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सूखा और मुआवजे के भंवर में फंसा किसान बना सियासी कठपुतली

मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होना है. किसानों की माली हालत धीरे-धीरे चुनावी मुद्दे का रूप लेती जा रही है.

Dinesh Gupta

मध्यप्रदेश में किसान राहत पाने के लिए सियासी दलदल में फंसता जा रहा है. राज्य में अगले साल विधानसभा के चुनाव होना है. किसानों की माली हालत धीरे-धीरे चुनावी मुद्दे का रूप लेती जा रही है.

लगभग सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से किसानों की भीड़ जुटाकर आंदोलन करने में लगे हुए हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा भारतीय किसान संघ भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ हर जिले में धरना प्रदर्शन कर रहा है. दूसरी ओर लगभग पांच वर्ष पूर्व भारतीय किसान संघ से निष्कासित किसान नेता शिवकुमार शर्मा ने अपने नए संगठन के बैनर तले बड़ा किसान आंदोलन खड़ा करने की तैयारी कर ली है.


6 अक्टूबर की किसानों की महापंचायत भोपाल में होने वाली है. कांग्रेस भी जिला स्तर पर धरना-प्रदर्शन कर रही है. टीकमगढ़ में आंदोलनकारी किसानों से कपड़े उतरवाकर थाने में बैठाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है. आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति की सियासत भी तेज हो गई है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वो किसानों की आड़ में राज्य कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.

कलेक्टर ने कहा- मैं ज्ञापन लूं जरूरी नहीं

टीकमगढ़ में किसानों के कपड़े उतरवाकर थाने में बैठाने के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुलिस महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ला से तीन दिन में जांच रिपोर्ट मांगी है. राज्य के गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा है कि किसान खुद अपने कपड़े उतारकर थाने में बैठे थे. उन्होंने कहा आंदोलनकारी किसान नहीं युवक कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. टीकमगढ़ के किसानों का प्रदर्शन और कलेक्टर कार्यालय का घेराव जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग को लेकर था.

आंदोलन में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह और युवक कांगे्रस अध्यक्ष कुणाल चौधरी भी थे. सभा के बाद किसानों की मांग थी कि कलेक्टर अभिजीत अग्रवाल खुद ज्ञापन लें. ज्ञापन देने कलेक्टर ऑफिस पहुंचे प्रतिनिधि मंडल को एसडीएम आदित्य सिंह ने कमरे के बाहर ही रोक लिया.

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उन्होंने कहा कि कलेक्टर ज्ञापन नहीं लेंगे. इससे बात बिगड़ गई. पहले पथराव, लाठीचार्ज और फिर हवाई फायर के हालात बन गए. पुलिस ने किसानों को गिरफ्तार कर थाने में बैठा दिया. टीकमगढ़ में अभी भी हालात तनाव पूर्ण हैं. राज्य के आला अधिकारी लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. राज्य के दर्जन भर जिलों में है सूखा,पर सरकार ने घोषित नहीं किया.

जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग

किसान राजनीति में उबाल कम वर्षा वाले जिलों को अब तक सूखाग्रस्त घोषित न करने के कारण आया है. कम वर्षा वाले क्षेत्रों को सूखा प्रभावित घोषित करने में हो रही देरी के कारण नेताओं को किसानों की सियासत करने आसानी हो रही है. राज्य के दर्जन भर जिले गंभीर रूप से सूखे की चपेट में हैं. पूरे प्रदेश में सामान्य बारिश 923 मिली की अपेक्षा 755 मिमी दर्ज की गई है. राज्य के कई जिलों को जल अभाव ग्रस्त घोषित कर दिया गया. इन इलाकों में आने वाले कुछ दिनों में पीने के पानी का बड़ा संकट पैदा होने वाला है.

सबसे खराब स्थिति बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल संभाग की है. सूखे के कारण सोयबीन की फसल को भी जबरदस्त नुकसान पहुंचा है. बीमा कंपनियों ने भी अब तक सर्वे का काम शुरू नहीं किया है. राज्य के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए कुछ मापदंड तय किए हैं. इनकी पूर्ति होने के बाद ही सरकार प्रभावित क्षेत्र को सूखा ग्रस्त घोषित कर पाएगी.

कई जिलों में किसानों को अब तक दलहन की समर्थन मूल्य पर की गई खरीदी का भुगतान भी सरकार से नहीं मिला है. इसके कारण किसान ज्यादा दबाव में हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कहते हैं कि सरकार किसानों की समस्या को हल करने के बजाए, उसकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रही है. प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने कहा कि 24 प्रतिशत की कृषि विकास दर के बाद किसान लगातार आत्महत्या क्यों कर रहा है? सरकार का दावा है कि किसानों की आय में लगभग 55 हजार करोड़ रूपए की वृद्धि हुई है.

भावातंर योजना से किसानों को उचित दाम की नीति

मंदसौर में किसानों पर हुई पुलिस की फायरिंग के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार नई योजनाओं पर काम कर रहे हैं. प्रदेश में किसानों के हित संरक्षण के लिये भावान्तर भुगतान योजना लागू करने का निर्णय लिया गया. यह योजना किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिये पायलट आधार पर खरीफ 2017 के लिये लागू की गई है.

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इस निर्णय के अंतर्गत प्रदेश में किसान द्वारा अधिसूचित कृषि उपज मंडी समिति प्रांगण में फसल विक्रय करने पर राज्य शासन द्वारा निहित प्रक्रिया अनुरूप घोषित मॉडल विक्रय कर और भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर की राशि का किसानों को भुगतान किया जाएगा. भावान्तर भुगतान योजना में खरीफ 2017 की सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द और तुअर की फसलें ली गई हैं. योजना में किसानों ने पोर्टल पर पंजीकरण भी कराया.

किसानों की मांग के बाद इस योजना में मसालों को भी शामिल किए जाने पर विचार किया जा रहा है. किसानों की आय को दुगना करने के लिए कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन की अध्यक्ष में एक मंथन दल भी गठित किया गया है. इस दल में पांच मंत्री शामिल किए गए हैं. इसके बाद भी किसानों को सोयाबीन का निर्धारित समर्थन मूल्य नहीं मिल पा रहा है. सोयबीन का समर्थन मूल्य 3500 तय किया गया है. व्यापारियों के गठजोड़ के कारण 2200 रूपए प्रति क्विंटल से ज्यादा किसानों को नहीं मिल पा रहा है.

हर दल के आंदोलन में भागीदारी कर रहा है किसान

किसानों की समस्या को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय दो संगठन हैं. एक भारतीय किसान संघ दूसरा किसान यूनियन. भारतीय किसान संघ, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संगठन हैं. संगठन हर संभागीय मुख्यालय पर किसानों की मांगों को लेकर आंदोलन कर रहा है. किसान संघ के भोपाल जिला अध्यक्ष राकेश धूत कहते हैं कि हमने आंदोलन करने का फैसला काफी सोच-विचार के बाद लिया है. सरकार ने किसानों को लेकर जो भी वादे किए वो पूरे नहीं हो पाए हैं. किसान में आक्रोश की एक वजह फसल बीमा योजना भी है. योजना के तहत किसानों को प्रीमियम तो काटा गया लेकिन, मुआवजा प्रीमियम राशि से भी काफी कम है. किसी किसान को छह रूपए तो किसी को बीस रूपए बीमा राशि मिली है.

राज्य के कई जिलों में वर्ष 2016 की खरीफ फसल की बीमा राशि भी नहीं मिली है. किसान संगठनों की मांग यह भी है कि सरकार किसान की मासिक आय के आकंडे भी सार्वजनिक करे. इसी के बाद दुगनी आय की बात की जाना चाहिए. किसान अपनी राशि पाने की उम्मीद में दर-दर भटक रहा है. जहां भी किसी संगठन द्वारा आंदोलन का आव्हान किया जाता है, वह पहुंच जाता है.

भारतीय किसान यूनियन के बबलू जाधव कहते हैं कि सरकार किसानों पर झूठे मुकदमे दर्ज कर रही है. किसानों को अनाप-शनाप बिजली का बिल दिया जा रहा है. किसान यूनियन, कांग्रेस के साथ मंच साझा कर रही है.