view all

सर्जिकल स्ट्राइक के नए खुलासे के बाद जानिए 'सूसू-पॉटी' को लेकर इतने सेंसेटिव क्यों होते हैं तेंदुए

28 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी. उसके तार बड़ी वाइल्डलाइफ से भी जुड़े हैं

Subhesh Sharma

जिस रास्ते पर बाघ के चलने के निशान दिख जाते हैं, फिर उस पर चलने की कोई हिम्मत नहीं करता. ये बात आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि 28 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी. उसके तार वाइल्डलाइफ से भी जुड़े हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि सर्जिकल स्ट्राइक से क्या लेना देना? लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर हुए कुछ चौंका देने वाले खुलासों ने ये बात साबित की है कि इस ऑपरेशन को कामयाब बनाने के लिए वाइल्डलाइफ की दुनिया से एक बड़ी सीख ली गई थी. ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाले पूर्व नगरोटा कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राजेंद्र निम्भोड़कर ने ऐसी रोचक बातें बताईं हैं, जिससे आपको अपनी सेना की कार्रवाई पर बेहद गर्व महसूस होगा.

चौकन्ने कुत्तों को भी नहीं हुई कानों-कान खबर


सेना बॉर्डर पार कार्रवाई करने जा रही है. इस बात की भनक चौकन्ने रहने वाले गांव के कुत्तों को भी नहीं पड़ी. आमतौर पर किसी बड़ी हलचल पर आसपास के कुत्ते खासकर अगर कुते जंगली हों तो शोर करने लगते हैं. किसी अनजान आदमी को देखकर वो हमला कर देते हैं. निम्भोड़कर ने कहा, 'रास्ते से गुजरते समय संभावनाएं थी कि कुत्ते हम पर भौंक सकते थे. लेकिन मुझे पता था कि वो तेंदुओं से डरते हैं. हमने तेंदुए का मूत्र अपने साथ ले लिया और गांव के बाहर फेंक दिया. इसके बाद कुत्तों की हिम्मत नहीं हुई कि वो आगे बढ़ते और हम पर हमला करते.'

इस इलाके में कदम रखना वर्जित है

सेना की कार्रवाई को अगर जंगल की दुनिया से जोड़ें तो हमें जंगली जानवरों के बारे में कुछ दिलचस्प बातें पता चलती हैं. आपने टीवी पर कई बार बाघ, तेंदुओं जैसे बड़े जानवरों को बार-बार पेड़ों पर मूत्र का छिड़काव करते देखा होगा. आपने देखा होगा कि कैसे कोई तेंदुआ या बाघ मूत्र छिड़काव करने के बाद, दो पैरों पर खड़े हो कर, पेड़ों को अपने पंजे से खुरचते हैं.

पेड़ों को खुरचने से उनके नाखून तेज होते हैं. लेकिन इसके पीछे की एक वजह ये भी है कि वो पेड़ों पर पंजों के निशान बनाकर दूसरे जानवरों के लिए अपना वॉर्निंग बोर्ड भी तैयार करते हैं. जिसका मतलब ये हुआ कि भैया ये मेरा इलाका और ये हैं मेरे पंजों के निशान. इस इलाके में कदम रखना वर्जित है. इसके अलावा एक वयस्क नर बाघ और बाघिन भी एक दूसरे से मूत्र के छिड़काव के जरिए अपनी मौजूदगी और वो मेटिंग के लिए तैयार हैं या नहीं ये भी बताते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि इनके मूत्र की गंध करीब-करीब 40 दिनों तक रहती है.

कुछ बिल्लियां क्यों ढक देती हैं अपना मल

Image Source: Asif Khan

बाघ और तेंदुए सिर्फ मूत्र या फिर पेड़ों पर पंजे मारकर ही अपना इलाके की निशानी नहीं बनाते. बल्कि इसके लिए वो अपने मल का भी इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि हर एक बिल्ली अपना मल खुले में रहने देती हो. बाघ, शेर और तेंदुए जैसी बड़ी बिल्लियां अपने मल को नहीं ढकतीं और अपनी मौजूदगी जाहिर होने देती हैं. वहीं छोटी जंगली बिल्लियां जैसे सिवेट कैट, जंगल कैट, कैरकल आदि अपने मल को ढक देती हैं, ताकि किसी दूसरी बड़ी बिल्ली को उनकी मौजूदगी के बारे में पता न चल जाए.

एक कहानी ऐसी भी

मशहूर जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में एक वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट ने एक बार बताया था कि बाघ अक्सर उसी जगह मल करने वापस लौटता है, जहां उसने पहले मल किया था. उन्होंने कहा था कि मल करने के बाद वो उसे अपने पैरों से खुरचता है और फिर अपने इलाके की सैर पर निकल जाता है. ऐसा वो इसलिए करता है. ताकि अपने मल की गंध वो अपने पूरे इलाके में फैला सके. और जहां-जहां जाए, वहां-वहां दूसरे जानवरों को उसकी मौजूदगी का एहसास हो जाए. हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है कि बाघ एक ही जगह बार-बार लौट कर मल करता हो. इसके पीछे कई कहानियां हैं और उनमें से ही एक ये भी थी.