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समलैंगिक होने की बात स्वीकारी तो नहीं पढ़ने दी नमाज !

उनैस कहते हैं, जैसे ही मैंने अपने समलैंगिक होने की बात कबूली मेरे दोस्त मुझसे दूरी बनाने लगे. जो दोस्त मेरे साथ भी हैं वह भी मेरे साथ समाज के सामने आने से डरते हैं

FP Staff

भारतीय दंड सहिता की धारा 377 के तहत समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है. सुप्रीम कोर्ट अपने द्वारा दिए गए 2013 के फैसले पर पुनर्विचार और फिर से सुनवाई करेगी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच, ब्रिटिश कालीन धारा 377 की संवैधानिकता की समीक्षा करेगा. सु्प्रीम कोर्ट में, लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर (LGBT) समुदाय के पांच लोगों की याचिका के जवाब में इस फैसले पर सुनवाई होनी तय हुई है.

कोर्ट की स्वीकृति समाज की स्वीकृति नहीं है


सुप्रीम कोर्ट भाले ही समलैंगिकता को अपराध न माने पर समाज समलैंगिकता को कभी नहीं स्वीकार करेगा. यह कहना है केरल के मोहम्मद उनैस का. उनैस मानते हैं कि मुस्लिम धर्म का पालन करते हुए समलैंगिकता को अपराध नहीं मानने पर भी यह आसान नहीं रह जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट की सहमति भी समाज के लिए बाध्यकारी नहीं

सुप्रीम कोर्ट के पुनर्विचार वाले फैसले से देश भर में एलजीबीटी समुदाय आशान्वित है. अगर समलैंगिकता को अपराध न माना जाए तब भी उनैस जैसे लोगों का डर कितना जायज है यह आने वाला वक्त बताएगा.

क्या है उनैस की कहानी?

उनैस अंग्रेजी साहित्य में स्नातक हैं. उनका परिवार समाज से लगभग बहिष्कृत है. उन्हें हत्या की धमकियां बहुत सामान्य लगने लगी हैं.

उनैस कहते हैं,  जैसे ही मैंने अपने समलैंगिक होने की बात कबूली मेरे दोस्त मुझसे दूरी बनाने लगे. जो दोस्त मेरे साथ भी हैं वह भी मेरे साथ समाज के सामने आने से डरते हैं क्योंकि कहीं न कहीं उन्हें लगता है कि समाज उन्हें जीने नहीं देगा.

जब बच्चे अच्छी तालीम लेते हैं तब वे समलैंगिक बन जाते हैं

उनैस के घरवाले जिस मस्जिद में नमाज अदा करने जाते थे वहां का खतीब(प्रचारक) उनके परिवार वालों का नाम लिए बगैर लोगों के सामने खरी-खोटी सुनाता था. वह अप्रत्यक्ष रूप से कहता था कि जब लोग अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए भेजते हैं तब उनके साथ यही होता है.

कोच्चि गे परेड के बाद मिलीं धमकियां

पिछले साल कोच्चि में एक गे परेड हुई थी. उनैस उस परेड में शामिल हुए थे. उन्होंने फेसबुक पर काली लुंगी और हरे रंग की शर्ट में एक फोटो डाली थी जिसके बाद उनके इनबॉक्स में खूब सारे लोगों ने प्रतिक्रियाएं भेजनी शुरू की. कुछ उनके सपोर्ट में थे तो कुछ के संदेश नफरत और हिंसा से भरे हुए थे.

ऐसे छूट गया मस्जिद जाना

उनैस की आस्था इस्लाम में है. लेकिन जब वह मस्जिद में प्रार्थना करने जाते हैं लोग उन्हें घूरते हैं और तीखे सवाल करते हैं. इसलिए उन्होंने मस्जिद जाना छोड़ दिया है. हालांकि उनैस का मानना है कि इस्लाम समलैंगिक लोगों के लिए अच्छी और उदार जगह है.

इस्लाम समलैंगिकों के लिए उदार है

उनैस कहते हैं, यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस्लाम बहुत उदार है पर मुस्लिम नहीं. समाज की दकियानूसी है जिसकी वजह से लोग हमारे खिलाफ हैं. ऐसे कई मुस्लिम विद्वान हैं जो समलैंगिकता को सपोर्ट करते हैं पर लेकिन लोगों के सामने इसे स्वीकार नहीं कर पाते. वह केवल लोगों की प्रतिक्रियाओं से डरते हैं.

उनैस याद करते हुए कहते हैं कि बचपन में जब वे मस्जिद और दरगाह पर जाते थे तब वह चाहते थे कि उनका लैंगिक आकर्षण बदल जाए लेकिन तीन साल पहले ही उनमें यह हिम्मत आई कि वह अपने समलैंगिक होने का ऐलान लोगों में कर सकें.

25 वर्षीय उनैस कहते हैं कि कुरान एलजीबीटी समुदाय को सपोर्ट करता है. कुरान की व्याख्या गलत ढंग से की गई है जिसमें समलैंगिकता को हराम बताया गया है.

फिल्म देखने के बाद चिढ़ाने लगे थे बच्चे

2005 में एक फिल्म रिलीज हुई थी छंटूपोत्तू. इस फिल्म में अभिनेता दिलीप ने एक स्त्रैण व्यक्ति की भूमिका निभाई थी. उनैस इस फिल्म की रिलीज के बाद उनैस का स्कूल में मजाक उड़ाया जाने लगा था. हाल में ही किए गए एक फेसबुक पोस्ट में उनैस ने अपना अनुभव शेयर किया था जिसके बाद मलयालम फिल्मों की अभिनेत्री पृथ्वी मेनन उनैस के सपोर्ट में आकर, उनैस से फिल्म जगत की ओर से माफी मांगी. फिल्म जगत ने जिस तरह सेक्शुअल अल्पसंख्यकों के खिलाफ अलग तरह का समाज में माइंडसेट फैलाया है जिस पर उनैस के सपोर्ट में आने के बाद पृथ्वी ने अफसोस भी जताया.

परिवार साथ है पर समाज से डर लगता है

उनैस के साथ उनके परिवार का सपोर्ट है लेकिन उनके घरवाले घबराते भी हैं कि उनैस के साथ समाज का व्यवहार कैसा होगा. उनैस अपने मां की बात याद करते हुए कहते हैं कि एक बार उनकी मां ने उनसे पूछा था कि क्यों प्रगतिशील इस्लामिक मौलवी चेकन्नूर की हत्या की गई थी और क्यों जोसेफ मास्टर के हाथ काट लिए गए थे?

चेकन्नूर मौलवी इस्लाम की रूढ़िगत व्याख्या से हटकर प्रगतिशील व्याख्या करते थे. 1993 में वह आचानक से गायब हो गए थे. ऐसा माना जाता है कि इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उनकी हत्या कर दी थी. 2010 में प्रोफेसर टी जे जोसफ की अतिवादियों ने हत्या कर दी थी. जोसफ पर आरोप था कि उन्होंने ईश निंदा की थी.

एलजीबीटी समुदाय को कब समझेगा समाज

अनस बताते हैं कि जबसे उन्होंने फेसबुक पर अपने समलैंगिक होने का ऐलान किया तब से उन्हें भी मारने की धमकियां आम लगने लगी हैं. जो धमकियां उन्हें मिलती हैं उनमें से अधिकांश मुस्लिम अतिवादियों की होती है. उन्हें लगता है कि मैं इस्लाम को नुकसान पहुंचा रहा हूं. एक आदमी ने तो यहां तक कह दिया था कि आज शाम तक मुझे मार देगा.

इसलिए उनैस मानते हैं कि धारा 377 को खत्म करने से एलजीबीटी समुदाय को खास फर्क नहीं पड़ेगा जब तक कि समाज में रहने वाले लोगों की सोच नहीं बदलेगी.

(अशीम पीके की न्यूज 18 के लिए रिपोर्ट)