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मूक मराठाओं की मजबूत होती आवाज

इस आंदोलन के बारे में दावा किया जा सकता है कि इसका कोई नेतृत्व नहीं करता. यह एक खामोश आंदोलन है.

Amit Singh

पिछले कुछ महीनों से निकलने वाले ‘मराठा क्रांति मूक मोर्चा’ का मौन रविवार को मुंबई में खत्म हो गया.

मुंबर्इ की सड़कों पर हजारों की संख्या में युवाओं ने बाइक रैली निकाली. इस दौरान उनका नारा था, 'बाइक रैली तो झांकी है, मोर्चा अभी बाकी है.'


गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान मराठा समुदाय 14 दिसंबर को नागपुर में मोर्चा निकालेगा. इसी पर दबाव बनाने के लिए समुदाय ने यह वार्म अप रैली निकाली थी.

इससे पहले मराठों की एक रैली 20 नवंबर को नई दिल्ली में प्रस्तावित है. गौरतलब है कि जुलाई महीने में महाराष्ट्र के औरंगाबाद से इस आंदोलन की शुरुआत हुई है.

इस आंदोलन के बारे में दावा किया जा सकता है कि इसका कोई नेतृत्व नहीं करता. यह एक खामोश आंदोलन है.

दावा यहां तक किया जाता है कि ‘मराठा क्रांति मूक मोर्चा’ स्वतंत्र भारत का सबसे लंबे समय तक चलने वाला मूक प्रदर्शन है.

पिछले तीन-चार महीने में इस मोर्चा ने महाराष्ट्र के लगभग हर शहर में मूक रैली निकाली है. महाराष्ट्र की कुल आबादी में करीब 35 प्रतिशत मराठा हैं.

क्यों है मराठा सड़कों पर?

ये सवाल बार-बार किया जा रहा है कि महाराष्ट्र के मराठा अचानक सड़कों पर क्यों आ गए हैं? दरअसल इस मार्च का तात्कालिक कारण महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में 14 वर्षीय लड़की के साथ गैंगेरेप और हत्या है.

आरोप है कि मराठा समुदाय की इस लड़की के साथ तीन-चार युवकों ने दरिंदगी से रेप किया और उसकी हत्या की. ‘मराठा क्रांति मूक मोर्चा’ की पहली मांग है कि उन दरिंदों को पकड़ा जाय और उन्हें फांसी की सजा दी जाय.

इस आंदोलन की दूसरी मांग मराठा आरक्षण को लेकर है. बड़ी संख्या में राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद इस समुदाय से हैं लेकिन आंदोलनकारियों का दावा है कि इनकी संख्या कुल पांच प्रतिशत है.

मराठा समुदाय का बाकी 95 प्रतिशत हिस्सा इससे अलग जीवन जी जरा है. कुल मराठों का 36 प्रतिशत भूमिहीन है.

आठ प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. नौकरियों में आरक्षण न होने के कारण बड़ी संख्या में मराठा बेरोजगार है. उनका जीवन स्तर काफी नीचे गिर गया है.

मराठा आंदोलन की तीसरी मांग किसानों को लेकर की गई स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करना है. आंदोलनकारियों का कहना है कि आबादी बढ़ने से जमीन भी तेजी से घट गई है.

अब एक-दो एकड़ जमीन वाले परिवारों की संख्या खूब है. खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है. ऐसे में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में मराठा ज्यादा है.

मूक आंदोलनकारियों की चौथी मांग एससी-एसटी समुदाय की रक्षा के लिए बनाए गए एट्रोसिटीज एक्ट (1989) में बदलाव किया जाय. इनका दावा है कि इस कानून का बहुत दुरुपयोग किया जा रहा है.

एससी-एसटी समुदाय के लोग इस कानून का सहारा लेकर मराठों से पैसे की उगाही कर रहे हैं.

युवाओं के हाथ में बागडोर?

‘मराठा क्रांति मूक मोर्चा’ का एक नियम है. हर आंदोलनकारी इन नियमों का पालन कर रहा है. खास बात यह है कि इस नियमों का पालन कराने वाला कोई नेता वहां नहीं होता है.

मोर्चे के सब से आगे युवा लड़के और लड़कियां होती हैं. इसके बाद महिलाओं का नंबर आता है. सबसे अंत में पुरुष चलते हैं.

अब तक महाराष्ट्र के लगभग हर शहर में ये रैलियां निकाली जा चुकी हैं. इन रैलियों में लाखों लोग शरीक होते हैं. ये रैलियां खामोश होती हैं.

दिलचस्प बात ये है कि इतने लोगों के बावजूद मोर्चे संगठित और अनुशासित होते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इस समुदाय की लड़कियां बड़ी संख्या में आंदोलन में शरीक हो रही है.

मुंबई में हुई बाइक रैली के दौरान भी बड़ी संख्या में लड़कियां बुलेट लेकर दिखाई पड़ी.

सोशल मीडिया को बनाया हथियार

‘मराठा क्रांति मूक मोर्चा’ ने सोशल मीडिया को अपना प्रमुख हथियार बनाया है. युवाओं के बीच सूचना का प्रसार वाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे माध्यम से होता है.

फेसबुक पर बड़ी संख्या में ग्रुप और पेज बने हुए हैं. जहां से आंदोलन की तैयारी से लेकर हर तरह की सूचना शेयर की जाती है.

इस रैली के दौरान ड्रोन से खींची गई तस्वीरें ट्विटर और फेसबुक पर शेयर की जाती है. जहां से बड़ी संख्या में इसे शेयर और रिट्ववीट किया जाता है.

इससे हैशटैग महाराष्ट्र क्रांति मोर्चा ट्विटर और फेसबुक पर ट्रेंड करने लगता है.

इस आंदोलन की अपनी वेबसाइट है.

इसके अलावा मोबाइल ऐप भी उपलब्ध है, जहां पर सारी सूचनाएं मुहैया कराई जाती है. यूट्यूब पर भी आंदोलन का पेज बनाया गया है.