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विस्थापितों के बहाने अपना पुनर्वास तलाश रही हैं मेधा पाटकर

मेधा पाटकर का इस बार का मुद्दा सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई के कारण विस्थापित हो रहे लोग हैं

Dinesh Gupta

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर एक बार फिर अपने पुनर्वास की कोशिश में लगी हुई हैं. इस बार मुद्दा सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई के कारण विस्थापित हो रहे लोग हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद डूब क्षेत्र में रहने वाले लोगों को 31 जुलाई तक जगह खाली करना है. मेधा पाटकर पुनर्वास स्थल विकसित न होने का आरोप लगा रही हैं.

नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेताओं के सक्रिय होने के कारण प्रभावित क्षेत्र पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है. जैसे-जैसे डेड लाइन नजदीक आ रही है, नर्मदा घाटी में तनाव की स्थिति बनती दिखाई दे रही है.


नर्मदा बचाओ आंदोलन ने एमपी सरकार द्वारा दिए गए उनके ही राजपत्र से कई गलतियां उजागर की हैं. उन्होंने दावा किया कि एमपी सरकार की पोल खोलने के सबूत राजपत्र में ही हैं.

मेधा पाटकर कहती हैं कि सरदार सरोवर परियोजना में एमपी सरकार द्वारा गत 25 मई के दिन गजट पारित किया गया है. इसमें अपात्र विस्थापितों का नाम भी है, अन्यत्र निवास कर रहे लोगों का नाम भी है. जो विस्थापित पुनर्वास स्थल पर निवासरत हैं, उनका भी नाम है. जिन विस्थापितों को बैक वाटर लेवल से बाहर किया गया है, उसका भी नाम दर्ज किया गया है. एमपी सरकार के गजट में 18 हजार 386 परिवारों को 31 जुलाई 2017 तक हटाने की बात की गई है.

चिपको आंदोलन की तर्ज पर नर्मदा आंदोलन

उत्तराखंड के टिहरी बांध के आंदोलन की तर्ज पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भी जिले में चिपको आंदोलन शुरू किया है. पेड़ बचाने के इस आंदोलन की शुरुआत नर्मदा किनारे राजघाट से की गई है. यहां पर 100-200 साल पुराने पेड़ों से चिपककर और गले लगाकर आंदोलनकारियों ने घाटी के पेड़ों को कटने से बचाने का संकल्प लिया. इस दौरान कार्यकर्ताओं ने पेड़ोंं से कहा कि न तो हम तुम्हें काटने देंगे और न ही पूर्ण पुनर्वास होने तक हम हटेगें.

ज्ञातव्य है कि उत्तराखंड के टिहरी जिले में गंगा नदी की मुख्य सहायक नदी भागीरथी पर टिहरी बांध बना है. 1990 में बांध की डूब से प्रभावित लाखों पेड़ों को कटर मशीनों से काटने का काम सरकार ने शुरू करवाया था. इसके विरोध में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चिपको आंदोलन शुरू किया गया था. उस समय हजारों आंदोलनकारियों ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए मशीनों के आगे पेड़ों से लिपटकर संरक्षण किया था.

उग्र आंदोलन के चलते तत्कालीन सरकार को पेड़ काटने का काम रोकना पड़ा. इसी राह पर नबआं ने भी पेड़ बचाने का अभियान शुरू किया है.

प्रभावित गांव न छोड़ने पर अड़े

31 जुलाई तक गांव खाली करने के अल्टीमेटम के बाद भी प्रभावित संपूर्ण पुनर्वास होने तक मूल गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं, वहीं प्रशासन के सामने गांव खाली करवाने के लिए सिर्फ 25 दिन ही शेष हैं. ऐसे में प्रभावितों को मनाने के लिए प्रशासन ने पैकेज स्कीम तैयार की है.

नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रजनीश वैश ने बताया कि प्रभावितों को 60 हजार रुपए मकान किराए के तौर पर और बीस हजार रुपए की राशि तीन महीने के भोजन-पानी के लिए अलग से दी जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार साठ लाख रुपए तक मुआवजा भी दिया जा रहा है. वैश ने दावा किया 31 जुलाई से पहले पुनर्वास स्थल सुविधाओं से पूर्ण हो जाएगा. वैश ने बताया कि जिन विस्थापितों ने प्लॉट बेच दिए हैं. उन्हें सरकार फिर से प्लॉट दे रही है, जिनके पास प्लॉट है, उन्हें मकान बनाने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना में राशि दी जा रही है.

इधर, ग्रामीणों का आरोप है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा ग्रामीणों का पुनर्वास किए बगैर ही घरों पर लाल निशान लगा उन्हें पुनर्वासित दिखा रहा है. उल्लेखनीय है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण सरदार सरोवर प्रभावित परिवारों के घरों पर लाल क्रॉस के निशान लगा रहा है.

इस निशान का अर्थ संपूर्ण पुनर्वास से है और ऐसे परिवारों को कोई अन्य लाभ दिया जाना शेष नहीं है. इस पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि जिन प्रभावितों के घरों पर ये निशान अंकित किए हैं उनका पुनर्वास अभी पूर्ण नहीं हुआ है. ऐसे में मकानों पर निशान लगाना गलत है.

क्या है सरदार सरोवर परियोजना

सरदार सरोवर परियोजना सिंचाई, विद्युत और पेयजल के लाभों हेतु एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो चार राज्यों क्रमश: गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान द्वारा संयुक्त उपक्रम के रूप में क्रियान्वित की जा रही है. इस परियोजना के अन्तर्गत गुजरात में नर्मदा नदी पर 1,210 मीटर लंबा और 163 मीटर ऊंचाई पर कॉन्क्रीट गुरूत्व बांध का निर्माण किया जा रहा है.

इस परियोजना की सक्रिय भंडारन क्षमता 5,800 मिलियन घन मीटर (4.73 मिलियन एकड़ फीट) और इसकी 458 किमी लंबी पक्की नर्मदा मुख्य नहर द्वारा (शीर्ष प्रवाह 1.133 घन मीटर प्रति सेकेन्ड) गुजरात में 17.92 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर वार्षिक सिंचाई करने का प्रावधान है.

इसके साथ ही राजस्थान को आवंटित 616 मिलियन घन मीटर (0.5 मिलियन एकड़ फीट) नर्मदा जल का संवहन, राजस्थान के बाड़मेर और जालोर जिलों की कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र की 246 लाख हेक्टेयर भूमि पर वार्षिक सिंचाई करने का प्रावधान है. इस परियोजना के नदी तल विद्युत गृह की निर्धारित क्षमता 1,200 मेगावॉट और नहर शीर्ष विद्युत गृह की निर्धारित क्षमता 250 मेगावॉट द्वारा जल विद्युत का उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है.

गुजरात राज्य को आवंटित 9 मिलियन एकड़ में पेयजल, नगरीय और औद्योगिक क्षेत्रों के उपयोग में लाने हेतु प्रावधान किया गया है.

इसी प्रकार राजस्थान को आवंटित 616 मिलियन घनमीटर जल की मात्रा में से बाड़मेर एवं जालोर जिलों के कृषि योग्य कमाण्ड क्षेत्र की 2.46 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ दो शहरों एवं 1107 गाँवों में पेयजल आपूर्ति करने हेतु प्रस्ताव बनाए गए हैं.

गुजरात में समृद्धि का नया दौर शुरू होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान सरदार सरोवर बांध का जिक्र भी किया था. प्रधानमंत्री ने कहा कि नर्मदा नदी के सरदार सरोवर बांध के गेट बंद होने के साथ ही गुजरात की समृद्धि का नया दौर शुरू हो गया है.

मोदी ने कहा कि पानी की उपलब्धता गुजरात के लिए एक बड़ी बात रही है. पहले पानी पर ही इतना पैसा खर्च होता था कि अन्य योजनाओं पर असर होता था. उन्होंने कहा कि नर्मदा परियोजना के लिए सभी सरकारों ने काम किया है, इसमें कोई राजनीति जैसी बात नहीं है. इसके दरवाजे लगने के मामले कुछ बाधाएं थीं पर अब वह सब कुछ दूर हो चुका है.

गुजरात के लोग पानी का महत्व समझते हैं. उन्होंने कहा कि नर्मदा के दरवाजे बंद होने के साथ ही गुजरात के समृद्धि के दरवाजे खुलने के अवसर के लिए वह शीघ्र ही गुजरात का एक और दौरा करेंगे. बांध पर बने 30 दरवाजे हाल में बंद करने के बाद से इसमें जल का संग्रहण स्तर करीब पौने चार गुना बढ़ गया है, जिससे गुजरात में जल की उपलब्धता की समस्या के काफी हद तक हल होने की उम्मीद है.

दूसरी ओर मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि सरदार सरोवर बांध के फाटकों के बंद होने से 192 गांवों में 40,000 लोग प्रभावित होंगे. इनके पुर्नवास की कोई योजना नहीं है. गुजरात के फायदे के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले पर चुप्पी साध रखी है.

उन्होंने आगे कहा कि गुजरात में अगले साल चुनाव होना है और वे किसी भी तरह भुज को पानी देना चाहते हैं और इसके लिए मध्यप्रदेश के विस्थापितों की पुर्नवास की चिंता किए बगैर बांध के फाटकों को बंद कर रहे हैं. नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध की नींव रखे जाने के 56 साल बाद विवादित बांध के फाटकों को केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद 17 जून को गुजरात सरकार ने बंद कर दिया.

यह है सरदार सरोवर के पानी का गणित

सरदार सरोवर बांध के सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं. पूरे गुजरात में इसे लेकर खासा उत्साह है. बांध का जो पानी अब तक समुद्र में व्यर्थ बह जाता था, वह अब सूखा प्रदेश गुजरात में पीने एवं सिंचाई के लिए पर्याप्त मुहैया होगा.

नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की ओर से बांध के दरवाजे बंद करने की अनुमति मिलने के कुछ घण्टों बाद ही मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने सरोवर नर्मदा बांध के दरवाजे बंद करने का शुभांरभ किया और शाम तक नर्मदा बांध के सभी 30 दरवाजे बंद कर दिए. इससे अब मानसून में बांध की पूरी क्षमता के साथ नर्मदा का पानी संग्रहित हो सकेगा.

दरवाजों के चलते सरदार सरोवर नर्मदा बांध की पूरी क्षमता की ऊंचाई 138.68 मीटर पहुंच गई है, जो पहले दरवाजों के बिना 121.92 मीटर थी. अब दरवाजे बंद करने से जहां बांध में 4.73 मिलियन एकड़ फीट (पौने चार गुना) पानी बढ़ जाएगा. इससे प्रदेश के सुदूर स्थित सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र सौराष्ट्र, कच्छ एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र साबरकांठा, बनासकांठा आदि इलाकों तक पर्याप्त रूप से नर्मदा का पानी पहुंचेगा.

नर्मदा नहर, सौनी योजना, सुजलाम सुफलाम आदि के जरिए गुजरात में करीब 18 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा मिलेगी. जहां अब तक 6.8 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई की सुविधा मिल पाती है. अर्थात लगभग बारह लाख हेक्टेयर क्षेत्र अतिरिक्त सिंचित होगा.

प्रदेश के शहर-नगरों में लोगों के पीने के लिए भी नर्मदा का पानी उपयोगी है. बांध के दरवाजे बंद करने से राजस्थान को भी और ज्यादा पानी मिलना संभव होगा. सरदार सरोवर में पानी का जलस्तर बढ़ेगा, इससे वहां स्थित पन बिजली संयत्रों में पन बिजली का उत्पादन लगभग 40 फीसदी बढ़ जाएगा.

सरदार सरोवर के बिजली संयत्रों में पूरी क्षमता के साथ रोजाना लगभग 1450 मेगावॉट पन बिजली का उत्पादन होगा. इसका अधिकतम लाभ राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को होगा.

डूब क्षेत्र में आ रही है बापू की समाधि

बड़वानी जिला मुख्यालय के समीप राजघाट में नर्मदा तट स्थित महात्मा गांधी की समाधि डूब क्षेत्र में आने के कारण कुकरा बसाहट में उसका विस्थापन तय किया गया था, लेकिन समाधि के विस्थापन के लिए आवंटित भूमि पर मकान बनाने के लिए जब एक ग्रामीण पहुंचा, तो पता चला कि 2014 में यह भूखंड किसी अन्य को आवंटित कर दिया गया है. स्थिति को देख कुकरा बसाहट के लोगों ने आपत्ति ली और काम को रुकवाया.

ज्ञातव्य है कि वर्ष 2004 में तत्कालीन कलेक्टर चंद्रहास दुबे की उपस्थिति में बापू समाधि के विस्थापन के लिए कुकरा बसाहट में भूखंड क्र. 174 आवंटित किया गया था. 16 अप्रैल 2012 को ग्राम पंचायत भीलखेड़ा में आयोजित ग्राम सभा में समाधि स्थल के निर्माण के लिए ठहराव प्रस्ताव कर जल्द निर्माण शुरू करने की मांग की गई थी. साथ ही उक्त स्थल पर पौधारोपण भी किया गया था.

इसके बाद 1 सितंबर 2014 को पुनर्वास अधिकारी द्वारा राजलबाई पति सोमा को भूखंड क्र. 174 आवंटित कर दिया गया. इस पर पंचायत ने 16 सिंतबर 2014 को एक बार फिर लिखित आपत्ति ली गई थी. लेकिन उक्त स्थल पर आज तक कोई निर्माण कार्य जारी नहीं किया गया.

रोहिणी तीर्थ राजघाट का इतिहास पुराना है. शाही दरबार द्वारा 1914 से 1937 के मध्य तक इसकी स्थापना की गई थी. सबसे पहले 1914 में श्रीदत्त मंदिर, 1925 में नर्मदा घाट, 1930 में धर्मशाला, 1937 में श्री शंकर मंदिर तथा 1965 में महात्मा गांधी का स्मारक स्थापित किया गया था. इसी तरह यहां नर्मदाजी, हनुमानजी का मंदिर व रामकुटी भी है. रोहिणी तीर्थ धार्मिक और आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है. यहां राष्ट्रीय के साथ धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहरों का समावेश है.