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काकोरी कांड: जिसने हिला दी ब्रिटिश सरकार की नींव

सभी क्रांतिकारियों ने ट्रेन में रखी सरकारी तिजोरी को उठाकर भाग गए. इस तिजोरी में लगभग 8 हजार रुपए थे

FP Staff

जिस ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था उस ब्रिटिश हुकूमत के सीने में नश्तर घोपने का काम आजादी के मतवालों ने आज से 92 साल पहले 9 अगस्त 1925 को किया था. आजादी की लड़ाई के पन्नों को जब भी पलटा जाएगा तो काकोरी कांड जरूर याद किया जाएगा.

9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद समेत 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से सटे काकोरी में सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में लूट की वारदात को अंजाम देकर अंग्रेजी हुकूमतों की चूले हिला दी थीं.


10 क्रांतिकारियों ने लूटा था करीब 8000 रुपए

क्रांतिकारियों की सूचना मिली थी कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन गार्ड के डिब्बे में सरकारी खजाना जा रहा है. रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक़उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह समेत 10 क्रांतिकारी इस ट्रेन में काकोरी स्टेशन से सवार हुए. ट्रेन जैसे ही काकोरी स्टेशन से आगे बढ़ी, बिस्मिल ने चेन खींच कर उसे रोक दिया.

इसके बाद सभी क्रांतिकारियों ने ट्रेन में रखे सरकारी तिजोरी को उठाकर भाग गए. इस तिजोरी में लगभग 8 हजार रुपए थे.

चार क्रांतिकारियों को हुई फांसी

इस मामले में पुलिस ने 50 लोगों को गिरफ्तार किया. डेढ़ साल मुकदमा चलने के बाद पांच लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई. इसमें रामप्रसाद बिस्मिल को 17 दिसम्बर 1927 को फांसी की सजा दी गई जबकि अशफाक़उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई. चंद्रशेखर आजाद को पुलिस फांसी की सजा नहीं दे सकी, क्योंकि 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए.

राज्यपाल राम नाईक ने किया शहीदों को नमन

9 अगस्त को काकोरी कांड की 92वीं बरसी पर राज्यपाल रामनाईक की उपस्थिति में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए. राज्यपाल ने शहीदों को नमन किया. इस मौके पर बीजेपी सांसद कौशल किशोर समेत कई अन्य नेता भी मौजूद रहे.