view all

मैं सूअरों के साथ रहना चाहती हूं!

अगर कोई ऐसा जानवर है, जिसके बारे में हम सब पूरी तरह से अंजान हैं तो वो सुअर है.

Maneka Gandhi

जब भी मैं शहर की आपा-धापी से दूर (अगर बची रही तो) किसी गांव में रहने जाऊंगी तो सूअर पालूंगी. या फिर यूं कहें कि उनके साथ रहना पसंद करूंगी.

अगर कोई ऐसा जानवर है जिसके बारे में हम सब पूरी तरह अनजान हैं तो वो सुअर है.


लालची, मोटा, गंदा, घिनौना, स्वार्थी और असंवेदनशील. यही वे शब्द हैं जिनसे एक सुअर की पहचान होती है.

लेकिन एक सुअर की खूबियों को सही मायने में इन शब्दों में बयां किया जा सकता है. दोस्ताना, दूसरों को माफ करने वाला, अच्छे स्वभाव वाला, खिलंदड़, सामाजिक और होशियार.

सुअर भी रहते हैं साफ-सुथरे

सुअरों के बारे में यह सोच यूरोप से आई है कि वो जितना गंदा होगा उतना ही खाने में स्वादिष्ट लगेगा.

इसलिए उन्हें साफ-सुथरा रखने की हमने कभी कोशिश ही नहीं की. लेकिन यह भी उतना ही साफ-सुथरा होता है जितना कि जंगल का कोई और जानवर.

हां, यह जरूर है कि वो कीचड़ में लोटता है. लेकिन कीचड़ में तो हिरण, हाथी और भैंस भी लोटते हैं. यहां तक कि बहुत सारे पक्षी भी.

लेकिन वो ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि उन्हें कीचड़ पसंद है. बल्कि इससे उन्हें मक्खी और दूसरे परजीवी कीट-पतंगों से छुटकारा मिलता है. ये कीड़े-मकोड़े हमारे घरों से फेंके गए कूड़े के कारण ही पैदा होते हैं.

सुअरों को अपनी पीठ खुजलाया जाना बेहद पसंद है. अगर वे आपको पसंद करते हैं तो आपके पीछे-पीछे चलेंगे.

वे आवाज निकालकर अपने मालिकों का अभिवादन करते हैं. वे इशारों को समझते हैं. मालिकों के पैरों पर खुद को रगड़ते हैं.अपने बच्चों की अच्छी तरह देखभाल करते हैं. शायद कुत्ते और बिल्ली से भी बेहतर तरीके से.

समझदार होते हैं सुअर

अलबर्ट श्वाइट्जर ने अफ्रीका में अपने घर के बाहर रहने वाले एक पालतू जंगली सुअर के बारे में लिखा था, ‘मैं तुम्हारी समझदारी की कैसे तारीफ करूं जोसेफाइन! रात में मच्छरों से बचने के लिए तुमने लड़कों के बेडरूम में जाकर मच्छरदानी के नीचे सोने की आदत डाल ली. इस वजह से कई बार मुझे तंबाकू के पत्तों के साथ समझौता करना पड़ा.’

श्वाइट्जर आगे जोड़ते हैं, ‘खून पीने वाले कीड़े जब तुम्हारे पांव का खून चूसते हैं, तब तुम्हें अस्पताल ले जाया जाता है.’

सुअर को संबोधित करते हुए श्वाइट्जर ने कहा, ‘फिर तुम बड़े आराम से पीछे मुड़कर अपने पांव में डॉक्टर को आयोडीन की टिंचर में डुबोए चाकू से अपना घाव निकालने देते हो. और अंत में डॉक्टर का धन्यवाद करते हो.’

क्या आप अपने घर में पाले गए कुत्ते या बिल्ली को मारकर खा जाएंगे? लेकिन आप इस समझदार और वफादार जानवर को न सिर्फ पोर्क, हैम, सलामी, बेकन, रैशर और ट्रोटर के रूप में खाते हैं बल्कि उसे सबसे ज्यादा बेरहमी से मारते भी हैं.

सुअरों को मिलती है दर्दनाक मौत

केरल में सुअर के सिर पर हथौड़ा मारा जाता है. तो दिल्ली में आग में जलाकर इसकी जान ली जाती है. तमिलनाडु में इसके शरीर में कम से कम 20 छोटे चाकू घोंपे जाते हैं और गुदा में रॉड डाला जाता है.

ये तरीका भारत के कई हिस्सों में अपनाया जाता है ताकि सुअर के शरीर से खून धीरे-धीरे रिसता रहे. क्या आपने कभी भी सुअर की चीख सुनी है? वो एक छोटे बच्चे की तरह दया की भीख मांगता है.

भारत में हम सुअर को आसानी से नहीं मारते. हमारे यहां यह माना जाता है कि वो जितनी देर में मरेगा, उसका मांस उतना ही नर्म होगा.

इस बात में कितनी सच्चाई है, मैं ये तो नहीं जानती पर इतना जरूर जानती हूं कि वो मीट काफी जहरीला होगा. क्योंकि एक मरते हुए सुअर के शरीर में पित्त और एसिड की मात्रा काफी बढ़ जाती है.

तस्वीर: Reuters

‘मॉडर्न’ पिग फैक्ट्री, पोल्ट्री फार्म की तरह होते हैं. ये औद्योगिक समूह होते हैं, जहां सुअर कोई जीवित प्राणी न होकर सिर्फ एक पोर्क प्रोड्यूसर होता है.

विदेशों में सुअर पालने वाले ऐसा नहीं मानते. उन्हें आधिकारिक तौर पर पोर्क प्रॉडक्शन इंजीनियर कहा जाता है. उनका मुख्य मैगेजीन ‘हॉग फार्म मैनेजमेंट’ लिखता है, ‘भूल जाइए कि सुअर एक जानवर है. उसे फैक्ट्री के एक मशीन का दर्जा दीजिए. उसके ट्रीटमेंट को मशीनों में तेल डालने जैसा मानें. ब्रीडिंग सीजन को असेंबली की लाइन मानें और मार्केटिंग को तैयार सामान की डिलीवरी.’

यही वो तरीका है जिससे पूरी दुनिया की मशीनरी को चलाया जाता है.

हर सुअर को एक तंग घेरे में रखा जाता है, जहां वो बमुश्किल हिल-डुल पाता हो. इसे बेकन बिन कहा जाता है.

सुअर जिस गड्ढे में रहता है उसमें पेशाब और मल भी गिरता है. गड्ढे में दुर्गंध फैली रहती है. हवा में अमोनिया, मिथेन और हाईड्रोजन सल्फाइड की बदबू भरी रहती है.

गंध पहचानने में माहिर होते हैं सुअर

सुअरों में सामान्य तौर पर गंध पहचानने की बेहतर समझ होती है. ये जानवर दिनभर गंदी बदबू को सूंघते हैं. जिससे न सिर्फ वो आलसी और कमजोर हो जाते हैं बल्कि उन्हें खांसी और सांस संबंधी दिक्कतें भी होने लगती हैं.

इसी वजह से उन्हें लगातार टेट्रासाईक्लीन एंटीबायोटिक्स दिया जाता है. कैद में रहने वाले इन सुअरों को न सिर्फ न्यूमोनिया हो जाता है बल्कि उनके पांव में बहुत घाव हो जाते हैं.

वे अपना दर्द कम करने के लिए अलग तरह से उठते बैठते हैं. उनके घुटने और मांसपेशियां पंगु हो जाती हैं.

'फॉर्मर एंड स्टॉकब्रीडर' में छपी एक संपादकीय के अनुसार, ‘इन जानवरों को कोई गंभीर बीमारी होने से पहले ही मार दिया जाता है.’

हालांकि आरामदायक बिस्तर से उन्हें आराम मिल सकता है. लेकिन भला सूअरों को ये कहां से नसीब हो?

एक सामान्य सुअर एक साल में छह से ज्यादा बच्चों को जन्म नहीं देती. लेकिन फैक्ट्रियां हारमोन्स, प्रोजेस्टिंस और स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल करके इनके बच्चों की गिनती 20 तक पहुंचा देती है.

हर बार जन्म के तुरंत बाद सुअर के बच्चों को उनसे छीन लिया जाता हैं और वो तब तक रोती हैं जब तक कि उनका दूध सूख न जाए. इसके बाद उससे दोबारा गर्भ धारण करवाया जाता है. ये तब तक चलता रहता है जब तक कि वो मर न जाएं.

सोचकर देखिए, कैसे इन समझदार जानवरों को अपने कंकालनुमा शरीर का भार अपने कमजोर और घाव से भरे पैरों पर उठाना पड़ता है.

कई डर और दर्द से पागल हो जाते हैं. वे अपने साथ खड़े सुअरों पर हमला कर देते हैं. लेकिन फैक्ट्री मैनेजर के पास इसका भी जवाब है. वो उन्हें अंधेरे में रखने लगते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये सुअर अंधेरे में कम सक्रिय होते हैं. फिर वे मुर्गी की तरह उनकी चोंच तो नहीं लेकिन उनकी पूंछ जरूर काट देते हैं.

आखिर इन जानवरों को खाने में क्या दिया जाता है? सल्फर और हार्मोन के अलावा उन्हें कूड़ा, कच्ची मुर्गियां या बत्तख और सुअर का खाद दिया जाता है.

जब हमने 'संजय गांधी एनिमल केयर सेंटर' की शुरुआत की तो हमने होटलों से उनका बचा-खुचा और जूठा खाना मांगना शुरु किया.

एक महीने बाद हमें पहला जूठन मिला. ये इतना ज्यादा गंदा, बासी और सड़ा हुआ था कि हमारे जानवरों ने उन्हें खाने के बजाय भूखा रहना ज्यादा पसंद किया. मैंने भी उनसे मदद लेने से मना कर दिया.

वही गंदा खाना इन सुअर के फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होता है. यही आपको अपने पोर्क, सलामी और बेकन में मिलता है.

बीमारी का घर होते हैं कटे सुअर

80% से ज्यादा कटे सुअरों को न्यूमोनिया, पेट का अल्सर, पेचिश, ट्रिकिनोसिस, हर तरह के कीड़ों का इंफेक्शन और स्यूडो-रेबिस हुआ रहता है. अगर आप भी इन बीमारियों के शिकार होना चाहते हैं तो सुअर का डिश खाते रहिए!

आखिर हम लोगों को क्या हो रहा है? हम भला हिटलर के गैस चेंबर और उसमें हुई हजारों लोगों की मौत की बात भला कैसे कर सकते हैं. हर वो इंसान जो मीट खाता है वो इस सामूहिक प्रताड़ना का दोषी है.

ये जानवर एक संवेदनशील प्राणी है. उसे घृणा और क्रूरता के साथ रखा जाता है क्योंकि उसके स्वादिष्ट मांस को खाने की आपकी भूख बढ़ती जा रही है.

ये शुद्ध रूप से हत्या है और आपकी दूषित इच्छा इसे किसी भी तरह से सही नहीं ठहरा सकती.

क्या यही विनम्र भारत है जिसकी हम बातें करते हैं. जहां दया और सहनशीलता की बात होती है? जब तक आप सुअर खा रहे हैं आप अमानवीयता को बढ़ावा दे रहे हैं.