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गौतम नवलखा की नजरबंदी खत्म करने के फैसले के खिलाफ SC पहुंची महाराष्ट्र सरकार

महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार भीमा-कोरेगांव मामले में नजरबंदी से आजाद किए गए नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची गई है

FP Staff

महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार भीमा-कोरेगांव मामले में नजरबंदी से आजाद किए गए नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची गई है. महाराष्ट्र सरकार ने नवलखा की नजरबंदी खत्म करने के आदेश को चुनौती दी है. मिली जानकारी के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार इस मामले को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के समक्ष उठाएगी और दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर तत्काल रोक लगाने के साथ-साथ नवलखा के हाउस अरेस्ट को फिर से बहाल करने की मांग करेगी.

याचिका शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में बुधवार सुबह दायर की गई. महाराष्ट्र सरकार के वकील निशांत कातनेश्वर ने बताया कि इसमें दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है.

सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम नवलखा की नजरबंदी को खत्म कर दिया था. पुलिस, नवलखा की ट्रांजिट डिमांड की मांग कर रही थी, लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रांजिट डिमांड की याचिका को खारिज कर दी थी. इस आदेश को नवलखा ने तब चुनौती दी थी जब मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंचा नहीं था.

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने ये आदेश सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद दिया जिसमें नवलखा के साथ चार अन्य को अदालत ने चार सप्ताह के लिए और नजरबंद रखने का आदेश दिया था.

28 अगस्त को नवलखा समेत 5 अन्य को किया गया था गिरफ्तार

पिछले महीने दिल्ली में नवलखा को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था. वहीं शीर्ष अदालत ने 29 सितंबर को पांचों कार्यकर्ताओं को फौरन रिहा करने की एक याचिका खारिज करते हुए कहा था कि महज असमति वाले विचारों या राजनीतिक विचारधारा में अंतर को लेकर गिरफ्तार किए जाने का यह मामला नहीं है. कोर्ट ने कहा था कि आरोपी और चार हफ्ते तक नजरबंद रहेंगे, जिस दौरान उन्हें उपयुक्त अदालत में कानूनी उपाय का सहारा लेने की आजादी है. उपयुक्त अदालत मामले के गुण दोष पर विचार कर सकती है.

महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को हुए एलगार परिषद सम्मेलन के बाद दर्ज की गई एक प्राथमिकी के सिलसिले में 28 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था. इस सम्मेलन के बाद राज्य के भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की थी. इन पांच लोगों में तेलुगु कवि वरवर राव, मानवाधिकार कार्यकर्ता अरूण फरेरा और वेरनन गोंजाल्विस, मजदूर संघ कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता नवलखा शामिल थे.