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राजस्थान के स्कूलों में होंगे धार्मिक प्रवचन: नैतिक शिक्षा या ध्रुवीकरण का खुला खेल?

आप किसी दिन राजस्थान के स्कूल में जाएं और आपको लगे कि कहीं किसी गुरुकुल में तो नहीं आ गए तो कुछ अचरज न कीजियेगा.

Mahendra Saini

आप किसी दिन राजस्थान के स्कूल में जाएं और आपको लगे कि कहीं किसी गुरुकुल में तो नहीं आ गए तो कुछ अचरज न कीजियेगा. इस नए सत्र से राजस्थान के शिक्षा विभाग ने एक नई पहल शुरू की है. नए सत्र में स्कूलों के अंदर आपको सिर्फ बच्चे नजर नहीं आएंगे. स्कूल के अंदर अब आपको बच्चों की दादी-नानी और कुछ साधु-संत भी प्रवचन देते नजर आएंगे.

शिक्षा विभाग ने नए सत्र के लिए जारी शिविरा पंचांग यानी वार्षिक कैलेंडर में इसके आदेश दिए हैं. ये पंचांग सिर्फ सरकारी स्कूलों के लिए नहीं है. राजस्थान बोर्ड से सम्बद्ध सभी सरकारी और निजी स्कूलों के साथ ही सीबीएसई से जुड़े स्कूल, अनाथ बच्चों के लिए संचालित आवासीय स्कूलों, विशेष प्रशिक्षण शिविरों और टीचर्स ट्रेनिंग स्कूलों को भी इसे मानना होगा. विभाग ने जिलों में तैनात शिक्षा अधिकारियों से इन व्यवस्थाओं की पालना को सुनिश्चित करने को भी कहा है.


क्या है शिविरा पंचांग में?

शिविरा पंचांग के मुताबिक महीने के पहले शनिवार को स्कूलों में किसी महापुरुष के जीवन का प्रेरक प्रसंग बताया जाएगा. दूसरे शनिवार को शिक्षाप्रद प्रेरक कहानियों को सुनाया जाएगा, साथ ही संस्कार सभा आयोजित होगी. इस संस्कार सभा में बच्चों की दादियों और नानियों को बुलाया जाएगा. ये दादियां और नानियां बच्चों को लोक कथाएं और स्थानीय वीरों (War Heroes) की कहानियां सुनाएंगी.

प्रतीकात्मक तस्वीर

तीसरे शनिवार को स्कूलों में किसी समसामायिक विषय की समीक्षा यानी करेंट अफेयर पर डिस्कशन होगा. इसी दिन किसी महापुरुष या स्थानीय संत का प्रवचन कराया जाएगा. चौथे शनिवार को रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्यों पर प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम आयोजित होंगे.

पांचवें और आखिरी शनिवार को प्रेरक नाटक का मंचन किया जाएगा. साथ ही छात्र-छात्राओं की तरफ से राष्ट्रभक्ति के गीतों का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा. महीने के इस आखिरी शनिवार को सरकारी स्कूलों के छात्र और शिक्षक स्वैच्छिक श्रमदान भी करेंगे.

'नैतिक' शिक्षा पर सरकार-विपक्ष आमने-सामने

शिक्षा विभाग का दावा है कि पाश्चात्य परिवेश में ढलते जा रहे समाज में बच्चों को भारतीय संस्कृति से परिचय कराने के लिए नैतिक शिक्षा जरूरी है. दादी और नानी अपने अनुभवों से बच्चों को कहानियां सुनाकर संस्कारित करेंगी. संत-महात्मा भी प्रवचन के जरिए बच्चों को आदर्श जीवन और तनाव दूर करने के मंत्र देंगे.

सत्ता पक्ष और शिक्षा विभाग चाहे इसे भारतीय संस्कृति के संरक्षण का एक कदम बता रहा हो लेकिन बाकी लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते. पूर्व शिक्षा मंत्री बृजकिशोर शर्मा का कहना है कि राजस्थान से विदा होते होते बीजेपी सरकार स्कूलों के भगवाकरण की नई कोशिश कर रही है और कुछ नहीं.

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा भी इस कदम को अपनी कमियों पर पर्दा डालने की बीजेपी की कोशिश ही करार देती हैं. शर्मा का कहना है कि शिक्षकों की भर्ती करने और आधारभूत सुविधाओं में इजाफा करने के बजाय बीजेपी सरकार बच्चों के जरिये अपने वोटबैंक को साधने का काम कर रही है.

स्कूल बन गए भगवा प्रयोगशालाएं

मौजूदा वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में ये पहला मौका नहीं है जब शिक्षा के भगवाकरण के आरोप लगे हों. शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं. उन पर विपक्ष कई बार संघ के एजेंडे को लागू करने का आरोप लगा चुके है.

ज्यादा दिन नहीं हुए जब सरकारी स्कूलों की यूनिफॉर्म बदली गई. पहले खाकी पैंट और आसमानी शर्ट चलती थी और ऐसे ही लड़कियों के सूट-सलवार थे. लेकिन अब भगवा रंग से मिलती-जुलती यूनिफॉर्म लागू कर दी गई है. लड़कियों को बांटी जाने वाली साइकिलें भी अब केसरिया रंग की ही दी जा रही हैं.

इस बीच, सरकारी स्कूलों में गलियारों (कॉरिडोर) को इस तरीके से सजाने के भी आदेश हुए हैं, जिनसे बच्चे अपनी संस्कृति से परिचित हो सकें. गलियारों में महान लोगों के चित्र और उनके आदर्श वाक्यों को दीवारों पर लिखवाने को कहा गया है. अधिकारी दबी जुबां में कबूल करते हैं कि इन महान विभूतियों की फेहरिश्त में सिर्फ हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध को ही शामिल करने का इशारा दिया गया है. वैसे भी संघ मुस्लिम राज वाले मध्यकाल को भारत के लिए अंधकार की संज्ञा देता है.

सरकारी स्कूलों को PPP मोड पर निजी हाथों में सौंपने की भी सरकार ने पूरी तैयारी कर ली थी. लेकिन इस कदम के पीछे राजे सरकार की मंशा पर सबने उंगली उठाई. जानकारों के मुताबिक पहले चरण में उन 300 स्कूलों को निजी क्षेत्र को देने की तैयारी कर ली गई थी जिनके पास करोड़ों की जमीनें थीं. आरोप है कि ये स्कूल उन लोगों को दिए जा रहे थे जो या तो संघ से जुड़े थे या फिर सत्ता के नजदीक थे. हालांकि चौतरफा विरोध के बाद सरकार ने इस योजना पर आगे न बढ़ना ही मुनासिब समझा.

पुरानी कहावत है- अंधा बांटे रेवड़ियां, फिर-फिर अपनों को ही दे. राजे सरकार में इसके एक नहीं कई उदाहरण देखे जा सकते हैं. अब सरकार ने संघ से जुड़े दर्जनों स्कूलों को सरकारी जमीन या तो मुफ्त या फिर औने-पौने दाम पर देने की तैयारी कर ली है. जब कांग्रेस ने अपनी सरकार आने पर इन सभी मामलों की जांच की बात कही तो नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी खुल्लमखुल्ला सीनाजोरी पर उतर आए. कृपलानी ने ऐलान कर दिया कि जमीन तो देकर रहेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें जेल ही क्यों न जाना पड़े.

लोकतंत्र में ऐसी हठधर्मिता ठीक नहीं है. खासकर उस पार्टी के लिए ये आचरण कतई शुचितापूर्ण नहीं कहा जा सकता जो भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और बेईमानी को कांग्रेसी कल्चर बताती है. नेशनफर्स्ट और सबका साथ, सबका विकास का दावा करने वाली पार्टी से उम्मीद तो ये भी नहीं की जानी चाहिए कि भारतीय संस्कृति के नाम पर बच्चों को सिर्फ सनातनी नायकों के बारे में ही बताया जाए. आखिर, बाबर के खिलाफ राणा सांगा की तरफ से लड़े हसन खान मेवाती और अकबर के खिलाफ महाराणा प्रताप का साथ देने वाले हकीम खान सूर को या देश की आजादी के नायकों में अशफाकउल्लाह खान को कैसे छोड़ा जा सकता है ?

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )