स्टडी की जाती है. सर्वे के बाद पौधों को नर्सरी में बनाया जाता है और मिट्टी को ज्यादा उपजाऊ बनाने के लिए बायोमास से मिक्स किया जाता है. इसके बाद पौधे लगाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. वहीं लास्ट स्टेज में पूरे इलाके में पौधों को पानी देने आदि का काम होता है. जिससे आपको साल दो साल में खुद का जंगल मिल जाता है.

(फोटो: शुभेंदू शर्मा की फेसबुक वॉल से)