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मुश्किल है मैली मोहब्बत में माशूका की हत्या के आरोपी मेजर से कबूलनामा लिखवाना

मेजर की अनुभवी ट्रेनिंग के चलते आरोपी मेजर निखिल राय हांडा अब पुलिस की पड़ताली टीम पर ही भारी पड़ रहा है. पुलिस सच उगलवाने पर तुली है और मेजर मुंह न खोलने की रट लगाए हुए है

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

‘दक्षिणी दिल्ली में जून 1996 में 22 साल पहले हुए ‘पर्सनल-प्वाइंट’ हेल्थ-क्लिनिक के मालिक डॉक्टर सुनील कौल हाई-प्रोफाइल ‘ट्रिपल-मर्डर’ के बाद, अब शैलजा द्विवेदी हत्याकांड भी उन्हीं दिनों का सा कोहराम राजधानी में मचाए हुए है. भारतीय फौज के मेजर की पूर्व मॉडल खूबसूरत पत्नी शैलजा द्विवेदी की बर्बर मौत के पीछे जहां, आरोपी मेजर निखिल राय हांडा की मैली-मुहब्बत प्रमुख वजह निकल कर आई है. तो वहीं पर्सनल प्वाइंट तिहरे हत्याकांड में भी ‘सेक्स-ब्लैकमेलिंग’ की ही शर्मनाक कहानी देखी-सुनी गई थी. ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि, उच्च-शिक्षित और धन्नासेठ ‘साहबों’ के शहर देश की राजधानी दिल्ली में ही आखिर क्यों अंजाम दिए जाते हैं इस तरह के घिनौने कृत्य?’

खूबसूरत पूर्व मॉडल और लेक्चरर युवा शैलजा द्विवेदी की बर्बर मौत. हद से पार, प्यार में पागलपन की बदसूरत मिसाल है. सवाल यह है कि, इस हद की नींव और दीवार में लगी खूनी-ईंटों को मैली-मोहब्बत में पनपी दुश्मनी की आग में आखिर ‘सेंका-तपाया’ किस-किसने? कब, कैसे और क्यों? हाल-फिलहाल बतौर मुख्य आरोपी सामने आए भारतीय सेना के मेजर निखिल राय हांडा ने? शिकार हुई अकेली शैलजा द्विवेदी ने? समाज में हाई-फाई मॉडर्न लाइफ स्टाइल के नाम पर फैली विकृत-मानसिकता ने? या फिर निखिल-शैलजा दोनो ने मिल-बांटकर?


शैलजा हत्याकांड के बाद मचे कोहराम और चीख-पुकार में भी यह तमाम सवाल दुनिया-जहां को साफ-साफ सुनाई-दिखाई दे रहे हैं. शैलजा हत्याकांड में संदिग्ध आरोपी की गिरफ्तारी के बाद दिन-ब-दिन हैरतंगेज तथ्य सामने निकल कर आ रहे हैं. पुलिसिया जांच अदालत में किसे मुजरिम करा पाएगी? इस सवाल के जबाब की तलाश में निकलना फिलहाल जल्दबाजी होगी.

सवालों के बोझ की गठरियां तो तमाम हैं जबाब मगर कौन दे?

ये चंद सवाल तो, जमाने के जेहन में हत्याकांड के सामने आने के बाद से ही चीख-चिल्ला रहे हैं. मौजूद सबूत और गवाहों की ‘बैसाखियों’ पर खड़े होकर अगर देखा जाए तो, पुलिस-पड़ताल ज्यों-ज्यों आगे बढ़ेगी त्यों-त्यों, ऐसे ही और न जाने कितने पेचीदा सवालों की भारी-भरकम गठरी से, हमारे-आपके सिर का बोझ दिन-ब-दिन भारी होता जाएगा.

वक्त के साथ इनमें से कुछ सवालों के माकूल जबाब हासिल भी होंगे. मगर तमाम संजीदा सवाल, हमेशा-हमेशा के लिए ‘दफन’ भी हो जाएंगे. इस तरह के हाई-प्रोफाइल हत्याकांडों में अमूमन अब तक ऐसा होता-देखा और सुना जाता रहा है. इस सत्य को भी सिरे से नहीं झुठलाया जा सकता. आईंदा जो होगा सो भविष्य के गर्भ में है. हाल-फिलहाल तो, मैली-मुहब्बत में माशूका की मर्माहतक मौत के मास्टरमाइंड मिलिट्री के ‘ट्रेंड- मेजर’ से ‘मर्डर’ का कबूलनामा लिखवाने में दिल्ली पुलिस की पड़ताली टीम पसीने से तर-ब-तर है.

मास्टर-माइंड मेजर की ‘मिलिट्री-ट्रेनिंग’ के आगे सब बेबस

देश की राजधानी दिल्ली के कैंट इलाके में चार दिन पहले यानी 23 जून को भारतीय सेना के मेजर अमित द्विवेदी की पत्नी शैलजा द्विवेदी (33) की हत्या कर दी गयी थी. 6 साल के बेटे की मां और मेजर की पत्नी की दिल-दहला देने वाली मौत के पीछे सैकड़ों बदसूरत सवाल मुंह बाये खड़े है. इन सवालों के माकूल जबाब हाल-फिलहाल एक अदद पुलिस के हाथ लगे आरोपी, भारतीय फौज के ही मेजर निखिल राय हांडा के ही पास हैं.

कहने-देखने को इन सवालों के जबाब की तलाश में राजधानी का मीडिया भी भागीरथ प्रयास में जुटा है, परिणाम मगर जीरो है. आरोपी हांडा तो खबरनवीसों के हाथ लगने से रहा. ले-देकर सवालों के जबाब की अगर कुछ उम्मीद बाकी बची तो वो है, दिल्ली पुलिस की पड़ताली टीम, जिसके कब्जे में मास्टर-माइंड हत्यारोपी मेजर साहब (निखिल हांडा) हैं.

पुलिस अपने आप में ही मेजर साहब से दुखी है. वजह, हाथ लगे हालिया सबूत-गवाहों के बलबूते मेजर हांडा को पुलिस ने मेरठ (उत्तर प्रदेश) से दबोच तो लिया, लेकिन पुलिस को भी पता उतना ही चल पा रहा है, जितना मेजर साहब (आरोपी) खुशी-खुशी बता-सुना दे रहे हैं.

मीडिया को बतायें या मेजर साहब से उगलवाएं?

लिहाजा परेशान-हाल पुलिस भी मीडिया को बची-खुची, काम-चलाऊ खबरें ‘रेबड़ी’ की तरह बांटकर ‘बहला-पुचकार’ के आगे बढ़ा दे रही है. चार दिन की पुलिस रिमांड के दो दिन बीत चुके हैं. खबर लिखे जाने तक दिल्ली पुलिस के हाथ अभी ऐसा कुछ नहीं लगा है, जिससे शैलजा द्विवेदी हत्याकांड में पुलिस, रिमांड-अवधि खत्म होने के साथ एक-दो दिन बाद अदालत में मजबूत पड़ताल के दमखम पर जाकर खड़ी हो सके. वजह है इंडियन मिलिट्री में मेजर साहब की वो काबिल ट्रेनिंग जो, उन्हें दी गई थी. देश के दुश्मनों के सामने मुंह न खोलने के लिए.

मेजर की उस अनुभवी ट्रेनिंग के चलते आरोपी मेजर निखिल राय हांडा अब पुलिस की पड़ताली टम पर ही भारी पड़ रहा है. पुलिस सच उगलवाने पर तुली है और मेजर मुंह न खोलने पर. दुश्मन (सामने मौजूद इंसान) को कैसे बरगलाना है? भारतीय फौज के मेजर से बेहतर भला पुलिस भी कहां जानती होगी! तेज-तर्रार पुलिस की मजबूरी यह है कि, मुलजिम मिलिट्री के ट्रेंड मेजर है. उनकी जगह कोई और होता, तो पुलिस उससे तोते की मानिंद बुलवा-कबूलवा चुकी होती.

मेजर की दमदार ट्रेनिंग ने दिल्ली पुलिस को बेदम कर दिया है!

कहावत मशहूर है कि पुलिस के आगे भूत भी भाग जाते हैं. पुलिस को देखते ही मुलजिम तोते की तरह बोलता है, लेकिन शैलजा हत्याकांड में हाथ आए इकलौते मेजर साहब ने इन तमाम कहावतों को झूठा साबित कर दिया है. शैलजा द्विवेदी हत्याकांड की जांच से जुड़े दिल्ली के एक संयुक्त पुलिस आयुक्त (ज्वाइंट कमिश्नर) स्तर के आला आईपीएस अफसर के मुताबिक, ‘मिलिट्री में मिली मजबूत ट्रेनिंग ने आरोपी को ढीठ बना दिया है.

पुलिस टीम के किसी मेंबर से पहले, हिरासत में मौजूद मेजर सब कुछ ताड़ ले रहा है. जाहिर है कि मर्डर का सा इल्जाम सिर आने के बाद भी मुस्कराते रहने का हुनर भी मेजर को मिलिट्री ट्रेनिंग में ही मिला होगा! यह कमाल भी मजबूत ट्रेनिंग का ही रहा होगा कि, गिरफ्तारी के बाद अदालत में पेशी से ठीक पहले आरोपी पुलिस टीम के ही एक सदस्य का मोबाइल लेकर इंटरनेट खुलवा कर फिल्म देखने लगा था.

पूछताछ के दौरान भी आरोपी मेजर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है. ताकि सामने मौजूद बिचारे हवलदार-सिपाही तो पहले ही मानसिक रूप से आधे हो जाएं. हालांकि मेजर से इंस्पेक्टर-एसीपी-डीसीपी स्तर के ही आला-पुलिस अफसरान पूछताछ कर रहे हैं.’ एक डिप्टी पुलिस कमिश्नर ने नाम न छापने की गुजारिश के साथ बताया, ‘आरोपी मेजर के तमाम स्टाइल के मद्देनजर ही हमने उसे अब एक जगह पर लंबे समय तक रखकर पूछताछ करना बंद कर दिया है. हर तीन-चार घंटे पर हम उसकी जगह बदल दे रहे हैं.’

....कत्ल यूं ही शौकिया या खैरात में नहीं किए जाते हैं!

शैलजा हत्याकांड में किसका कितना दोष था या है? यह शैलजा (मौत से पहले के हालात असलियत) और मेजर निखिल हांडा से बेहतर दुनिया में कोई नहीं जानता है? हां, शैलजा के बर्बर मर्डर के बाद यह साबित हो गया है कि, दोनो के बीच कहीं न कहीं, कुछ न कुछ इस हद तक पहुंच चुका था, जिसने नौबत मारने-मरने तक की ला दी. वरना सब जानते हैं कि, कत्ल यूं ही खैरात में या शौकिया नहीं किए जाते हैं.

निखिल हांडा अगर शैलजा की हत्या के लिए हाल-फिलहाल जिम्मेदार माना-समझा जा रहा है, तो फिर सवाल यह पैदा होता है कि आखिर, शैलजा ने उसे घर की चार-दिवारी के अंदर पाव रखने की छूट दी ही क्यों थी? छूट भी उस हद तक, जहां किसी पुरुष का एक खुबसूरत औरत के पास पहुंचकर वहां से खाली हाथ लौट पाना न-मुमकिन सा ही होता है.

अगर यह कहा जाए कि, शैलजा की जिंदगी में दाखिल मेजर निखिल हांडा की हालत, शैलजा को पाने के लिए, दूध के वास्ते भूख से बिलबिलाते बच्चे की सी हो गई थी, तो इसमें हैरानी नहीं होगी.

मेजर की महत्वाकांक्षा कहानी को ‘कत्ल’ की देहरी तक ले गई

अब तक जो भी खबरें निकल कर सामने आ रही हैं, उनसे यही साबित हो रहा है कि, शुरुआती दौर में शैलजा का साथ-साथ पाव आगे बढ़ाना मेजर की जिंदगी का जितना खूबसूरत अहसास था, वहीं पीछा छुड़ाने की उम्मीद में पाव पीछे खींच लेना शैलजा की दर्दनाक मौत की वजह बन गया.

शैलजा से मिले उसके गुपचुप साथ ने मेजर को लालची बना दिया था. शैलजा के साथ एकांत में मिले अपनेपन ने मेजर निखिल हांडा को पूरी तरह मुतमईन कर दिया था कि, चाहकर भी जिंदगी भर वो (शैलजा) उसके हाथ से उड़कर दूर नहीं जा पाएगी. मनमौजी मेजर साहब की यही सबसे बड़ी गलती थी. जो खूबसूरत शुरुआत को खतरनाक अंत के मुंहाने पर ले गई.

दिल्ली पुलिस अधिकारियों की बात अगर माने तो, आरोपी मेजर हांडा किसी भी हद तक जाकर शैलजा को पाने की जिद पर अड़ गया. पति द्वारा वीडियो चैटिंग में पकड़े जाने के बाद अलर्ट हुई शैलजा ने उसी वक्त पांव पीछे खींचना शुरु कर दिया. हर कीमत पर पाने को लालायित निखिल शैलजा में एकदम आए इस परिवर्तन को नहीं पचा सका. लिहाजा उसकी दिमागी हालत खून-खराबे पर उतर आई. जिसकी कल्पना शैलजा ने सपने में भी नहीं की थी.

कागज के फूलों से गजरे की सी खुश्बू की उम्मीद

कौन दोषी और निर्दोष कौन? जैसे सवालों के जबाब पुलिस की तरफ से अदालत में पेश सबूत-गवाहों पर निर्भर करेंगे. अब तक सामने आई पूरी कहानी यह तो साफ कर चुकी है कि, हत्यारोपी मेजर निखिल हांडा हो या फिर शैलजा. शुरुआती दौर में आंख मूंदकर आगे बढ़े थे. कागज के फूलों से (फरेबी दोस्ती प्यार आदि के लिए) गजरे की सी खुश्बू पाने की उम्मीद में.

खुबसूरती पर लट्टू हुआ मेजर निखिल पहले दिन जब ललचाई नजर के साथ शैलजा के सामने पेश हुआ था, शैलजा ने उसी घड़ी उसे दुत्कार दिया होता, तो इस बदसूरत बे-मेल कहानी के बर्बर अंत की बात तो दूर, शुरुआत ही नहीं हुई होती. बेशक आने वाले वक्त में शैलजा की सनसनीखेज हत्या का आरोपी निखिल हांडा दोषी साबित हो जाए, मगर गफलतें-गलतफहमियां शैलजा ने भी उसकी न बढ़ाईं होतीं तो भी यह दिन देखने को न मिलता.

पुलिस को बताई मेजर निखिल हांडा की कथित कहानी के मुताबिक, शैलजा ने लंबे समय तक मिलिट्री में मेजर पति अमित द्विवेदी को बैंक में अफसर बताया था. अगर निखिल की बात पर विश्वास किया जाए तो सवाल उठता है कि आखिर शैलजा का इसके पीछे क्या मकसद रहा होगा था?

उस ऊंचाई और दूरी से सलामत लौटना मुश्किल था?

मान लीजिए कि, इस रूह कंपा देने वाले अंजाम की कहानी झूठ और फरेब पर लिखी गई थी, लेकिन इसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से शैलजा की रजामंदी नहीं थी, इसे सिरे से नकार देना भी फिलहाल ठीक नहीं है. वजह है शैलजा और निखिल हांडा को वीडियो-कॉल-चैटिंग करते पति मेजर अमित द्विवेदी ने खुद ही रंगे-हाथ पकड़ लिया या था. सच पूछिए तो 23 जून की तबाही की कहानी तो उसी घड़ी से शुरू हो गई थी.

शैलजा भले ही इस बात से पूरी तरह अनजान रही हो. रंगे-हाथ पकड़े जाने पर घर-खानदान की इज्जत का ख्याल तो शैलजा को आया था. न कि मनमौजी मास्टर-माइंड मेजर निखिल राय हांडा को. जहां पहुंचकर शैलजा को कांटों भरे रास्ते से वापिस लौटने का ख्याल आया, वास्तव में निखिल हांडा की वही मंजिल थी. और वहां से सलामत वापिस लौट पाना शैलजा को पाने की चाहत में अंधे हो चुके आरोपी मेजर निखिल हांडा के तो बूते की बात नहीं रही थी.

खुबसूरती ही शैलजा की बबाल-ए-जान बन गई

मॉडलिंग की दुनिया रही हो या फिर घर, परिवार समाज. हर जगह शैलजा की खुबसूरती की सकारात्मक चर्चा हुआ करती थी. इसी खूबसूरती की बदौलत वे मैगजीन के कवर पेज पर छपा करती थीं. यही खुबसूरती उनकी ही निर्मम हत्या का कारण भी बन सकती है, शैलजा ने इस दिल दहला देने वाले सच की कल्पना सपने में भी नहीं की होगी.

बजरिए सोशल मीडिया (फेसबुक) कॉमन-फ्रेंड की वॉल पर मौज-मस्ती वाले मेजर निखिल हांडा ने जैसे ही खूबसूरत शैलजा को देखा, तो वो बेकाबू हो गया. शैलजा के साथ के लिए उसने पहले उसके पति मेजर अमित द्विवेदी का साथ बड़ी चालाकी से साधने की जुगत भिड़ाई. जिसमें निखिल को कामयाबी भी मिल गई. निखिल की उस जीत में ही छिपी थी खूबसूरत शैलजा की वो हार, जो अकाल-मौत के रूप में ही उसे हासिल हुई.

अगर दिल्ली पुलिस के अफसरों की ही बात मानी जाए तो, दिल-फेंक मेजर निखिल हांडा को जो अपनापन और खुबसूरती शैलजा से हासिल हुई, वो किसी और औरत में नहीं थी. हांलांकि आरोपी ने कई और महिलाओं-लड़कियों से भी संबंध होने की बात कबूली है.

सबूतों की तलाश में पड़ताल जारी है मगर हाथ खाली हैं

तेज दिमाग आरोपी मेजर निखिल हांडा से पुलिस को बहुत कुछ उगलवाना और तलाश करके लाना है. चार दिन की पुलिस रिमांड का पहला दौर एक-दो दिन में खत्म होने वाला है. अभी तक पुलिस के हाथ खाली हैं. तलाश जारी है. वारदात में इस्तेमाल कार मिल गई है. खून से सने कपड़े कहां जलाए? आरोपी के बताने के बाद भी पुलिस जले हुए कपड़ों को बरामद नहीं कर सकी है. हालांकि मेरठ के पुलिस अधीक्षक (नगर) रण विजय सिंह इस बात से मुतमईन हैं कि, आज नहीं तो कल आरोपी कानून के जाल में जरूर फंसेगा. वजह उसके खिलाफ साइंटिफिक सबूत इतने ज्यादा हैं कि लाख चाहकर भी आरोपी को बचाव करने में पसीना आ जाएगा.

मौत के सफर के अंत में कुबूल कर लिया कातिल का दावतनामा!

दिल्ली पुलिस के मुताबिक, आरोपी और शैलजा के बीच बीते समय में मधुर-आंतरिक संबंध को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. मसलन घटना को अंजाम देने वाले दिन आरोपी ने ही फोन करके शैलजा को दिल्ली कैंट के आर्मी बेस हॉस्पिटल (आरआर हॉस्पिटल) बुलाया था.

अस्पताल के सीसीटीवी फुटेज में भी दोनो कार में साथ जाते साफ दिख रहे हैं. मोबाइल पर हुई बातचीत भी अदालत में केस को मजबूती से साबित करेगी. कार में लगा खून. कार से मिले आरोपी हांडा और शैलजा के फिंगर प्रिंट भी आरोपी को दोषी करार दिलवाने में मददगार बनेंगे. मोबाइल से आखरी बार बातचीत के लिए बुलाने का सबूत भी पुलिस को मिल चुका है.

शैलजा हत्याकांड का हश्र भी उस तिहरे हत्याकांड सा न हो जाए!

जिसने कत्ल करना था कर दिया. जिसका कत्ल होना था हो गया. बाकी हत्याकांडों की तरह इस मामले की भी पड़ताल जारी है. कातिल कैसे सिद्ध होगा ? यह गवाह, सबूत और पड़ताल की मजबूती पर निर्भर करेगा. आशंका यह है कि, देश को हिला देने वाले शैलजा द्विवेदी हत्याकांड की मिट्टी भी 22 साल पहले जून 1996 में दक्षिणी दिल्ली में हुए पर्सनल प्वाइंट क्लिनिक मालिक/ संचालक डॉक्टर सुनील कौल और उनकी दो सहयोगी कर्मचारियों के तिहरे हत्याकांड सा न हो जाए. जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया था.

इतना ही नहीं पड़ताल और फैसले पर बेबाक टिप्पणियां दर्ज करके दिल्ली हाईकोर्ट ने पड़ताली जांच एजैंसी दिल्ली पुलिस को कई जगह लताड़ लगाई थी. हाईकोर्ट के पलटे गए फैसले में साफ-साफ कह दिया गया था कि, एक अकेला आदमी तीन अलग-अलग जगहों पर तीन लोगों को ठिकाने कैसे लगा सकता है?

उस तिहरे हत्याकांड में ट्रायल कोर्ट ने मुख्य आरोपी दिल्ली नगर निगम के ठेकेदार सुभाष गुप्ता को मार्च 2000 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. सुभाष गुप्ता पर भी आरोप था कि, वो पर्सनल प्वाइंट की कर्मचारी सुजाता शाह और दीपा गुप्ता पर बुरी नजर रखता था. जिसमें डॉ. सुनील कौल रोड़ा बन रहे थे.