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मालचा महल: दिल्ली की भीड़ में अवध के राजकुमार की गुमनाम मौत

दिल्ली के लिए मालचा महल अनजान है मालचा महल वालों के लिए दिल्ली का अस्तित्व नहीं

FP Staff

दिल्ली बादशाहों का शहर है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ हफ्तों पहले तक यहां एक नवाब रहता था. नवाब भी कोई ऐसे वैसे नहीं बल्कि खुद को अवध का आखिरी राजकुमार बताते थे. उनकी जिंदगी कभी शाही रही होगी. लेकिन अब उनकी जिंदगी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उनकी मौत का पता किसी को नहीं चला, कहीं कोई खबर नहीं बनी. लाजिमी है आपने इन्हें पहचाना नहीं होगा.

दिल्ली का मनहूस मालचा महल


दिल्ली के चाणक्यपुरी से गुजरते हुए मुमकिन है कि आपने मालचा महल देखा हो. जंगली घासों से पटे और चमगादड़ का ठिकाना बन चुकी इस हवेली को देखकर एकबारगी आप ठिठकने को मजबूर हो जाएंगे. मुमकिन है कि आपके मन में यह सवाल भी आया होगा कि यहां कौन रहता था. उस हवेली को खस्ता देखकर यह अंदाजा लगाना नामुमिन था कि अवध के आखिरी नवाब प्रिंस साइरस इन्हीं चारदीवरियों के पीछे रहते हैं. इस हवेली में न कोई खिड़की थी, न बिजली न पानी. सिर्फ एक दरवाजा और एक गलियारा जिससे बाहर से रौशनी और थोड़ी बहुत हवा आती थी.

वक्त की बेवफाई 

इंदिरी गांधी ने 1971 में जब प्रिवी पर्स खत्म किया तो कई नवाब साधारण जिंदगी जीने को मजबूर हो गए. प्रिंस साइरस और उनके परिवार की जिंदगी भी बाकियों से अलग नहीं थी. वैसे यह अलग बात है कि प्रिंस साइरस की बहन सकीना ने एक बार कहा था कि साधारण होना गुनाह नहीं बल्कि पाप है. प्रिंस सायरस की मां जो खुद को विलायत महल कहती थीं, ने तय किया वो अपने दोनों बच्चों के साथ शाही तरीके से ही रहेंगी.

जर्जर हो चुके बिना दरवाजे के महल में रहने के बावजूद विलायत महल और उनके बाद उनके बच्चे अपने खून खानदान और नाम के रुतबे से नीचे नहीं उतरे. उनके टशन का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने कभी किसी हिंदी के अखबार या टीवी को कोई इंटरव्यू नहीं दिया. यह उनकी शान के खिलाफ था.

वक्त के साथ देश के कई नवाबों ने समझौता कर लिया. उनकी हवेली होटलों में तब्दील हो गई और जिंदगी चलती रही. लेकिन मालचा महल में रहने वालों को ये नामंजूर था.

मालचा महल कैसे बना प्रिंस का आशियाना?

मालचा महल तुगलक काल का एक शिकारगाह था. आज यहां छिपकलियों, सांपों और चमगादड़ों की फौज रहती है. इस महल में ना बिजली है ना पानी. लेकिन अवध के इस शाही परिवार ने यह जगह नहीं छोड़ी. प्रिंस सायरस के ये तेवर उन्हें अपनी मां विलायत महल से मिले थे.

70 के दशक में राजसी भत्ता खत्म करने के बाद विलायत महल ने अपने पूरे परिवार के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर धरना दे दिया. 6 नेपाली नौकर, ढेर सारे कुत्तों और फारसी कालीन के साथ दिल्ली स्टेशन पर कब्जा जमाए विलायत महल का दावा था कि वह अवध के नवाब वाजिद अली शाह की परपोती है. इसलिए उन्हें पूरा सम्मान मिलना चाहिए.

यह धरना एक दो दिन के लिए नहीं बल्कि 9 साल तक चला. आखिरकार इंदिरा गांधी सरकार ने 1980 में मालचा महल उन्हें रहने के लिए दे दिया.  वो दिन और विलायत महल का आखिरी दिन, वे इस महल से नहीं निकली. 1983 में विलायत महल ने हीरे कुचल कर खा लिए और आत्महत्या कर ली. 10 दिन तक उनकी लाश टेबल पर पड़ी रही.

इसके बाद सकीना और सायरस हमेशा काले कपड़े पहन कर रहते थे. दोनों ने अपनी मां की तरह ही साधारण होने से दूरी बनाए रखी. दरवाजे पर एक बोर्ड लगा था, "अंदर शिकारी कुत्ते हैं, घुसने वालों को गोली मारी जा सकती है." कुछ समय पहले राजकुमारी सकीना की मौत हो गई. कुछ दिन पहले जब बीबीसी के पत्रकार मालचा महल प्रिंस सायरस से मिलने पहुंचे तो वहां कोई नहीं था, थालियों पर फंफूंद जमी हुई थी. पूछताछ करने  पर पता चला कि कुछ हफ्तों पहले पुलिस को पास के जंगलों में एक गुमनाम लाश मिली थी.