झारखंड सरकार के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय जितना संतुष्ट आज की तारीख में शायद ही कोई हो. 900 करोड़ रुपए के चारा घोटाले से आगाह करने वाले प्रमुख लोगों में शामिल सरयू राय ने शिवानंद तिवारी के साथ मिलकर 11 अक्टूबर 1994 को लालू यादव और अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे.
23 साल बाद उनकी कोशिशें अपने अंजाम तक पहुंची हैं. सीबीआई कोर्ट ने 6 जनवरी को आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को साढ़े तीन साल जेल की सजा सुनाई है और देवघर की ट्रेजरी (सरकारी खजाना) से 89.27 लाख रुपए धोखाधड़ी से निकालने के एवज में 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है.
मामला पहली बार 1985 में प्रकाश में आया. तत्कालीन सीएजी टीएन चतुर्वेदी की नजरों में यह बात आई कि बिहार ट्रेजरी के मासिक खाते हमेशा देर से सुपुर्द किए जा रहे हैं. बहरहाल, समय गुजरता गया और कई बरसों के दरम्यान सरकारी राशि की छोटे स्तर पर होने वाली हेरा-फेरी बढ़कर 900 करोड़ के घोटाले में तब्दील हो गई. राजफाश हुआ कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार जारी है और बिहार सरकार के पशुपालन विभाग में सरकारी पैसे का गबन हो रहा है.
झारखंड सरकार में संसदीय मामलों और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मंत्री सरयू राय उस वक्त बिहार में बीजेपी के महासचिव थे. उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को एक साक्षात्कार में बताया कि 'हमारे लिए यह एक लंबी लड़ाई थी और हमने तय कर लिया था कि लालू यादव और उनकी भ्रष्ट सरकार का पर्दाफाश करके रहेंगे. साल 1985 से 1990 के बीच कुछ लाख रुपए सरकारी खजाने से हेराफेरी करके निकाले गए थे. लेकिन 1990 के बाद पशुपालन विभाग में भ्रष्टाचार खूब बढ़ा और आगे चलकर कई करोड़ के घोटाले में तब्दील हो गया.'
सरयू राय ने झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के समय में लौह-अयस्क खदानों के आवंटन में हुए घोटाले का भी पर्दाफाश किया था.
साक्षात्कार के चुनिन्दा हिस्से पेश हैं-
लालू यादव को हुई सजा के बारे में आप क्या सोचते हैं?
जिस बड़े पैमाने का भ्रष्टाचार हुआ उसे देखते हुए यह सजा साधारण कही जाएगी. लेकिन कुछ और मामलों में सुनवाई अभी लंबित है.
सजा सुनाए जाने के बाद आरजेडी के कुछ नेतओं और इसके सहयोगी शरद यादव ने कहा कि इससे आरजेडी मजबूत होगी और लालू यादव पहले से ज्यादा मजबूत नेता बनकर उभरेंगे...
यह सब लोगों को सुनाने की बातें हैं. जो लोग मामले में दोषी पाए गए उन्हें अदालत ने सजा सुनाई है. आरजेडी के नेता के रुप में लालू यादव कितने वरिष्ठ हैं और उनका जनाधार कितना बड़ा है, यह बात कानून की राह का रोड़ा नहीं बनी. जब वे लोग हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी डालेंगे तो लालू यादव जिस जन-समर्थन का दावा करते हैं, वह किसी काम नहीं आएगा.
मिसाल के लिए 1997 के मामले को ही लीजिए. उस वक्त लालू यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप बहुत दमदार थे और जनता दल में बगावत हो गई. लालू यादव को अलग होना पड़ा और उन्होंने अपनी आरजेडी बनाई. सन् 2000 के बिहार विधानसभा के चुनावों में आरजेडी की सीटें घट गईं और लालू यादव को विपक्ष में बैठना पड़ा.
साल 2015 में वे एक दशक के बाद फिर सत्ता में आए लेकिन इसके लिए उन्हें नीतीश कुमार की जेडीयू का सहारा लेना पड़ा और बाद में 2017 की जुलाई में आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई ने लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ मामले दर्ज किए थे. इस दरम्यान लालू यादव जेल में भी रहे. अगर जेल जाने से लालू यादव मजबूत होते तो उनका जनाधार खिसका नहीं होता.
घोटाले के खिलाफ आपने जो लड़ाई लड़ी उसके बारे में थोड़ा विस्तार से बताएंगे?
साल 1985 से 1990 के बीच सरकारी खजाने से कुछ लाख रुपए हेराफेरी करके निकाले गए थे. लेकिन 1990 के बाद पशुपालन विभाग में भ्रष्टाचार की गंगा बह निकली और घोटाला कई सौ करोड़ रुपयों तक जा पहुंचा. मैंने 11 अक्तूबर 1994 को लालू यादव और उनकी सरकार के खिलाफ आरोप लगाए. हमने पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली, शिवानंद तिवारी इस याचिका में हमारे साथी थे और हमारी तरफ से मामले की पैरवी करने वाले वकील थे रविशंकर प्रसाद, जो अब केंद्रीय कानून मंत्री हैं.
बिहार सरकार ने 1991-12, 1992-93 तथा 1993-94 के अपने खाते के ब्यौरे सीएजी को नहीं भेजे थे. नतीजतन, 1995 में सीएजी ने तीन सालों की एक व्यापक रिपोर्ट पेश की और इस रिपोर्ट से भ्रष्टाचार और सरकार की नाकामी उजागर हो गई.
इसके बाद 27 जनवरी 1996 को पश्चिमी सिंहभूम जिले के उपायुक्त (डिप्टी कमिश्नर) अमित खरे ने चाइबासा में पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा. उनकी टीम ने जो दस्तावेज जब्त किए उससे साफ हो गया कि अधिकारियों और व्यापारियों की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर सरकारी राशि का गबन हो रहा था.
लालू प्रसाद मुख्यमंत्री के रुप में घोटाले के लिए कैसे जिम्मेदार थे?
मुख्यमंत्री कागजात पर हस्ताक्षर करने के अलावा अपनी तरफ से कुछ खास नहीं करता लेकिन इससे आप अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. जब पहली बार उन्हें भ्रष्टाचार की जानकारी हुई तो उन्हें इसे रोकना चाहिए था लेकिन भ्रष्टाचार बढ़ता गया और उसने देश के सबसे बड़े घोटाले का रुप ले लिया. ऐसे मामलों में यह नहीं कहा जा सकता कि मुख्यमंत्री शामिल नहीं थे. उनके खिलाफ षड़यंत्र रचने के आरोप हैं.
लेकिन आपकी झारखंड सरकार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. आपका इस बारे में क्या सोचना है ?
जब कोई सत्ता में होता है तो वह भ्रष्टाचार या घोटाले को ढंक सकता है लेकिन उसके सत्ता में बाहर होने पर घोटाले का पर्दाफाश होना ही है. मैंने ऐसे मामले अपनी सरकार में भी उठाए हैं और आगाह किया है. मेरा पक्का विश्वास है कि राज हमेशा कानून का ही चलना चाहिए.