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कुंभ मेला 2019: जहां आस्था और धर्म किसी एक पंथ, ग्रंथ या रीति के दायरे में नहीं हैं

संगम में एक तरफ नागा साधुओं का दल है तो दूसरी ओर उनकी मौजूदगी से बेफिक्र नदी में उतरती अपने इर्द-गिर्द पानी में छपाछप करती महिलाओं की टोली. आप चाहें तो इस दृश्य में लैंगिक समानता के भाव को उसके सबसे पावन रूप में ढूंढ़ सकते हैं

Ajay Singh

आंखों को अचरज से मोह लेने वाला दृश्य था वह. पौ फटने में पहर भर शेष था और हमारी छोटी सी नाव अभी संगम (प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के आपसी मेल की जगह) की तरफ मुड़ी ही थी कि लोगों का विशाल रेला बर्फीले पानी में पवित्र स्नान की डुबकी लगाने के लिए उमड़ उठा जबकि उत्तर भारत के मिजाज से देखें तो हवा में ठंढ की खुनक अच्छी खासी थी. और, इस तरह शुरू हुआ शाही स्नान!

इस शाही स्नान के साथ हिन्दू धर्म के महापर्व कुंभ मेले की विधिवत शुरुआत हुई. इस भीड़ में किसी को पहचाना नहीं जा सकता क्योंकि हर शख्स की पहचान मानवता के एक विराट चेहरे में घुल-मिलकर एक हो जाती है. परंपरा और आधुनिकता, शाश्वत और नश्वर के मेल की अनूठी अभिव्यक्ति है यह दृश्य !


लैंगिक समानता का अद्भुत संगम

एक तरफ नागा साधुओं (एक पंथ जिसके अनुयायी निर्वस्त्र रहते हैं) का दल है तो दूसरी ओर उनकी मौजूदगी से बेफिक्र नदी में उतरती अपने इर्द-गिर्द पानी में छपाछप करती महिलाओं की टोली. आप चाहें तो इस दृश्य में लैंगिक समानता के भाव को उसके सबसे पावन रूप में ढूंढ़ सकते हैं.

पहली नजर में यह पूरा दृश्य ऐसा लगेगा मानो हजार साल पहले का कोई वाकया हो लेकिन इस पूरे दृश्य पर इक्कीसवीं सदी की विराट छाया डोल रही है- तीन ड्रोन ऊपर आसमान में चक्कर काट रहे हैं. इन ड्रोन के सहारे पुलिस कंट्रोल रूम से नजर रखी जा रही है ताकि कुंभ मेले में आए लाखों लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

संगम में शाही स्नान के लिए उतरती नागा साधुओं की टोली फोटो-पीटीआई

सूरज अपने उगने की पहले वाली जगह से तनिक हटकर निकला है- इसे सूर्य का उत्तरायण होना कहा जाता है. आकाश में सूर्य का सफर उत्तर दिशा की तरफ शुरू हो चुका है और सूरज की इस यात्रा से दृश्य और भी ज्यादा मोहक हो उठा है. सौरमंडल के भीतर होने वाले इस गति-परिवर्तन को मंगलकारी माना जाता है- अब दिन लंबे होने लगेंगे, लोगों को कंपकंपाती ठंढ से राहत मिलेगी.

प्रकृति के शाश्वत सौन्दर्य से अभिभूत श्रद्धालु- धनी और गरीब, नौजवान और बुजुर्ग, स्त्री और पुरुष- सभी देवताओं को प्रार्थना के स्वर में पुकार रहे हैं. पुराणों में आता है कि देवता अमृत-कलश यानी कुंभ में अवतरित होते हैं. इस सबके बीच, स्वयंसेवकों का दल घाट पर हर जगह डटा हुआ है- स्नान के बाद अगर कोई कूड़ा-कर्कट कहीं जमा हो रहा है तो स्वयंसेवकों का यह दल उसे हटा रहा है.

कुंभ...एक अटूट परंपरा

कुंभ एक ऐसी घटना है जो इतिहास के चौखटे से बाहर घटित होती है- यह अनादि काल से चली आ रही एक अटूट परंपरा है. लेकिन इस शाश्वत परंपरा से जुड़ी हुई हर चीज नश्वर और क्षणभंगुर है. कुंभ का अपना एक जटिल कैलेंडर या कह लें पञ्चांग होता है. हर बार दो से चार साल की अवधि के बाद चार पवित्र तीर्थस्थलियों प्रयागराज (चंद वक्त पहले तक इसका नाम इलाहाबाद था), हरिद्वार, नासिक तथा उज्जैन में कुंभ या अर्धकुंभ लगता है.

अनादि काल से देश भर से श्रद्धालु इस जगह पर इक्ट्ठे होते रहे हैं. माना जाता है कि समुद्र-मंथन के बाद इस तीर्थस्थल पर अमृत-कलश से कुछ बूंदे टपक पड़ी थीं. समुद्र-मंथन से निकले उस अमृत में हिस्सेदारी करने और अमरतत्व प्राप्त करने की धार्मिक भावना से लाखों की तादाद में लोग संगम पर एकत्र होते हैं- ऐसा लगता है मानो मानव-मात्र का कोई महासमुद्र अपनी तमाम धाराओं के साथ उमड़ पड़ा हो.

लेकिन पौराणिक कथाओं में वर्णित अनश्वरता की इस कथा के साथ भौतिक ढांचे का नश्वर परिवेश भी लगा-बंधा है. इस ढांचे को तीन महीने की समय-सीमा में खड़ा किया गया है. मेला खत्म होगा तो यह भौतिक ढांचा जिसमें अभी पूरे आस्ट्रेलिया के बराबर आबादी ठिकाना बनाये हुए है- किसी बुलबुले की तरह हवा मे विलीन हो जायेगा. बस छह महीने के भीतर गंगा और यमुना के तट से इस भौतिक ढांचे का हर चिह्न मिट जाएगा.

पुख्ता इंतजाम 

उत्तरप्रदेश की सरकार ने हिन्दुओं के इस सबसे पावन तीर्थ में रहने-ठहरने के इंतजाम में बड़ी मात्रा में निवेश किया है. गंगा और यमुना के किनारे तकरीबन 3200 हेक्टेयर की विशाल भूमि सरकार ने फिलहाल अपनी देखरेख में रखी है. इस विशाल भू-भाग को कई प्रशासनिक खंडों में बांटा गया है और इन प्रशासनिक खंडों में सारा इंतजाम सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी बहाल किए गए हैं.

कुल 1500 उच्चकोटि के तंबू और रैनबसेरा खड़े किए गए हैं. 122,500 की तादाद में शौचालय बने हैं. ऐसा लगता है मानो प्रयागराज के भीतर एक नया शहर ही बस गया हो. इस पूरी नगरी में गंदे पानी की निकासी के लिए एक कारगर सीवरेज प्रणाली तैयार की गई है और गंदे पानी के प्रवाह को नजदीक के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा गया है ताकि नदी में कोई गंदगी ना जाए. कुछ नालों के जरिए जहरीला अवशिष्ट नदी में गिर रहा था- सरकार ने ऐसे नालों का मुंह बंद कर दिया है.

संगम पर जहां श्रद्धालु पवित्र स्नान की डुबकी लगायेंगे वहां बड़े कारगर ढंग से घेराबंदी की गई है और पानी के तल का विशेष ध्यान रखा गया है कि वह चार फीट या फिर इससे कम ही रहे. घेरा इस तरह बनाया गया है कि वह जाल से बंधा रहे ताकि कोई स्नान करते वक्त नदी के प्रवाह में किसी तरफ फिसल जाए तो जाल के कारण घेरे के अंदर ही रहे- बहकर दूर ना जाने पाये. दरअसल, थोड़े में कहें तो सरकार ने धरती पर मनुष्य-मात्र के सबसे विराट् समागम यानी कुंभ के मेले को आसान, आरामदेह और सुरक्षित बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.

मुश्किल था इंतजाम का काम

कुंभ मेले का इंतजाम करना बहुत जटिल काम है और इन जटिलताओं के पेशेनजर इसमें कोई शक नहीं कि कुंभ का मेला एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती भी है. सुबह मेले की शुरुआत महानिर्वाणी अखाड़े के नागा साधुओं के स्नान से हुई. देह पर भस्म लेपेटे ये नग्न संन्यासी एक ऐसे अध्यात्मिक पंथ के अनुयायी हैं जिसमें आत्मा के उन्नयन के लिए देह की वृतियों को अंकुश में रखने की कठोर साधना करनी होती है.

इस पंथ की साधना-पद्धति आज के हिसाब से बहुत पुरानी और विचित्र जान पड़ेगी लेकिन उसे हिन्दू-धर्म की वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का एक संकेत समझना चाहिए, इस बात की दलील कि हिन्दू-धर्म में अलग-अलग रीति और तौर-तरीके से अध्यात्म के पथ पर चलने की गुंजाइश रही है.

लगभग एक घंटे तक इस अखाड़े के संन्यासी संगम में एक नियत स्थान पर डटे रहे. इस दौरान प्रशासन स्थिति को काबू में रखने की नीयत से पूरा चौकस था. नागा संप्रदाय के संन्यासी बड़े गर्म-मिजाज होते हैं और हल्के सा उकसावा भी गंभीर परेशानी का सबब बन सकता है. लेकिन अखाड़े के संन्यासी स्नान से खूब संतुष्ट होकर घाट से बाहर आए. इसके बाद अटल अखाड़े के साधुओं ने स्नान किया. एक दिलचस्प बात यह भी रही कि अखाड़े के अन्य श्रद्धालु भी संगम में नागा संन्यासियों के हाथों होने वाले जलाभिषेक की रस्म में शामिल हुए.

चरम पर अध्यात्म

जिस बड़ी तादाद में लोग कुंभ के अवसर पर संगम में जुटते हैं और अध्यात्म की भावना जिस तेजी से हिलोर मारती है- उस पूरे परिवेश को नजर में रखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि कुंभ मेला मनुष्य मात्र के बीच बराबरी कायम करने की सबसे बड़ी युक्ति है.

संभव है चंद सुविधा-संपन्न महानुभावों को अधिकारी-वर्ग से घनिष्ठता के कारण कुंभ-स्नान में मनचाही आसानी हो गई हो लेकिन उनके चेहरे पर संतुष्टी के वैसे भाव ना थे जैसा कि उन लोगों के चेहरे पर देखने को मिला जो हजारों मील दूर से आए, अपने पैरों पर चलकर संगम तक पहुंचे और अध्यात्म की अपनी प्यास को बुझाने के भाव से संगम में डुबकी लगाई.

भोर का पहला स्नान करने के लिए झुंड में निकलते नागा साधुओं का वो दृश्य देखते ही बनता है

श्रेय प्रशासन को जाता है कि उसने इंतजाम को चुस्त-दुरुस्त रखने में दिन-रात एक कर दिया और संगम के पवित्र स्थल पर पहुंचे आम श्रद्धालुओं को अपनी पूजा-अर्चना में आसानी महसूस हुई- उन्हें लगा कि इस बार का इंतजाम पहले की तुलना में बेहतर है.

प्रयागराज का 2019 का अर्धकुंभ मेला 4 मार्च तक चलेगा. ज्यादा से ज्यादा तादाद में यहां श्रद्धालु जुटेंगे- उनके मन में यह कामना होगी कि कुंभ स्नान करके अपने पापों का प्रक्षालन कर लें. पवित्र स्नान के अतिरिक्त श्रद्धालु भव्य गंगा-आरती और रामलीला देख सकेंगे और कुंभ के इतिहास को दर्शाता लेजर शो देखने का भी उनके पास मौका होगा. एम्युजमेंट पार्क, संगम वाक, हेरिटेज वाक, वर्चुअल रियल्टी क्योस्क और सेल्फी प्वाइंट का भी इंतजाम किया गया है.

कुंभ-स्नान के पावन परिवेश में श्रद्धालु असली भारत की एकजुट छवि को अपनी आंखों से देखेंगे- उन्हें महसूस होगा कि भारत-भूमि पर आस्था और धर्म किसी एक पंथ, ग्रंथ या रीति के दायरे में बंधकर रहने का नाम नहीं.

(कुंभ पर हमारी स्पेशल वीडियो सीरीज देखने के लिए यहां क्लिक करें. इस सीरीज के पहले पार्ट में जानें कि कैसे कुंभ के लिए प्रयागराज में एक पूरा शहर बसाया गया है और प्रशासन ने कैसी हाईटेक व्यवस्था की है, देखिए- KUMBH 2019: It's More Than a Mela