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शराब बैन: नशे में लड़खड़ाते ड्राइवरों की समस्या का ये समाधान तो नहीं...

जब अदालतें जनता के लोकप्रिय रुझानों पर प्रतिबंध लगाती हैं, तब चिंता होना स्वाभाविक है.

Akshaya Mishra

अगर आपको कोई समस्या है तो प्रतिबंध समाधान है, ऐसा कहने में किस किस्म की समझदारी है?

'हाईवे से 500 मीटर के भीतर 'प्यास बुझाने' के प्रबंध पर प्रतिबंध क्यों? अगर 501 मीटर की दूरी पर किसी का कोई बार हो तब क्या कहेंगे आप? कमाल की बात है, सिर्फ एक मीटर की दूरी के फर्क से एक संस्था कानूनी हो जाती है और एक गैरकानूनी. और इससे असली समस्या का क्या लेना-देना है? असली समस्या लोगों के शराब पीने और पीकर सड़क पर निकल पड़ने की है. जाहिर है, ये तो कोई तर्क नहीं हुआ.' मेरे समझदार किस्म के जले-भुने पड़ोसी ने गुस्से में कहा.


वो परेशान था कि जबसे राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों के 500 मीटर के भीतर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया है, तबसे शहर के बाहर उसकी पसंदीदा जगह पर शराब मिलनी बंद हो गई है

उसने आगे कहा, 'शराब पूरी तरह से रोकें. उससे ही सारी समस्याओं का समाधान हो पाएगा.'

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शराब बैन क्यों प्रभावी नहीं हो सकता?

पड़ोसी की बात समझ आती है. हाइवे से बार तक की दूरी सड़क दुर्घटनाओं का कारण नहीं है; शराब पीकर गाड़ी चलाना कारण है. अब होटल या बार के चालाक मालिक अपने संस्थानों के दरवाजे को बदलकर या एक सुरक्षित दूरी पर पीने की जगह बनाकर इस नियम को चकमा देने की कोशिश करेंगे.

अब इस समस्या से कैसे निपटेंगे आप? अब क्या एक किलोमीटर की दूरी वाला एक और प्रतिबन्ध लगाएंगे? बिलकुल मुमकिन है कि जुगाड़ू शराब विक्रेता इसका भी कोई न कोई तोड़ निकाल ही लेंगे.

कहने का मतलब है कि अदालत के आदेश के पीछे इरादा अच्छा हो सकता है लेकिन समाधान पूरी तरह से नाकाम है. हमने अभी भी उन लोगों की बात नहीं की है जो घर में 'चढ़ा' कर या शहर में 'लगा' कर हाइवे पर निकल पड़ते हैं. उनको अपनी बोतल अपने साथ ले जाने का भी लालच हो सकता है. यही वो लोग हैं जिनके सड़क हादसों का शिकार बनने का पूरा चांस होता है.

होटल मालिकों का दावा है कि इस फैसले से लगभग 10 लाख लोगों की नौकरी जाएगी. क्या कोर्ट ने ये आदेश पारित करते समय ये सोचा था? अगर ऐसा हुआ है तो ये फैसला इसके भीतर की नाइंसाफी को समझने में नाकाम रहा है. एक मीटर या कुछ मीटरों की दूरी से हजारों लोगों की आजीविका छिन जाएगी. ये किसी और के किए की सजा है जो उनको भुगतनी पड़ रही है.

कानून बनाने नहीं, मनवाने की है दिक्कत

नहीं, हम उन शराबियों की बात नहीं कर रहे जो पीकर गाडी चलाते हैं- वो तो सीधे-सीधे ही पूरे मामले में खलनायक हैं- हम कानून का पालन करवाने वालों की बात कर रहे हैं, जिनको अपना फर्ज पूरा करने में और अधिक मेहनती होना चाहिए था.

शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ काफी कानून बने हुए हैं. मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत इस तरह के अपराधियों के लिए लाइसेंस कैंसिल करना, कड़ी पेनल्टी मुकर्रर करना और यहां तक कि जेल भेजने तक का प्रावधान रखा गया है. अगर इन प्रावधानों को ठीक से लागू किया जाता तो कानून तोड़ने वालों को भगवान का डर दिखाया जा सकता.

नए तरीके ईजाद करने होंगे

नशा करके गाड़ी चलाने के खतरे पर रोक लगाने के लिए जरूरी कदमों की तरफ किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता? कई ऐसी बातें हैं जिनसे स्टियरिंग के पीछे बैठे शराबी का पता लग सकेगा और उसको सजा दी जा सकेगी. ऐसा तब हो सकेगा जब वे शराब की दुकानों को छोड़कर हाइवे पर आएंगे. लगातार ड्राइवरों का औचक निरीक्षण भी उपयोगी साबित हो सकता है.

लोग इसमें भी कानून को बेवकूफ बनाने के तरीके ढूंढ निकालेंगे, लेकिन उसकी वजह यही है कि इस तरह की समस्याओं का पक्का इलाज नहीं है. मुंबई में शराब पीकर गाड़ी चलाने से रोकने के लिए कानून के डंडे का कड़ाई से इस्तेमाल होता है. बेंगलुरु में भी इसका थोड़ा फायदा देखा गया है. ऐसा कोई कारण नहीं है कि ये तरीका दूसरी जगह कारगर साबित न हो सके.

इसका समाधान प्रतिबन्ध तो हो ही नहीं सकता. वो तो एक आसान समाधान है. वो केवल किसी की अक्षमता और समाधान के साथ रचनात्मक होने की क्षमता की कमी को छिपाने में मदद करता है.

प्रतिबंध नहीं है समाधान

इस बात को लेकर अब हम वापस अपने उस दोस्त के पास चलते हैं.

'शराब पीने पर प्रतिबन्ध लगाइए. चूंकि बलात्कार होता है इसलिए यौन संबंधों पर भी रोक लगाइए. औरतों पर रात को हमले होते हैं इसलिए औरतों का रात को घूमना-फिरना बंद कीजिए. अरे सड़कों पर भी तो रोक लगाइये. अगर सड़क नहीं होगी तो गाड़ियां नहीं होंगी. गाड़ियां नहीं मतलब गाड़ी चलाने वाले नहीं और गाडी चलाने वाले नहीं मतलब दुर्घटनाएं नहीं. तब हर कोई सुरक्षित हो जाएगा.'

उसकी आवाज में व्यंग्य साफ नजर आता है. और हां, अगर वो सनकियों जैसी बातें कर रहा है, तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं है. ये तो तय है, प्रतिबंधों से ज़्यादा बेहतर समाधान हैं इस दुनिया में.

जब खुद अदालतें भी जनता के लोकप्रिय रुझानों पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर देती हैं, तब तो चिंता होना स्वाभाविक ही है.