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सीमेंट के जंगल में दूसरे जीव को भी दें जीने का रास्ता

मैंने इनचार्ज से बात की और पाया कि इनमें से कुछ जानवर पिछले करीब एक महीने से भूखे थे

Maneka Gandhi

मुझे ऐसा लगता है कि दूसरे प्राणियों को कष्ट देने की हमारी क्षमता असीमित है. सरकार के अलग-अलग अंग खासतौर पर मुझे इस राक्षसी दिमाग का हिस्सा लगते हैं जो कि देश के एक औसत नागरिक को ताकत और सुरक्षा मुहैया कराने में तो नाकाम हैं, लेकिन उन्हें पीड़ा देने में ये पीछे नहीं हैं.

कब खत्म होगा जुल्म?


अगर मैं सड़क पर घायल पड़े किसी जानवर को बचाती हूं, तो जब तक मैं खुद को बधाई दे पाऊं, तब तक किसी अवैध पक्षी बाजार से खबर आ जाती है कि वहां पक्षियों को आग में जला दिया गया है.

अगली सुबह मैं पढ़ती हूं कि हैदराबाद में वे सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों को मार रहे हैं और अखबार पत्थर से मारे जाते कुत्ते की तस्वीर छापता है.

मैं अपने पिछले संसदीय क्षेत्र पीलीभीत जाती हूं और वहां पहुंचने पर मुझे पता चलता है कि नागा राइफल्स रेजीमेंट ने हाल में ही एक बाघिन को मारा है और उसका मांस खा गए हैं.

नागा राइफल्स वाले जंगल के इलाकों में तैनात किए गए हैं ताकि वे आतंकवादियों से सुरक्षा दे सकें. नागा राइफल्स के जवानों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं हुआ है. यह माना जाता है कि इनके खिलाफ केस करने से इनके मनोबल पर विपरीत असर होगा.

सबसे बढ़कर स्वाद

मुझे दिखाया गया कि कसाइयों की दुकानों पर हिरण का मांस खुलेआम उपलब्ध है. इन्हें हिरण का मांस नागा राइफल्स के लोग बेचते हैं, जो कि अब तक सैकड़ों हिरणों और चिड़ियों को मार चुके हैं.

असलियत यह है कि आसपास के गांव वाले जब भी शूटिंग की आवाजें सुनते हैं तो उन्हें पता होता है कि ये पुलिसवाले उनके जानवरों को मार रहे हैं क्योंकि यहां महीनों से कोई आतंकवादी नहीं आया है.

पिछली शाम इस लिहाज से अब तक की सबसे बुरी शाम थी. एक युवा लड़की ने भारी हताशा में मुझे अखबार का एक टुकड़ा दिया और इस पर कुछ करने के लिए कहा.

वक्त है कुछ करने का?

उसने कहा कि वह गौसेवकों के एक समूह से है और वह इंतजार नहीं कर सकती क्योंकि वह भूख हड़ताल पर है. उसने मुझे जो रिपोर्ट दी, मैं उसे यहां प्रस्तुत कर रही हूं.

‘बड़ी संख्या में गायें, बछड़े-बछियां, भैंसें, गधे आदि को दिल्ली कॉरपोरेशन के कर्मचारियों द्वारा राजधानी की सड़कों से पकड़ लिया गया और इन्हें एमसीडी के चलाए जा रहे मवेशी घरों में रखा गया.’

‘इनमें से एक मालवीय नगर के पास है. यह करीब 50 गज के इलाके में है जिसमें से आधा कवर्ड है.’

‘गायों, बछियों, भैंसों आदि इस छोटी सी जगह पर गोबर, मूत्र और कीचड़ में अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन्हें न तो खाना दिया गया न पानी.’

जुल्म की इंतहा

‘करीब 150 की तादाद में ये भूखे-प्यासे जानवर इस छोटी सी जगह में ठूंस दिए गए हैं. जगह की कमी के चलते ये बैठ नहीं पा रहे हैं और वे इतने कमजोर हो गए हैं कि खड़े भी नहीं रह सकते हैं.'

'इनमें कुछ बीमार हैं और इनके लिए दवाइयों का कोई प्रावधान नहीं है. चार से पांच घंटे में इन मरे हुए जानवरों को बाहर निकाला जा सका. किसी को यह नहीं पता चला कि ये कब मर गए और इस स्थिति में कब से पड़े थे.’

‘इन जानवरों को चारा नहीं दिया गया, जबकि नियमों के मुताबिक, कॉरपोरेशन इन जानवरों के मालिकों से पेनाल्टी के अलावा चारे का भी पैसा लेता है.'

'मैंने इनचार्ज से बात की और पाया कि इनमें से कुछ जानवर पिछले करीब एक महीने से बिना खाने के थे. हालांकि, ये जानवर कुछ बोल नहीं सकते, लेकिन इनकी आंखें बस यही कहती हैं कि हमें इस धीमी और दर्दनाक मौत से बचा लो.'

'कुछ गायें गर्भवती हैं और इनकी डिलीवरी होने वाली है. लेकिन इन्हें हिलने तक की जगह मुहैया नहीं है. जब आप इस खबर को पढ़ रहे होंगे तब तक कई और जानवर मर चुके होंगे.’

‘मुझे बताया गया कि पहले इन जानवरों को मथुरा भेजा जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है क्योंकि मथुरा के गोशाला व्यवस्थापक इन जानवरों के चारे-पानी के लिए वित्तीय मदद की मांग कर रहे थे.’

जानवरों का कोई खरीदार नहीं

‘कॉरपोरेशन के पास इन जानवरों की नीलामी की योजना होती है, लेकिन इसका रिजर्व प्राइस इतना ज्यादा होता है कि इन नीलामियों में शायद ही कोई जानवर बिक पाता है.’

जब मालिकों को इन जानवरों में कोई फायदा नजर नहीं आता है तो वे इन्हें दिल्ली की गलियों में छोड़ देते हैं.

ये जानवर खाने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं. कई बार गाड़ियां इन्हें कुचल देती हैं. कई बार दुकानदार इन पर एसिड फेंक देते हैं.

अब स्थानीय निकाय ने तय किया है कि इन्हें शहर से निकाल दिया जाए. और यही वे कर रहे हैं.

उतना ही क्रूरता भरा वह व्यवहार है जिसके तहत जिस गाय को हम अपने पूजाघरों में पूजते हैं और जो अपनी सारी जिंदगी आपकी सेवा करती है, उसे हम यूं मरने के लिए छोड़ देते हैं.

मामूली दाम में बिक जाते हैं जानवर

हर बार जब आप सरकारी कर्मचारियों को सड़कों को क्लीयर करने के लिए बधाई देते हैं, जिससे आपका ट्रैफिक और तेज चल सके, तो याद रखिए कि ऐसा तब होता है जबकि गलियों से बेचारे जानवरों को हटा दिया जाता है.

इनमें से कुछ को आधी रात में चौकीदार को मामूली रकम देकर उठा लिया जाता है और इन्हें काट दिया जाता है.

अन्य जानवर भूख से मर जाते हैं. कुछ लोग इनके पैर तोड़ देते हैं और इन्हें मरने के लिए छोड़ देते हैं.

याद रखिए हर गाय या बैल जिसे पकड़कर मवेशीघर में ले जाया जाता है वह ऊपर दिए कारणों में से किसी के चलते कुछ ही महीनों में मर जाता है.

आपके शहर को साफ करने की उम्मीद इन्हीं क्रूरतापूर्ण उपायों पर टिकी हुई है. एक ऐसे कॉन्क्रीट के जंगल का सपना जहां इंसान के अलावा दूसरे किसी प्राणी के लिए कोई जगह नहीं है.

क्या कर रहे हैं दिल्ली के जैन?

दिल्ली के जैन क्या कर रहे हैं? जैन तो एक अमीर समुदाय है. क्या आप इन जानवरों के लिए कुछ जगह या चारा नहीं मुहैया करा सकते?

दिल्ली के बाहर आपके बड़े-बड़े फार्महाउस हैं. क्या आप इनमें से कुछ जानवरों को अपने यहां नहीं रख सकते.

आप में से जो लोग यह पढ़ रहे हैं और मदद करना चाहते हैं वे इन पशुघरों में जाकर यहां के हालात खुद देखें और एमसीडी के हेड को कॉल करें या लिखें.

हफ्ते में एक बार इतना खाना लेकर जाएं जिनसे इनका पेट भर सके. अगर किसी के पास दिल्ली के आसपास जमीन है तो मैं उनके लिए यहां गोशाला स्थापित करने में निश्चित मदद करूंगी.