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कुलभूषण जाधव को फांसी: भारत-पाक समझौता करेंगे या टकराव

जाधव के मुद्दे के हल पर टिका है भारत और पाकिस्तान का रिश्ता

Sujan Dutta

पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण सुधीर जाधव को बगैर पुख्ता सबूत, बंद दरवाजों के पीछे सेना के जनरलों ने मौत का फरमान सुना दिया.

पाकिस्तान की इस कार्रवाई के बाद अब इस्लामाबाद और दिल्ली के बीच टकराव और नरमी के बीच किसी एक का चुनाव करने का ही विकल्प बच जाता है.


दोनों देश किस पुल पर बढ़ने का निश्चय करते हैं ये दोनों देश की सत्ता में बैठे शासकों की बुद्धि से तय होना है.

ग्लेनएके ब्रिज है एकमात्र रास्ता

लेकिन इस संदर्भ में जिस पुल की बात की जा रही है वो ना तो भारत और ना ही पाकिस्तान के पास है. क्योंकि इस पुल का संदर्भ मिलता है जर्मनी के बर्लिन और इसके दक्षिणी उपनगर पॉस्टडैम मे, जिसे ग्लेनएके ब्रिज भी कहा जाता है.

दुनिया भर में ये 'ब्रिज ऑफ स्पायज' के नाम से मशहूर है क्योंकि वर्ष 2015 में हॉलीवुड में ठीक इसी नाम से एक फिल्म बनी.

पिछले वर्ष कुछ इसी समय यह संवाददाता भी ग्लेनएके ब्रिज पर मौजूद था. दरअसल तब सीमा विवाद पर अध्ययन के मकसद से इस संवाददाता ने यहां का दौरा किया था. हालांकि जर्मनी के एकीकरण के बाद से 'ब्रिज ऑफ स्पायज' एक विवादित सीमा नहीं रह गई है.

लेकिन 1957 के शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में बनी इसी फिल्म में सोवियत संघ में सीक्रेट मिशन पर गए एक अमेरिकी जासूसी विमान US2 के पायलट को मार गिराए जाने का दृश्य देखने को मिलता है.

एक रूसी जासूस जिसे अमेरिका में गिरफ्तार कर लिया जाता है. उसके वकील के बेहद तनावपूर्ण माहौल में की गई बातचीत के बाद आखिरकार एक सोवियत पेंटर के बदले उन्हें आजाद कर दिया जाता है. यह घटना उसी ग्लेनएके ब्रिज पर धुंध भरी एक रात घटती है.

कुलभूषण जाधव नौसैनिक थे 

इसका कतई मतलब ये नहीं है कि कुलभूषण जाधव एक जासूस हैं. भारतीय नौसेना के मुताबिक कुलभूषण एक नौसैनिक थे जिन्होंने वर्ष 2003 में समयपूर्व सेवानिवृत्ति ले ली थी. और खुद का कारोबार शुरू करने की चाहत में वो इरान के बंदरगाह शहर चाबहार में पहुंचे.

चाबहार इरान के सिस्तान और बलूचिस्तान इलाके में है जहां जिंदगी आसान नहीं. बलूचिस्तान एक ऐसा इलाका है जिसकी सीमा तीन देशों - इरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लगती है.

इरान के बलूचिस्तान की राजधानी जहादान है.यहां सुन्नी मुसलमानों की संख्या ज्यादा है. लेकिन ये हिस्सा देश का सबसे गरीब इलाका भी है.

अब तक मिली जानकारी के मुताबिक पाकिस्तानी सेना का कहना है कि जाधव बतौर हुसैन मुबारक पटेल इरान की सीमा को पार कर मशकल पहुंचे थे.और एक सूचना के आधार पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ने उन्हें पिछले साल 3 मार्च को पकड़ लिया.

इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने एक वीडियो जारी किया जिसमें भारतीय नौसेना के इस पूर्व ऑफिसर को ये कबूल करते दिखाया गया है कि वो भारत के रिसर्च एंड अनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करते हैं.

हिंसात्मक गतिविधियों को भड़काना था जाधव का मकसद?

पाकिस्तानी सेना के मुताबिक जाधव के पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में घुसपैठ करने के पीछे मकसद अपने संपर्क को बढ़ाना था, और ग्वादर ( जहां चीन पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर है ), पाश्नी और जीवानी बंदरगाह में विद्रोहियों को हिंसात्मक गतिविधियों के लिए भड़काना था.

लेकिन पाकिस्तान जिस तरीके की बातें बता रहा है उसमें कई पेंच हैं. चार महीने पहले दिसंबर के महीने में पाकिस्तान के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने मीडिया से कहा था 'जाधव के मामले में जो डॉजियर है वो काफी नहीं है. अब ये संबंधित अधिकारियों पर निर्भर करता है कि एजेंट से संबंधित जानकारी देने में वो कितना विलंब करते हैं.'

भारत ने हमेशा से जाधव को भारतीय नागरिक माना है. ठीक उसी तरह जैसा कि भारत ने हमेशा से इस बात को लेकर इंकार किया है कि जाधव किसी जासूसी मिशन पर पाकिस्तान गए हुए थे.

वर्ष 2012 में भारतीय जासूस मलॉय कृष्ण धर जो इंटेलिजेंस ब्यूरो में कार्यरत थे उन्होंने एक काल्पनिक किताब 'मिशन टू पाकिस्तान' लिखी थी.

इस किताब में रवींद्र कौशिक के जासूसी सफर के बारे में लिखा गया था. जिन्हें राजस्थान के श्रीगंगानगर से भर्ती किया गया फिर बाद में उन्हें ट्रेनिंग मुहैया कराई गई. बाद में उन्हें दुबई का चक्कर लगाते हुए पाकिस्तानी सेना में घुसपैठ करने का टास्क सौंपा गया.

लेकिन वो एक और भारतीय जासूस से आगे निकल चुका था जिसका पीछा किया जा रहा था और अंत में उसकी हत्या कर दी गई.

इस्लामाबाद ने सबरजीत को लेकर की थी झूठी घोषणा

2013 में धर की किताब के एक साल बाद भारत और पाकिस्तान ने एक दूसरे के साथ कुछ ऐसा किया जो बर्बरता की तमाम सीमाएं लांघ गईं.

सबसे पहले इस्लामाबाद ने घोषणा की कि राष्ट्रपति ने कथित तौर पर भारतीय जासूस सबरजीत सिंह की सजा माफ कर दी है और उसे रिहा कर दिया जाएगा.

लेकिन थोड़े ही समय बाद इस्लामाबाद ने एक और बयान जारी किया और कहा कि दरअसल राष्ट्रपति ने सरबजीत सिंह को नहीं बल्कि सुरजीत सिंह की सजा को माफ किया है.

सुरजीत और सरबजीत दोनों दो गांव - भिकिविंड और फिद्दा गांव के किसान थे. ये दोनों गांव पाकिस्तान सीमा से सटे पंजाब से 70 किलोमीटर दूर है.

वाघा सीमा से घुसपैठ कर भारत पहुंचे सुरजीत ने मीडिया को तब कहा था कि वो एक जासूस हैं और पाकिस्तानी सीमा में कई बार घुसपैठ कर चुके हैं.

भारतीय अधिकारियों ने तब उन्हें उसके हाल पर छोड़ दिया था. उन्होंने कहा था कि उनकी मुलाकात सरबजीत से हुई थी.

उन्होंने ही इस बात की पुष्टि की थी कि जो शख्स 1990 में लापता हो गया था वो तब तक जिंदा था. इसी के बाद सरबजीत के परिवार वालों ने सरबजीत की रिहाई को लेकर मुहिम चलाई थी.

लेकिन मई 2013 में शायद सरबजीत की पीट-पीट कर पाकिस्तान के जेल में हत्या कर दी गई थी. उनके शव को पाकिस्तान से भारत एक सर्विस एयरक्राफ्ट के जरिए भेजा गया.

सरबजीत की हत्या की खबर फैलने से एक दिन पहले जम्मू के कोट बलवाल जेल में भारतीय सेना के जवानों और कैदियों ने कथित रूप से राणा सनाउल्लाह हक के साथ मारपीट की और उनकी हत्या कर दी.

हक के खिलाफ आरोप था कि वो पाकिस्तानी जासूस थे और हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के साथ मिलकर जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना के ठिकानों को तबाह करने में जुटे थे. छह दिन बाद शरीर पर लगी चोट की वजह से उनकी मौत हो गई थी.

इस पूरी कहानी को अब ब्रिज ऑफ स्पाय के पर रूडॉल्फ एबल और फ्रांसिस गैरी की अदलाबदली की पृष्ठभूमि के साथ देखने की कोशिश करें.

जासूस के बदले जासूस वो भी उस दुनिया में जहां हर देश स्वीकारता है कि वो एक दूसरे के खिलाफ जासूसी करते हैं,यही है 21 वीं सदी की दुनिया के लिए सबसे बड़ा सबक है.

भारत ने कई मछुआरे और चरवाहों को समय समय पर किया है रिहा

भारत और पाकिस्तान, भारत और श्रीलंका यहां तक कि भारत और चीन - इन सभी देशों ने आपस में मछुआरे और चरवाहे - जो कि विवादित सीमा और मैरीटाइम सरहद के अंदर दाखिल हो जाते हैं उन्हें समय समय पर रिहा किया है. भारत की जेलों में भी कथित तौर पर कई आईएसआई एजेंट भरे हुए हैं.

लेकिन कई बार माहौल सरकार के फैसले को सुनिश्चित करता है. मसलन, सीमा पर अगर सेना के जवानों का सिर काट लिया जाता है, सेना के ठिकानों पर हमला होता है या फिर सीजफायर का उल्लंघन होता है, तो ऐसे माहौल में किसी भी सरकार के लिए बातचीत करना काफी कठिन होता है.

लेकिन अब जबकि चुनाव खत्म हो चुके हैं,तो ग्लेनएके ब्रिज - जो टकराव और नरमी का विकल्प तय करता है - उसका संदर्भ यहां मजबूत हो जाता है. अगर 20 वीं शताब्दी के आधे वक्त तक अमेरिका और रूस जो आपस में एक दूसरे के कट्टर दुश्मन थे, वो आपस में बातचीत से मामला सुलझा सकते हैं. तो फिर आज के वक्त में दूसरे देश ऐसा क्यों नहीं कर सकते ? और जाधव बिना किसी तर्क के भारतीय नागरिक हैं.