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मालदीव संकट: सैन्य हस्तक्षेप से भारत को नुकसान संभव, अंतरराष्ट्रीय छवि पर पड़ेगा असर

Ajay Kumar

हिंद महासागर में छोटे से देश मालदीव में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है. नए घटनाक्रम में मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी है. आपातकाल की घोषणा किए जाने के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट के दो जजों को गिरफ्तार कर लिया गया. आपातकाल की घोषणा करके यामीन सरकार ने मालदीव के संविधान की खुलकर अनदेखी की. मालदीव का संविधान सुप्रीम कोर्ट को देश में मानवाधिकारों और नियम-कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करवाने का अधिकार देता है.

आमतौर पर, भारत किसी दूसरे देश में इस तरह की उथल-पुथल को लेकर सक्रिय रूप से चिंतित नहीं होता है. लेकिन मालदीव का भू-राजनीतिक क्षेत्र भारत को प्रभावित करता है. लिहाजा मालदीव में हो रहे घटनाक्रम को लेकर भारत सतर्क है. मालदीव के विपक्ष के नेता और देश के पहले लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने संकट से निबटने के लिए भारत से दखल की अपील की है. पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने ट्वीट करके कहा है कि, भारत सैन्य हस्तक्षेप करके मालदीव में अपना एक दूत भेजे ताकि देश में कानून का राज फिर से कायम हो सके:


राजनीतिक संकट में मालदीव इससे पहले भी भारत की मदद मांग चुका है. साल 1988 में जब मालदीव में तख्तापलट का प्रयास हुआ था, तब मालदीव सरकार की गुहार पर भारत ने उसकी मदद के लिए पैराट्रूपर्स की एक टुकड़ी भेजी थी. जिसे हम ऑपरेशन कैक्टस के नाम से जानते हैं.

लेकिन, इस बार परिस्थितियां काफी अलग हैं. इस समय मालदीव के मौजूदा संकट के केंद्र में राष्ट्रपति यामीन हैं. चीनी और सऊदी अरब के साथ यामीन के रिश्ते काफी पुराने और प्रगाढ़ हैं. वास्तव में, पाकिस्तान के अलावा मालदीव अकेला ऐसा दक्षिण एशियाई देश है, जिसने चीनी के साथ मुक्त व्यापार के समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) पर हस्ताक्षर कर रखे हैं. यह एक ऐसा समझौता है, जिसे भारत के कुछ लोग इज़्ज़त की नजर से नहीं देखते हैं. यानी चीनी के साथ मालदीव का मुक्त व्यापार का समझौता भारत के कई लोगों को रास नहीं आया है.

इससे मालदीव की स्थिति और जटिल हो गई है. भारत और चीन के बीच जारी वैश्विक शक्ति संघर्ष के बीच मालदीव के हालिया संकट ने पेचीदगियां बढ़ा दी हैं. ऐसे में भारत के सामने धर्म संकट खड़ा हो गया है. इसलिए, भारत सरकार अगर अभी कोई पेशकदमी करती है, तो उसका सीधा असर भविष्य में मालदीव के साथ संबंधों पर पड़ेगा. साथ ही भारत की व्यापक विदेश नीति के उद्देश्यों की जटिलता भी बढ़ेगी.

भारतीय विदेश नीति को एक मौलिक सिद्धांत से मज़बूती प्रदान की गई है. इस सिद्धांत के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामलों में भारत अंतरराष्ट्रीय कानून और नियमों पर आधारित व्यवस्था पर विश्वास करता है. वर्तमान में, अंतरराष्ट्रीय कानून अन्य राष्ट्रों के मामलों में एकतरफा सैन्य हस्तक्षेप पर रोक लगाता है. ऐसा सैन्य हस्तक्षेप कोई राष्ट्र सिर्फ अपनी आत्म-रक्षा के लिए ही कर सकता है.

इस अंतरराष्ट्रीय कानून की एक बात अस्पष्ट है. ऐसा संशय है कि, क्या मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून मानवतावादी संकट से बचाने के लिए किसी राष्ट्र को किसी अन्य राष्ट्र में हस्तक्षेप की इजाज़त देता है या नहीं. हालांकि, अभी तक मालदीव में मानवतावादी संकट नज़र नहीं आया है.

अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मानवाधिकारों के उल्लंघन के निदान के लिए किसी राष्ट्र में हस्तक्षेप की इजाज़त नहीं है. अगर ऐसा होता तो, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों पर हमला करना जायज़ और कानूनी हो जाएगा. क्योंकि यह देश अपने नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए कुख्यात हैं. अंतरराष्ट्रीय कानून अभी तक इस बिंदु को स्पष्ट नहीं कर पाया है कि, लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक राष्ट्र किस आधार पर दूसरे राष्ट्र में हस्तक्षेप कर सकता है.

मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप के बारे में विचार करने से पहले भारत को इस पहलू पर भी ग़ौर करना चाहिए. भारत ने अपने सैन्य बलों को तैयार (स्टैंडबाय) रहने को बोल दिया है, लेकिन उन्हें अभी तक किसी तरह का आदेश जारी नहीं किया गया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ भारत का विवाद अंतरराष्ट्रीय कानून के दायरे में है. डोकलाम में भारत जहां भूटान के हितों की रक्षा कर रहा है, वहीं अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन में अपनी सीमाओं के भीतर चीन के दखल का विरोध कर रहा है. भारत की स्पष्ट दलील है कि चीन को अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन और समझौतों का सम्मान करना चाहिए.

वहीं पाकिस्तान के साथ विवाद में भारत उसे शिमला समझौते की शर्तों का पालन करने और कॉन्सुलर संबंधों पर वियना कन्वेंशन का सम्मान करने की हिदायत देता है. वास्तव में, भारत ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान और पालन किया है. वर्तमान में कुलभूषण जाधव के मामले में भारत अंतरराष्ट्रीय कोर्ट (आईसीजे) में पाकिस्तान के साथ मुकदमा लड़ रहा है. भारत की मांग है कि, कुलभूषण जाधव के मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून लागू किया जाए.

दक्षिण चीन सागर की स्थिति को लेकर भी भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट है. भारत ने इस मामले में भी चीन को अंतराष्ट्रीय कानून का पालन करने और समुद्री क्षेत्र के नियमों का सम्मान करने का अह्वान किया है. समरसतापूर्ण रुख कायम रखने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय कानून का ख्याल रखना होगा. लिहाजा भारत को मालदीव में एकतरफा ढंग से हस्तक्षेप करने के प्रयासों का विरोध करना चाहिए.

हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि मालदीव को लेकर भारत के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है. मालदीव में संकट के समाधान के लिए भारत प्रतिबंध का का सहारा ले सकता है. क्योंकि मालदीव पर एकतरफा प्रतिबंधों को लागू करने के लिए भारत पूरी तरह से स्वतंत्र है.

मालदीव के विवाद को भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जा सकता है और वहां कई देशों का समर्थन भी हासिल कर सकता है. हालांकि चीन ऐसे मामलों में हमेशा वीटो का इस्तेमाल करता आया है. लिहाजा भारत को चाहिए कि वह इराक पर अमेरिकी हमले की तर्ज़ पर अपने लिए समर्थन जुटाए. तब मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप करने में कोई अंतराष्ट्रीय अड़चन आड़े नहीं आएगी.

भारत अगर कानूनी तरीके से चलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का समर्थन हासिल कर लेता है, तब मालदीव में यामीन सरकार की मान्यता खत्म हो जाएगी और वह वैध नहीं रह जाएगी. लेकिन यह केवल तभी संभव हो सकता है, जब भारत यामीन की कूटनीति को पूरी तरह से विफल कर दे और यमीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने में कामयाब हो सके. इसके अलावा यामीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक राजनयिक गठबंधन बनाकर भी भारत को बड़ी सफलता मिल सकती है.

यामीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का समर्थन जुटाकर भारत उन्हें सत्ता से बेदखल होने के लिए मजबूर कर सकता है. इसके बाद मालदीव में विपक्षी दल की सरकार बनवा कर उसे मान्यता दिलाई जा सकती है. यानी मालदीव में नशीद सरकार की बहाल का रास्ता साफ किया जा सकता है. ऐसा करके अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की नैतिक साख को बचाया जा सकता है. मालदीव के मौजूदा संकट को हल करने के लिए सिर्फ सैन्य समाधान की आखिरी विकल्प नहीं होनी चाहिए. चीन और पाकिस्तान के नज़रिए से देखा जाए तो सैन्य शक्ति के प्रदर्शन से भारत की स्थिति कमजोर होगी. लिहाजा भारत सरकार को इस स्थिति से चतुराई के साथ निबटना होगा. भारत को ध्यान रखना होगा कि उसके किसी कदम से अंतरराष्ट्रीय भावनाओं को ठेस न पहुंचे.