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कुलभूषण जाधव को सजा का मतलब साफ है, भारत जीत रहा है

कुलभूषण जाधव की रिहाई बिना शर्त कराने की हर मुमकिन कोशिश होनी चाहिए

Sandeep B

सुनने में आपको भले ही अजीब लग सकता है, मगर है ये बिल्कुल सच. कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान का मौत की सजा सुनाना इस बात का सबूत है कि भारत की ताजा पाकिस्तान नीति कारगर रही है.

दक्षिण एशिया मामलों के जानकार रॉबर्ट काप्लान ने अपनी किताब द रेवेंज ऑफ जियोग्राफी में लिखा है कि, 'दुष्टता पाकिस्तान की पहचान है. केवल अफ्रीका के बदनाम देश अफगानिस्तान, हैती, यमन और इराक ही नाकाम देशों की लिस्ट में पाकिस्तान के ऊपर हैं. पाकिस्तान में फौज का राज है. पाकिस्तान की फौज को भारत का खब्त है. पाक फौज भारत से जंग का खौफ दिखाकर बरसों से राज करती आई है. पाकिस्तान के अमीर लोग, देश की जितनी संपत्ति चुरा सकते हैं, वो चुराते हैं. वो एक पैसा टैक्स नहीं भरते. पाकिस्तान में सरकार नाम की चीज न होने की वजह से यहां बीस-बीस घंटे बिजली कटती है. मुल्क के कई इलाकों में शिक्षा व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं.'


रॉबर्ट काप्लान ने ये बातें 2012 में लिखी थीं. पाकिस्तान उस वक्त नाकाम देशों की फेहरिस्त में तेरहवें नंबर पर था. पिछले साल ये एक पायदान चढ़कर 14वें नंबर पर पहुंच गया.

पाकिस्तान ऐसा देश है, जो कभी कोई सबक नहीं लेता. भारत ने कई बार उसे आर्थिक, सामरिक और राजनयिक मोर्चे पर धूल चटाई है. लेकिन पाकिस्तान है कि मानता नहीं.

पाकिस्तान को दिमागी खब्त है कि वो भारत को या तो तबाह कर दे या फिर उसे मुसलमान मुल्क बना दे. आज की तारीख में पाकिस्तान के पास चीन के सिवा कोई दोस्त भी नहीं. और चीन, पाकिस्तान का कैसा दोस्त है, ये बात उसके पाकिस्तान से एक अरब डॉलर के गधे खरीदने के एलान से साफ है.

आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान बिल्कुल अलग-थलग पड़ गया है. आजाद मुल्क के तौर पर पाकिस्तान की ऐसी दुर्गति नहीं हुई थी. अब पाकिस्तान दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए बेकरार है. कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाना इसी बात की मिसाल है. ऐसा लगता है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत दौरे से पाकिस्तान इस कदर बौखलाया कि उसने जाधव को फटाफट मौत की सजा सुना दी.

भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए हाल में कई कदम उठाए हैं. भारत ने कई अरब देशों से ताल्लुक बेहतर करने की कोशिश की है. बार-बार बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर भारत पाकिस्तान को जलील करता है. पिछले साल आतंकवादी हमले का बदला लेने के लिए भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी. नोटबंदी के जरिए भारत ने आतंकवाद को होने वाली फंडिंग पर भी लगाम लगाई.

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पिछले तीस साल में आतंकवाद के जख्म देकर भारत को खून-खून करने की पाकिस्तान की नीति पहली बार बेहद कमजोर नजर आ रही है. आज वो इस कदर हताश है कि ट्रेनों को पटरी से उतारने की साजिशें रचने को मजबूर है.

पाकिस्तान की हार और हताशा 1971 की याद दिलाती है. जब पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया था. उसे भारत के हाथों शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. आज भी पाकिस्तान वैसा ही हताश दिखता है.

पाकिस्तान को भारत की तरफ से ऐसे आक्रामक रुख की आदत नहीं रही. आज भारत की रणनीति, पाकिस्तान को पूरी तरह से किनारे लगाने की है. जो कि कारगर दिख रही है. भारत ने पाकिस्तान को उस जहरीले दरख्त का फल खाने को मजबूर किया है, जिसे पाकिस्तान ने ही रोपा था.

एक सीनियर अफसर ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि पाकिस्तान में जम्हूरी सरकार का होना सदी का सबसे बड़ा मजाक है. पाकिस्तान में हुक्मरानों को जुल्फिकार अली भुट्टो, जिया उल हक और मुशर्रफ जैसा तानाशाह होना जरूरी है. तभी फौज और आईएसआई उन्हें बर्दाश्त करेगी. तभी वो राज कर पाएंगे.

पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह ने 2012 में कहा था, 'बिना रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान की रजामंदी के कोई भी समझौता कारगर नहीं होगा. अमेरिका और नैटो कोई भी इकतरफा फैसला लाद नहीं सकते'.

आज हम देखते हैं कि भारत के रूस, ईरान और अफगानिस्तान से अच्छे रिश्ते हैं. चीन आज भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है. हालांकि दोनों देशों में तनातनी बनी हुई है.

इन बातों की रोशनी में जब हम कुलभूषण को सुनाए गए फैसले को देखते हैं, तो ये अपमानजनक लगता है. ये उकसाने वाला फैसला लगता है. अब पाकिस्तान को इंतजार है कि भारत इस फैसले पर कैसी प्रतिक्रिया देता है. फिर वो या तो दुनिया के सामने दुखड़ा रोएगा. या फिर उकसावे के दूसरे कदम उठाएगा.

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान पर करारा पलटवार किया है. उन्होंने कुलभूषण जाधव को मौत की सजा को हत्या की सोची-समझी साजिश बताया है. संसद में भी सभी दलों ने एकजुट होकर पाकिस्तान के खिलाफ आवाज बुलंद की.

भारत ने पाकिस्तान के बारह नागरिकों को रिहा करने का फैसला भी टाल दिया है. हालांकि ये कदम बहुत कारगर नहीं कहा जा सकता. पाकिस्तान को अपने नागरिकों की जरा भी फिक्र नहीं. जब पाकिस्तान खुद अपने नागरिकों को ट्रेनिंग देकर, हथियार देकर भारत मरने-मारने के लिए भेजता है, तो वो जेल में बंद अपने नागरिकों की क्या चिंता करेगा. वो तो साफ इनकार कर देगा कि ये उसके नागरिक ही नहीं.

पाकिस्तान से निपटने के लिए भारत को राजनयिक और सामरिक कदम उठाने होंगे. भारत को पाकिस्तान का उच्चायोग बंद कर देना चाहिए. सिंधु नदी समझौते को सख्ती से लागू करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की पोल खोलनी चाहिए. या फिर जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, 'हमें पाकिस्तान से उसी की जुबान में बात करनी चाहिए'. अब पाकिस्तान से प्यार की बातें करने का वक्त बीत चुका है. कुलभूषण जाधव की रिहाई बिना शर्त कराने की हर मुमकिन कोशिश होनी चाहिए.