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राजीव दीक्षित (पार्ट 1): जिनकी डिग्रियां खुद उनके फर्जीवाड़ों का खुलासा करती हैं

राजीव दीक्षित की पचासवीं सालगिरह और सातवीं पुण्यतिथि पर उनके जीवन और उनके दावों का नीर-क्षीर परीक्षण किया जा रहा है.

Avinash Dwivedi

अर्द्धज्ञान हमेशा अज्ञान से ज्यादा खतरनाक होता है. समझदार लोग इस बात को हमेशा ध्यान रखते हैं. पर आज के 'पोस्ट ट्रुथ' के युग में ये बात अपना अर्थ खो रही है. बहरहाल पिछली शताब्दी में राजीव दीक्षित को लेकर अलग-अलग लोग अलग-अलग करते हैं. चूंकि पहले ही कह दिया गया है कि समझदार लोग अर्द्धज्ञान से बचकर चलते हैं, इसलिए मीडिया के बड़े भाग ने राजीव दीक्षित को ज्यादातर इग्नोर किया था. हालांकि उनकी मौत और मौत से जुड़े षड्यंत्र और बयान गाहे-बगाहे कवर भी किए थे.

अक्सर कुछ लोग मीडिया पर राजीव दीक्षित को इग्नोर करने का आरोप लगाते रहे हैं. अभी तक जो ऊपर लिखा गया, ये उसी इग्नोर किए जाने का स्पष्टीकरण है. फिर राजीव दीक्षित पर आज लिखना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि जब ट्रंप की जीत के बाद पोस्टट्रुथ के जुमले पर दुनिया भर में बहस चल रही थी. उसी दौर में कई वेबसाइट्स, जिनके बड़ी संख्या में इंटरनेट पर पाठक हैं, राजीव दीक्षित को स्थापित करने में जुटी थीं. उन्होंने काफी सारा वैचारिक कचरा एक जगह पर इकट्ठा कर दिया था.


ऐसे में राजीव दीक्षित की पचासवीं सालगिरह और सातवीं पुण्यतिथि (हालांकि कुछ लोग दावा करते हैं कि पुण्यतिथि वाले ही दिन बाद में जन्मदिन मनाया जाने लगा ताकि आदमी विशेष लगे) जो कि 30 नवंबर को है. इस सुअवसर पर उनके जीवन और उनके दावों का नीर-क्षीर परीक्षण किया जा रहा है. हम ये जांच प्रश्नोत्तर के जरिए करेंगे. शुरुआत में एक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न पूछा जा रहा है, जिसका उत्तर सारी जांच के बाद मिलेगा. बीच में आप कुछ लघु उत्तरीय प्रश्नों से दो-चार होंगे.

लेख का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न- क्या राजीव दीक्षित देश के महान वैज्ञानिकों में से एक थे? और भारत में उनके जैसी विभूतियां कम ही हुई हैं?

राजीव दीक्षित के व्यक्तित्व और कामों पर बात शुरू करें, उससे पहले ये वीडियो देखें-

इस वीडियो में राजीव यह दावे करते हैं-

1. वह एक प्रमुख वैज्ञानिक थे. जो भारत की एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक शोध संस्था CSIR में रिसर्चर थे.

2. जर्मनी का मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट उनको रिसर्च के लिये खरबों डॉलर देने को तैयार था.

3. भारत सरकार जर्मनों की इस भारतीय रिसर्च को चुराने में मदद कर रही थी.

4. इसलिये राजीव ने रिसर्च ही बंद कर दी. ताकि वो अपनी बौद्धिक संपदा को जर्मनी के हाथ लगने से बचा सकें.

तो अगर राजीव दीक्षित के इन दावों को सही माना जाए तो उनके अकादमिक रिकॉर्ड्स, उनके शोध से जुड़े रिकॉर्ड और अगर वो वैज्ञानिक थे तो कम से कम उनके छोटे-मोटे रिसर्च पेपर उपलब्ध होने चाहिए. हालांकि, उनका बड़ा रिसर्च (राजीव का दावा है कि वो एंटी-ग्रेविटी पर था) भले ही उन्होंने बंद कर दिया हो पर वैज्ञानिक होने के नाते इससे अलग उनके कुछ पेपर्स तो प्रकाशित होने ही चाहिए.

पर ऐसा कुछ भी उपलब्ध नहीं होता. यहां तक कि जिस गाइड के अंडर अपने रिसर्च की बात वह करते हैं, उसके बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिलती है. ऐसे में एक खोजी के रूप में मेरी जिज्ञासा बढ़ जाती है. और दिनों-दिन रिसर्च के बाद जो सामने आता है वो हतप्रभ कर देता है. आइए आपको भी बताते हैं राजीव दीक्षित वास्तव में कितना पढ़े थे?

लघु उत्तरीय प्रश्न: 1- राजीव दीक्षित ने बी.टेक किया था?

rajivdixit.net नाम की वेबसाइट पर 'राजीव भाई जीवन परिचय' सेक्शन में उनका यह परिचय मिलता है-

इसमें उनकी शिक्षा के बारे में कहा गया है-

उनकी प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद में हुई. उसके बाद 1984 में उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहबाद गए. वे सैटेलाईट टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे लेकिन अपनी B.Tech की शिक्षा बीच में ही छोड़कर देश को विदेशी कंपनियों की लूट से मुक्त कराने और भारत को स्वदेशी बनाने के आंदोलन में कूद पड़े. इसी बीच उनकी प्रतिभा के कारण CSIR में कुछ परियोजनाओं पर काम करने और विदेशों में शोध पत्र पढ़ने का मौका भी मिला.

अब आइए जरा अंग्रेजी विकिपीडिया की पड़ताल भी कर लेते हैं. आखिर बड़ी संख्या में लोग उसकी बात भी मानते ही हैं. तो विकिपीडिया कहता है कि उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकम्यूनिकेशन में बी. टेक किया. उनके पास एक एम.टेक की डिग्री थी और उन्होंने थोड़े वक्त के लिए वैज्ञानिक के रूप में काम भी किया.

वैसे पाठकों को जानकारी के लिये बता दें कि ये दावा झूठा है और बी.टेक का कोर्स सीधे तौर पर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में नहीं है. इसके अलावा अलग-अलग जगहों पर कई ऐसे तथ्य सामने आ जाते हैं जो उनकी डिग्री पर सवाल खड़ा कर देते हैं.

फिर आती है एक दूसरी वेबसाइट krantikari.org पर जहां दावा किया गया है कि राजीव दीक्षित ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद से 1983-85 में बी.टेक किया.

प्रिय पाठकों को फिर से यहां जानना चाहिए कि इस संस्थान की स्थापना ही 1999-2000 में हुई थी.

वैसे बी.टेक के बारे में अलग-अलग दावों के बीच असली सवाल ये बनता है कि जब लगभग सारे ही स्त्रोत दावा करते हैं कि राजीव दीक्षित की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा फिरोजाबाद में हुई और उच्च शिक्षा के लिए वह 1984 में इलाहाबाद गए. (हालांकि कुछ और साल भी उच्च शिक्षा के प्रारम्भ के रूप में बताये जाते हैं पर 1984 सबसे ज्यादा है.) ऐसे में यह फर्जी दावेदार इस बात का क्या जवाब देंगे कि उन्होंने एक साल में (1985 तक) बीटेक कैसे कर लिया?

हां, एक संभावना है. राजीव दीक्षित इलाहाबाद से नहीं बल्कि कानपुर आईआईटी से बी.टेक हों. पर ये संभावना बेहद ढीली है क्योंकि बी.टेक चार साल का होता है, जो वह करते तो 1987 में पूरा होता. पर राजीव दीक्षित ने तो 1987 में पी.एच.डी भी कर ली थी. (व्यंग्य के तौर पर पढ़ें).

प्रश्न: 2- क्या राजीव दीक्षित ने कानपुर आईआईटी से एम.टेक किया था?

अब ऊपर जिस rajivdixit.net का जिक्र किया गया है उसके इस दावे पर फिर से ध्यान दें-

वे सैटेलाईट टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे लेकिन अपनी B.Tech की शिक्षा बीच में ही छोड़कर देश को विदेशी कंपनियों की लूट से मुक्त कराने और भारत को स्वदेशी बनाने के आंदोलन में कूद पड़े. इसी बीच उनकी प्रतिभा के कारण CSIR में कुछ परियोजनाओं पर काम करने और विदेशों में शोध पत्र पढ़ने का मौका भी मिला.

इससे उनके एम.टेक का दावा ही खारिज हो जाता है. पर नहीं जब राजीव दीक्षित स्वयं देश के कई शैक्षणिक संस्थानों में यह कहते हुए घूमे हैं कि वह आईआईटी के छात्र रहे हैं. तो पड़ताल हर संभव पहलू की होनी चाहिए.

पर उनकी शिक्षा पर किए गए दावों के हिसाब से राजीव दीक्षित को 18 साल की उम्र में ही एम.टेक की डिग्री आईआईटी से मिल चुकी थी. उस आईआईटी से जिसमें 17 साल से कम उम्र पर बीटेक में एडमिशन नहीं मिलता है. वैसे इस मामले में हमें भी ज्यादा पड़ताल की जरूरत इसलिए भी नहीं पड़ी क्योंकि आईआईटी कानपुर ने खुद भी एक आरटीआई (RTI) का जवाब देते हुए कहा है कि राजीव दीक्षित नाम का कोई भी छात्र वहां से एम.टेक की डिग्री के साथ पास नहीं हुआ है. जवाब देखें-

लघु उत्तरीय प्रश्न: 3- तब क्या राजीव दीक्षित ने सैटेलाइट कम्यूनिकेशन में पीएचडी की थी?

ऐसे में कुछ वेबसाइट्स पर 1987 में एक फ्रांसीसी यूनिवर्सिटी से पीएचडी का उनका दावा भी झूठा हो जाता है. क्योंकि इसे मानने का मतलब होगा कि वो 20 साल की उम्र में बिना किसी प्रॉपर बैचलर डिग्री के रिसर्च पूरा कर चुके थे.

लघु उत्तरीय प्रश्न: 4- राजीव दीक्षित के अब्दुल कलाम के साथ वैज्ञानिक के तौर पर काम करने और CSIR का वैज्ञानिक होने की बात में कितनी सच्चाई है?

राजीव दीक्षित और अभी उन पर उपलब्ध साहित्य दोनों ही इस बात का दावा करते हैं कि उन्होंने एक साल फ्रांस में सैटलाइट कम्यूनिकेशन वैज्ञानिक के तौर पर काम किया. पर फ्रांस या CSIR से उनकी किसी भी रिसर्च के प्रमाण नहीं मिलते. ऐसे में उनकी इस बात में झोल नजर आता है क्योंकि CSIR बिना उपयुक्त पात्रता के किसी को रिसर्च क्यों करने देगा? हो सकता है उन्होंने कुछ स्वतंत्र शोध किया हो. पर जो दावा राजीव दीक्षित विदेशों में शोध का करते हैं उसमें झोल ही झोल हैं क्योंकि उनका ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता.

इसके बाद ये दावा आता है कि 1988-1989 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी में राजीव दीक्षित ने वैज्ञानिक के पद पर काम किया. यहीं पर उनके भारत के पूर्व राष्ट्रपति और प्रमुख वैज्ञानिकों में से एक रहे ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ काम करने का दावा भी किया जाता है. पर चूंकि ये सारी कहानी ही जब फर्जीवाड़े पर खड़ी है तो यह हवा-हवाई बात कहानी का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा है. क्योंकि इस इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना ही 2007 में हुई है.

यानि जो राजीव दीक्षित 'डेटा इज द न्यू ऑयल' के दौर में लोगों को बड़े स्तर पर इंटरनेट पर मौत के बाद भी स्वदेशी इंटेलेक्चुअल बन प्रभावित कर रहे हैं. उन्होंने अपने पीछे अपनी पढ़ाई की एक अगड़म-बगड़म कहानी छोड़ रखी है. जो थोड़े से प्रयास से ही उनकी और उनकी सारी पढ़ाई और रिसर्च की पोल खोल देती है.

आइए, अब सबसे मुख्य प्रश्न को हल करते हैं.

राजीव दीक्षित अपने 'एंटी ग्रेविटी' के रिसर्च को बंद करवाए जाने की बात करते हैं और कहते हैं कि इसे वो CSIR के साथ कर रहे थे. ये ऐसा पहला रिसर्च था. पर आप इस तथ्य को जांचेंगे तो पाएंगे कि इस क्षेत्र में CSIR के शोध से पहले भी कई प्रयास इसके लिए हो चुके थे. आप साधारण गूगल करके इसकी जानकारी पा सकते हैं.

फिर एंटी-ग्रेविटी के लिए जब आप रिसर्च जनरल खोजते हैं तो आपके सामने हजारों की संख्या में रिसर्च पेपर आते हैं. पर आप तमाम कीवर्ड्स की मशक्कत के बाद भी एक भी इस मुद्दे पर लिखा राजीव दीक्षित का रिसर्च पेपर नहीं ढ़ूंढ़ सकते. कहीं तो उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान कुछ लिखा होगा. विदेशी नहीं तो किसी भारतीय शोध पत्र में, वो भी नहीं तो CSIR के किसी पब्लिकेशन में छोटा सा लेख ही सही. पर ऐसा कुछ भी नहीं मिलता. CSIR की वेबसाइट पर भी कोई जिक्र उनका नहीं मिलता.

इस स्टोरी को करने के दौरान मैंने कई बार राजीव दीक्षित से जुड़े लोगों से बात करने का प्रयास किया. इस प्रयास में मेरी बात एक स्वदेशी कार्यकर्ता रोहित दुबे से हुई. जिन्होंने कभी आईआईटी से मिले आरटीआई के जवाब को झुठलाने का प्रयास किया था.

मैंने रोहित से राजीव दीक्षित से जुड़े डॉक्यूमेंट्स भेजने का अनुरोध किया जिसपर रोहित ने मुझे rajivdixit.net से राजीव दीक्षित का परिचय कॉपी करके भेज दिया. वैसे ये ऊपर उनकी आरटीआई की व्याख्या भी क्यों ही रह जाये? तो ये समझना बहुत आसान है कि इस फर्जी आरटीआई में नीचे से दूसरा पैरा, जिसमें राजीव के कानपुर आईआईटी (IIT) का स्टूडेंट होने की बात की जा रही है. अलग अंग्रेजी के फॉन्ट में बाद में लिखा गया है. रोहित शायद जानते नहीं सरकारी डॉक्यूमेंट्स से छेड़छाड़ के मामले में उन्हें सजा भी हो सकती है.

वैसे 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की 2010 में राजीव दीक्षित की मौत के बाद छपी एक खबर में भी ऊपर बताए गए दावे किए गए थे. पर जिस भावुकता के साथ खबर लिखी गई है, उद्धृत तथ्यों का गलत होना कोई बड़ी बात नहीं है. साथ ही ऊपर के तर्कों और RTI के जवाब के बाद मामला दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है. रिपोर्ट देखें-

पोस्ट ट्रुथ आज के दौर की बड़ी समस्या है. आज कई ऐसी बातें सोशल मीडिया और व्हॉट्सऐप के जरिए समाज में फैल रही हैं, जिनसे सीधे-सीधे सांप्रदायिक्ता और हिंसा बढ़ती है. ऐसे में फेक न्यूज़ के किसी भी प्रकार को अपराध की तरह मानकर उससे दूर रहना चाहिए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)