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50 के दशक में लिव इन रिलेशनशिप में रहते थे लोहिया और रोमा

जब लोहिया 1933 के आसपास यूरोप से भारत लौटे तो गांधीजी के साथ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े और 1942 में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान लोहिया की गिरफ्तारी भी हुई

FP Staff

राम मनोहर लोहिया भारतीय राजनीति के सबसे तेजस्वी और मेधावी शख्सियतों में एक थे. बड़े विचारक और तर्कवादी मनुष्य. वह ऐसी दुनिया देखना चाहते थे जिसमें न कोई सीमाएं हों और न कोई बंधन. यूं तो लोहिया अविवाहित रहे लेकिन उन्होंने अपनी कंपेनियन रोमा मित्रा से टूटकर प्यार किया. जीवनभर उनके साथ रहे.

लोहिया को किसी परिचय की जरूरत नहीं. सहयोगी उन्हें जीनियस कहते थे. स्कूल और कॉलेज में लगातार प्रथम श्रेणी में पास हुए. उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए. कुछ ही समय में जर्मन भाषा पर इतना अधिकार हो गया कि उन्होंने अपना पूरा रिसर्च पेपर जर्मन भाषा में लिखा. वह मराठी, बांग्ला, हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच भाषाएं जानते थे.


काफी महिला मित्र थीं

राममनोहर लोहिया मानते थे कि स्त्री पुरुष के रिश्तों में सब जायज है बशर्ते सहमति से हो. उसमें धोखा न हो. पूरी जिंदगी उन्होंने जो रिश्ते रखे उनमें इसका पुख्ता तरीके से पालन किया. उनकी महिला मित्रों की बड़ी तादाद थी. सभी उनकी बुद्धिमत्ता, साफगोई और व्यक्तित्व से प्रभावित थीं. लेकिन क्या मजाल कभी किसी महिला मित्र से कोई विवाद हुआ हो. कांग्रेस के सीनियर लीडर वसंत साठे ने एक बार कहा था कि उन्हें याद है कि उन्होंने लोहिया को कई महिलाओं के साथ देखा था लेकिन वह ईमानदार थे. उन्होंने संबंधों को लेकर कभी झूठ नहीं बोला. इसलिए उनके सार्वजनिक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ा.

रोमा से हमेशा रहे अच्छे संबंध

आमतौर पर लोहिया के जीवन में आने वाली महिलाएं भी तीव्र और मेघा वाली थीं. लेकिन उनके जितने अच्छे संबंध रोमा से थे, वो शायद ही किसी और से रहे हों. रोमा को भी लोहिया की किसी महिला से दोस्ती से ऐतराज नहीं रहा. वह खुद प्रखर और बौद्धिक थीं. उन पर सिमोन द बोउवार का प्रभाव था. यूरोप में रहने के दौरान वह उनके संपर्क में भी रही थीं.

लंबे समय से जानते थे

रोमा बंगाल के ऐसे परिवार से थीं, जो वामपंथ से प्रभावित था. उनके एक भाई खुद बड़े वामपंथी नेता थे जो बाद में बंगाल सरकार में मंत्री भी रहे. 30 के दशक में जब लोहिया जर्मनी के हमबोल्ट विश्वविद्यालय से मास्टर्स और पीएचडी करने गए तो रोमा यूरोप में ही थीं. शायद फ्रांस में. दोनों एक दूसरे को जानते थे. पत्रों के जरिए संवाद होता था. रोमा ने वहां रहने के दौरान सिमोन से मुलाकात की. उनका इंटरव्यू लिया.

आकर्षक थी रोमा की पर्सनालिटी

जब लोहिया 1933 के आसपास यूरोप से भारत लौटे तो गांधीजी के साथ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. रोमा भी आमतौर पर उनके साथ होती थीं. इसी दौरान दोनों करीब आए. जब 1942 में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान लोहिया की गिरफ्तारी हुई तो वह रोमा के साथ ही थे. रोमा लंबी और आकर्षक महिला थीं. उनके तर्क उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाते थे.

लिव इन रिलेशनशिप में रहे

50 और 60 के दशक में भारत में लिव इन रिलेशनशिप के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था. तब लोहिया और रोमा लिव इन में एक दूसरे के साथ रहते थे. उस समय तो भारतीय समाज की स्थितियों और मान्यताओं के लिहाज से ये बहुत क्रांतिकारी कदम था. उस समय का समाज वर्जनाओं की रस्सियों से खुद को जबरदस्त ढंग से बांधे हुआ था. जहां विवाह के बिना साथ रहना घोर आपत्तिजनक माना जाता था.

रोमा से कहा-डिस्टर्ब नहीं किया जाए

60 के दशक में लोहिया को गुरुद्वारा रकाबगंज के पास सांसदों का सरकारी आवास मिला था. रोमा उसी घर में लोहिया के साथ रहती थीं. आने-जाने वालों के साथ उनकी मुलाकात भी होती थी. लेखक अयूब सैयद ने अपनी किताब 'ट्वेंट ट्बुलेंट ईयर्सः इनसाइट्स इन टू इंडिय़न पॉलिटिक्स' में लिखा है कि 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब वह लोहिया का इंटरव्यू लेने गए तो उन्होंने उन्हें बेडरूम में बुलाकर लंबी बात की. उन्होंने अपनी मित्र रोमा से कहा वह ध्यान रखें कि इस दौरान न तो उन्हें कोई फोन दिया जाए और न डिस्टर्ब किया जाए. वह ताजिंदगी रोमा के साथ ही रहे. वह भी उनकी पत्नी की तरह रहीं. इसके बावजूद लोहिया जी की अन्य महिला मित्रों के साथ दोस्ती के चर्चे खूब उड़ते रहते थे. रोमा ने कभी इसकी परवाह नहीं की.

रोमा मिरांडा में लेक्चरर थीं

रोमा उन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रख्यात कॉलेज मिरांडा हाउस में लेक्चरर थीं. वह इतिहास विभाग में थीं. मिरांडा में वह वर्ष 1949 से 1979 तक पढ़ाती रहीं. वह छात्राओं के बीच काफी लोकप्रिय थीं. वहां की एक छात्रा सुरजीत, जो बाद में भारतीय विदेश सेवा में चयनित हुईं, उन्होंने कॉलेज की प्लेटिनम जयंती के मौके पर कॉलेज की मैगजीन में एक लेख में रोमा को अपनी पसंदीदा शिक्षिका के रूप में याद किया.

रोमा ने चुनाव भी लड़ा था

रोमा का निधन 1985 में हुआ. इससे पहले उन्होंने 1983 में लोहिया के पत्रों पर एक किताब 'लोहिया थ्रू लेटर्स' प्रकाशित की. इसमें लोहिया के लवलेटर्स भी हैं. रोमा ने 1942 के आंदोलन में शिरकत की. इससे पहले चिटगांव विद्रोह में उनका नाम आया था. बाद में उन्होंने सोशिलिस्ट पार्टी ज्वाइन कर ली थी. जब लोहिया सांसद बने तो उन्होंने उनके घर का जिम्मा भी संभाला. उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.

इस पहलू को क्यों छिपाया गया

लोहिया की 1967 में निधन के बाद उन पर काफी कुछ लिखा गया लेकिन हैरानी की बात है कि जिन लोहिया ने जिंदगी भर स्त्री-पुरुष बराबरी की पैरवी की. जीवनभर संबंधों को लेकर बेबाक और ईमानदार रहे, उनके स्त्री पक्ष औऱ रोमा से रिश्तों पर ईमानदारी भरी रोशनी न तो कभी उनकी पार्टी ने डाली और न ही उनके अनुयायियों ने. उन पर बहुत कुछ लिखा गया लेकिन इस पक्ष को जानबूझकर ढांप दिया गया.

(साभार न्यूज़ 18)