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एमसीडी चुनाव 2017: पार्टी उम्मीदवारों को खुद से ज्यादा मच्छरों पर क्यों है भरोसा

पिछले पांच-छह सालों से दिल्ली में मच्छरों के नाम पर खूब राजनीति की गई है

Ravishankar Singh

एमसीडी चुनाव में मच्छर भले ही भाग नहीं ले रहे हों पर मच्छरों की चर्चा जरूर होने वाली है.

भारतीय फिल्मों में दिल्ली शहर को लेकर कई तरह के गाने फिल्माए गए हैं. 'दिल्ली की सर्दी' के बाद अब एमसीडी चुनाव में आपको दिल्ली के मच्छरों के बारे में भी गाने सुनने को मिलेंगे. कई राजनीतिक पार्टियां और उनके उम्मीदवार मच्छरों पर गाना तैयार करवा रहे हैं.


इस बार के एमसीडी चुनाव में डेंगू और चिकनगुनिया का मुद्दा भी एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है. पिछले कई सालों से दिल्ली में चिकनगुनिया और डेंगू जबरदस्त तरीके से पैर पसार रहा है. 2017 के दिल्ली नगर निगम चुनाव में जनप्रतिनिधियों से एक बड़ी उम्मीद डेंगू और चिकनगुनिया से निजात दिलाने के लिए एक ठोस पहल की होगी.

पिछले साल चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या 9 हजार को पार कर गई थी. उस समय चिकनगुनिया की समस्या को लेकर दिल्ली के राजनीतिक दलों में काफी बहस भी हुई थी. राजनीतिक दलों में खास कर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने चिकनगुनिया और डेंगू को लेकर बीजेपी पर जबरदस्त हमले किए थे. एमसीडी में बीजेपी की सरकार होने के कारण बीजेपी बैकफुट पर चली गई थी.

एमसीडी चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने दिल्ली में पनपते मच्छरों को भी मुद्दा बना लिया है. विपक्षी पार्टियों के नेताओं का कहना है कि नगर निगम में पिछले 10 साल से बीजेपी की सरकार है. दिल्ली में साफ-सफाई के नाम पर सिर्फ पैसों की लूट हुई है. एमसीडी के ढुलमुल रवैये के कारण दिल्ली में एडिस मच्छरों ने जबरदस्त तरीके से पैर पसारे हैं.

दिल्ली में पिछले कुछ सालों से डेंगू और चिकनगुनिया के कारण लगातार मौतें हो रही हैं. हर साल ठोस पहल की बात की जाती है पर आने वाले साल में फिर से वही कहानी दुहराती रहती है.

लोग बीमार होते रहते हैं और मौतें भी होती रहती है. नेताओं के बयान आते रहते हैं और सीजन खत्म होते ही बयान गायब हो जाते हैं. यही सिलसिला लगातार पिछले कुछ सालों से चल रहा है.

जानकार मानते हैं कि दिल्ली शहर में मच्छरों के पनपने का सबसे बड़ा कारण है शहर में जलभराव की समस्या. शहर में हर साल जलभराव के कारण एमसीडी की तैयारियों पर मच्छरों का लार्वा भारी पड़ता रहता है.

साल 2010 में पहली बार कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान एडिस मच्छर देखे गए थे. कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान निर्माणधीन साइटों पर मच्छरों की ब्रीडिंग देखी गई थी.

साल 2010 से अब तक डेंगू के सबसे अधिक 50 हजार मरीजों की पुष्टि की गई है. साल 2016 में एडिस मच्छर का असर डेंगू के रूप में कम और चिकनगुनिया के रूप में अधिक नजर आया था.

साल 2016 में दिल्ली का कोई भी अस्पताल ऐसा नहीं था जहां पर चिकनगुनिया का मरीज भर्ती नहीं था. दिल्ली के अस्पतालों का आलम ये था कि मरीजों को बेड नहीं मिलने के कारण घर लौटना पड़ रहा था. अस्पतालों में बेड न होने के कारण मरीज फर्श पर ही लेट जाते थे.

साल 2016 में दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में डेंगू के 4 हजार से अधिक मामले सामने आए. जबकि, चिकनगुनिया के 9 हजार से अधिक मामले सामने आए. पिछले साल दिल्ली में मलेरिया के केसों में कमी आई थी.

साल 2015 में डेंगू के 15 हजार 811 मामले सामने आए थे. चिकनगुनिया के सिर्फ 58 मामले सामने आए थे. साल 2014 में डेंगू के 940 मामले और चिकनगुनिया के सिर्फ 58 मामले सामने आए थे. वहीं साल 2013 में डेंगू के 5 हजार 546 मामले सामने आए और चिकनगुनिया के 8 मामले सामने आए थे. साल 2016 से अब तक मलेरिया से 15 लोगों की मौत हो चुकी है.

दिल्ली में कई कारणों से मच्छरों की ब्रीडिंग बढ़ती है. दिल्ली की मच्छरों पर भी अब राजनीतिक नेताओं को तरह मच्छरमार दवाओं का असर नहीं देखा जा रहा है. मच्छरों से बचाव के लिए एमसीडी टेमीफॉस और फॉगिंग के जरिए रसायन का इस्तेमाल करती है.

एमसीडी के इस प्रयास को साल 2016 में कैग रिपोर्ट ने खारिज कर दिया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि एमसीडी में मच्छरों की निगरानी बेहतर तरीके से नहीं की गई. नगर निगम ने 42.85 करोड़ रुपए मच्छर रोधी ऐसे उपायों पर खर्च किए गए, जिसे राष्ट्रीय मच्छर जनित बीमारी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत स्वीकृत हीं नहीं किया गया था.

पिछले पांच-छह सालों से दिल्ली में मच्छरों के नाम पर खूब राजनीति की गई है. इस बार के एमसीडी चुनाव में भी मच्छरों के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है. जिन लोगों को राजनीतिक दलों से टिकट नहीं मिलने वाले हैं, वे लोग मच्छर चुनाव चिन्ह लेकर जनता के बीच जाना चाहते हैं. ऐसे में आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली चुनाव आयोग के पास भी मच्छर चुनाव चिन्ह की मांग करने वालों की लंबी लाइन लगनी वाली है.