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डिंपल यादव और मायावती के जन्मदिन का जश्न यूपी की नई सियासत कहानी कह रहा है

उत्तर प्रदेश की राजनीति में संयोग इस कदर गुल खिलाएगा इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी.

Pankaj Kumar

उत्तर प्रदेश की राजनीति में संयोग इस कदर गुल खिलाएगा इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी. इसे संयोग नहीं तो क्या कहा जाए कि 15 जनवरी को सूबे की दो बेहद महत्वपूर्ण महिलाओं ने अपना जन्मदिन मनाया. एक महिला प्रत्यक्ष तौर पर 80 के दशक से राजनीतिक मैदान में राजनीति की दशा और दिशा बदलती रही हैं वहीं दूसरी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी हैं और प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सांसद के तौर पर सक्रिय हैं.

दोनों महिलाएं चाहे मायावती हों या डिंपल यादव दोनों का उत्तर प्रदेश की राजनीति में गहरा प्रभाव है. कमाल की बात यह है कि 12 जनवरी को यूपी में महागठबंधन के बैनर तले मायावती और अखिलेश यादव ने हाथ क्या मिलाया उसके बाद 25 साल पुरानी तल्खी को दोस्ती में बदलने करने का हर मौका भुनाया जाने लगा है.


सूबे की राजनीति में 12 जनवरी को आई गर्माहट को जश्न के तौर पर मनाने का इससे शानदार मौका गठबंधन के समर्थकों के लिए और क्या होगा. एक तरफ आयरन लेडी कही जाने वाली मायावती के समर्थक उनके जन्मदिन पर खुशियों का इजहार खुलेआम कर रहे हैं वहीं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पत्नी और कन्नौज की सांसद डिंपल यादव के जन्मदिन को भी कार्यकर्ता बड़े ही उत्साह से मनाते दिख रहे हैं.

जाहिर है बुआ और बहु के जन्मदिन के मौके पर प्रदेश की राजनीतिक फिजा बदलने जोरदार प्रयास सड़क से लेकर राजनीतिक गलियारे तक में जारी है. इस बाबत बुआ मायावती ने अपनी प्रेस वार्ता में साफ तौर पर कहा है कि उन्हें बर्थडे गिफ्ट के तौर पर ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें चाहिए और उनके कार्यकर्ता सपा और बसपा के प्रत्याशी को जिताने का जी तोड़ प्रयास करें.

वहीं डिंपल यादव को ट्विटर पर सरल मैसेज लिखकर पति अखिलेश यादव ने जन्मदिन की बधाई दी. लेकिन समर्थक इसे खास बनाने का मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे. वैसे डिंपल इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी लेकिन पति अखिलेश यादव विजयी रथ पर सवार हों इसका भरपूर प्रयास जारी करेंगी.

सपा में भाभी जी के तौर पर मशहूर डिंपल यादव का जन्मदिन इस बात से भी ज्यादा खास हो गया है कि उनके पति अखिलेश यादव ने महज 3 दिन पहले मायावती के साथ गठबंधन कर प्रदेश की राजनीति को एक नया मोड़ देने का प्रयास किया है. इसी वजह से इस साल का 15 जनवरी कई मायने में बसपा और सपा दोनों के लिए अहम हो चुका है.

डिंपल फिलहाल कन्नौज से सांसद हैं और पिछले लोकसभा 2014 में बीजेपी को हराकर सांसद बनी हैं. महिलाओं के मुद्दे पर हमेशा मुखर रही डिंपल अपनी सादगी और संजीदगी के लिए जानी जाती रही हैं. महिला हेल्पलाइन 1090 उत्तर प्रदेश में उन्हीं की देन है ऐसा कहा जाता है. पति के सीएम रहते महिला उत्पीड़न के खिलाफ वो काम करती रही हैं.

लेकिन मायावती की इमेज ठीक उनके उलट है. उनकी जिंदगी से जुड़ा हर महत्वपूर्ण मौका काफी बड़े लेवल पर ग्रांड तरीके से मनाया जाता है. हर साल उनके जन्मदिन को करोड़ों कार्यकर्ता इकट्ठा होकर एक जश्न के तौर पर मनाते हैं और कड़े तेवर रखने वाली मायावती कड़े प्रशासनिक फैसले को लेकर जानी जाती रही हैं.

जाहिर है दोनों महिलाओं के स्वभाव अलग हैं लेकिन उनका एक साथ आना प्रदेश के लिए कौतुहल का विषय बना हुआ है. इसलिए सोमवार को सपा के एक विधायक ने गठबंधन को लेकर यह कह डाला कि अखिलेश जब तक मायावती की हां में हां मिलाते रहेंगे तब तक गठबंधन की गांठ मजबूत रहेगी लेकिन थोड़ा भी मतांतर होगा तो गांठ खुलने में देर नहीं लगेगी.

वैसे सार्वजनिक जीवन में मायावती को कड़े फैसले और कड़े तेवर वाली नेता के रूप में पहचान मिल पाई है लेकिन निजी जिंदगी में उनके कुछ वाकये उन्हें बेहतरीन दोस्त और रिश्ते निभाने वाली महिला के तौर भी स्थापित करते हैं.

जिस गेस्टहाउस कांड के बाद बीएसपी और एसपी में दरारें पाटना नामुमकिन सा दिखाई पड़ने लगा था मायावती उसे दरकिनार कर सपा से हाथ मिलाकर चलने को तैयार हैं. मायावती उस दिवंगत बीजेपी नेता को नहीं भूल पाई हैं जो गेस्टहाउस कांड के दरम्यान अपनी जान जोखिम में डालकर मायावती के साथ हुई बदसलूकी के खिलाफ खड़े हुए थे.

कहा जाता है कि ब्रह्म दत्त ने जान पर खेलकर मायावती की जान बचाई थी इसलिए ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या के बाद मायावती फूट-फूट कर रोई थीं. इतना ही नहीं उनके परिवार को जिताने के लिए मायवती ने हमेशा प्रचार किया और हरसंभव मदद भी की.

फिलहाल बदली फिजा में लोग गेस्टहाउस कांड को याद नहीं करना चाहते हैं खास कर वो समर्थक जो मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा और बसपा के महागठबंधन पर बेहद खुश हैं. उन्हें उम्मीद है मुलायम और कांशीराम ने जिस तरह सफल प्रयोग किए थे ठीक 25 साल बाद वही प्रयोग दोहराया जा रहा है और कमल के रथ को रोकने में ये कारगर सिद्ध होगा. जाहिर है जश्न मनाने का इससे बढ़िया मौका और क्या हो सकता है जब एक ही दिन अखिलेश यादव की 'बुआ' मायावती और धर्मपत्नी डिंपल यादव का जन्मदिन हो.

1999 में अखिलेश यादव और डिंपल की शादी हुई थी. अखिलेश और डिंपल के तीन बच्चे हैं. लेकिन डिंपल और अखिलेश घरवालों को शादी के लिए चार साल तक मनाते रहे. तब जाकर कहीं दोनों की शादी हो पाई. शादी के वक्त अखिलेश 25 साल के थे. कहा जाता है कि मुलायम अखिलेश और डिंपल की शादी के लिए राजी नहीं थे.

लेकिन बाद में अमर सिंह के मनाने के बाद मुलायम सिंह यादव मान गए. एक राजनीति से जुड़े परिवार में आने के बाद डिंपल भी राजनीति में आईं. साल 2009 में डिंपल यादव ने फिरोजाबाद से चुनाव लड़ा. लेकिन राज बब्बर से उन्हें हार मिली. 2014 में वह अखिलेश यादव की संसदीय सीट रही कन्नौज से चुनाव मैदान में उतरीं.

यहां उन्होंने 20 हजार वोटों से जीत हासिल की और पहली बार लोकसभा पहुंचीं. कन्नौज में बसपा-कांग्रेस ने उनके खिलाफ अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे. डिंपल यादव एक घरेलू महिला के रूप में भी देखी जाती हैं. जब अखिलेश परेशान होते हैं तो वो लगातार उन्हें सलाह देती रहती हैं. व्यस्त होने के बावजूद भी डिंपल बच्चों को पढ़ाती हैं. डिंपल 2019 में कहां से चुनाव लड़ेंगी ये साफ नहीं हो सका है. लेकिन हो सकता है कि वो दोबारा कन्नौज से ही चुनाव लड़ें.