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'शादी सेक्स करने का कानूनी अधिकार नहीं है'

दिल्ली की एक अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि इसका मतलब यह नहीं है कि पति को अपनी पत्नी की अनुमति या सहमति के बिना सेक्स करने की निरंकुश आजादी है

FP Staff

शादी के भीतर होने वाले रेप यानी वैवाहिक बलात्कार को कानूनी रूप देने पर भारत में अभी बहस चल ही रही है. इस वजह से विवाह के भीतर भी रेप होते हैं इसे किसी भी तरह से संज्ञान में लेने वाले फैसले काफी कम ही सुनने को मिलते हैं. हाल ही में दिल्ली की अदालत ने एक पति द्वारा तलाक के लिए दायर की गई याचिका की सुनवाई के दौरान इसे संज्ञान में लिया है.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पति अपनी पत्नी के साथ किए गए यौन हिंसा और घरेलू हिंसा संबंधित दुर्व्यवहार और अपमान को सही नहीं ठहरा सकता. अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि हालांकि हमारे देश में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है लेकिन इसके तहत पत्नी को दी गई मानसिक प्रताड़ना और उसके साथ किया गया अपमानजनक व्यवहार, पत्नी के संविधान द्वारा दिए गए जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.


पति की याचिका खारिज करते हुए जज धर्मेश शर्मा ने कहा कि हालांकि ‘यौन अंतरंगता’ कानूनी विवाह का मुख्य हिस्सा है और यह भी कहा जाता है बिना यौन संबंध के शादी एक अभिशाप है, लेकिन फिर भी शादी यौन संतुष्टि का कोई कानूनी अनुबंध नहीं है.

फैसले में कहा गया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि पति को अपनी पत्नी की अनुमति या सहमति के बिना सेक्स करने की निरंकुश आजादी है और न ही यह इसकी अनुमति देता है कि पति पत्नी के ऊपर हावी रहे और उसपर पनी मनमर्जी करे. अदालत ने यह भी कहा कि पति अपनी पत्नी के साथ इस तरह से अपनी पत्नी के साथ सेक्स संबंध नहीं बना सकता कि उसकी पत्नी को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक तौर से असहज महसूस हो.

शादी के 16 साल बाद पति ने यह कहते हुए तलाक के लिए याचिका दायर की थी कि उसकी पत्नी उसके और उसके परिवार के साथ खराब व्यवहार करती है और बच्चों का खयाल नहीं रखती है. पत्नी ने इन आरोपों के जवाब में कहा कि उसका पति उसके साथ मानसिक और शारीरिक तौर से काफी खराब व्यवहार करता है. पत्नी ने अपने आरोप में यह भी कहा कि उसका पति विकृत मानसिकता का है और उसके साथ जबरन अप्राकृतिक और ओरल सेक्स करता था. मना करने उसका पति उसे पीटता था.