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मेडिकल एडमिशन घोटाला: ओडिशा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज गिरफ्तार

इस मामले में सीबीआई ने दो आईएएस और 11 सरकारी अधिकारियों तथा निजी मेडिकल कॉलेज प्रशासकों के खिलाफ केस दर्ज किया है

FP Staff

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धत्ता बताना ओडिशा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज को मंहगा पड़ गया. सीबीआई ने ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश इशरत मसरूर कुद्दुसी और चार अन्य को गिरफ्तार किया है. अब इन्हें दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया. इसके बाद उन्हें चार दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया.

सीबीआई का आरोप है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में योग्य छात्रों को दाखिला से वंचित रखा गया. जबकि अयोग्य लेकिन पैसेवाले छात्रों को दाखिला दे दिया गया. लोक सेवकों ने निजी अस्पताल के अधिकारियों के साथ आपराधिक साजिश रचते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया.

यह मामला जब न्यायालय के पास गया तो इसे रफा दफा कर दिया गया. मामला नए सत्र 2017 की है.

गिरफ्तारी बुधवार को आठ स्थानों पर छापेमारी के बाद देर रात की गई. इस दौरान ग्रेटर कैलाश में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) कुद्दुसी के आवास की भी तलाशी ली गई थी. इसके अलावा भुवनेश्वर और लखनऊ में भी छापे मारे गए थे.

सीबीआई सूत्रों ने बताया कि मामले में गिरफ्तार हुए अन्य व्यक्तियों में लखनऊ में एक मेडिकल कॉलेज चलाने वाले प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के बीपी यादव और पलाश यादव, एक बिचौलिया विश्वनाथ अग्रवाल और हवाला कारोबारी रामदेव सारस्वत शामिल हैं.

प्रवक्ता ने बुधवार को बताया था कि एक मेडिकल कॉलेज को नए छात्रों को प्रवेश देने से रोके जाने के मामले को कथित तौर पर रफा दफा करने के लिए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है.

स्नातकोत्तर मेडिकल कोर्स में प्रवेश में कथित अनियमितताओं के संबंध में जांच एजेंसी और सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के वर्तमान और रिटायर्ड जजों की भूमिका की भी जांच कर रहे हैं.

बता दें कि इस मामले में सीबीआई ने दो आईएएस और 11 सरकारी अधिकारियों तथा निजी मेडिकल कॉलेज प्रशासकों के खिलाफ केस दर्ज किया है. इन आईएएस अधिकारियों में पुडुचेरी के स्वास्थ्य सचिव बीआर बाबू और केंद्रीय प्रवेश समिति के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज भी जांच के दायरे में 

वहीं सुप्रीम कोर्ट इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एसएन शुक्ला और वीरेंद्र कुमार की भूमिका की भी जांच कर रही है. प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में ऐडमिशन के लिए इन्होंने इजाजद दी थी, जबकि इसके विपरीत सर्वोच्च अदालत ने किसी भी हाई कोर्ट को ऐसा न करने का आदेश दिया था.

सीबीआई प्राथमिकी के अनुसार, आरोपी अधिकारियों ने 96 छात्रों के साथ धोखाधड़ी की, जिन्हें केंद्रीकृत प्रवेश समिति द्वारा काउंसलिंग के दौरान अस्थायी प्रवेश प्रमाणपत्र जारी किया गया था लेकिन बाद में उन्हें आवंटित सीटें देने से इनकार किया गया.