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कुलभूषण जाधव मामला: जश्न मनाना बंद करिए, जाधव अभी भी कैद में हैं

जब तक हम जाधव को घर नहीं ले आते इन सबका कोई मतलब नहीं है

Bikram Vohra

अगर हेग में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस के कुलभूषण जाधव मामले पर फैसले में कोई कमी है तो वह 'समयसीमा तय न करने' की है. आदेश में भारत को काउंसलर पहुंच देने के लिए कोई आखिरी तारीख नहीं दी गई. साथ ही पाकिस्तान ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वह कोर्ट की 'अनुशंसाओं' को मानेगा.

हम जानते हैं कि हम टीचर से शिकायत करने वालों बच्चों की तरह हर मोड़ पर आईसीजे का दरवाजा नहीं खटखटा सकते.


अगर पहुंच के लिए कोई समयसीमा दी गई होती और साथ ही यह भी आश्वासन मिलता कि कोई फांसी नहीं होगी तो भारत के लिए ज्यादा खुशी की बात होती. फिलहाल यह फैसला बहुत अस्पष्ट है और यह आदेश दरअसल आदेश से अधिक एक विचार है. पाकिस्तान ने फांसी न दिए जाने का भरोसा दिलाने के सवाल पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

तो क्या जैसे अमेरिका ने जर्मनी और पराग्वे के मामले में आईसीजे के फैसले को नजरअंदाज किया, पाकिस्तान भी वैसा ही करेगा? फिलहाल तो इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

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हमारे लिए यह जीत है और अपनी छवि चमकाने का अच्छा मौका है. इतिहास गवाह है कि हम इसमें बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. हालांकि हमें अति प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है. हमें समझदारी से काम लेना है, बेवकूफी से नहीं. जाधव अभी भी कैद में हैं.

जब तक हम उन्हें घर नहीं ले आते इन सबका कोई मतलब नहीं है.

आईसीजे का प्रभाव कितना है?

हमारा लक्ष्य अगर जाधव की घर वापसी है तो जीत का यह जश्न गलत दिशा में है. हन कुछ ज्यादा ही उत्सव मना रहे हैं और इसे रोक देना चाहिए. हमें समझने की जरूरत है कि यह समय जश्न का नहीं चौकसी का है. आईसीजे हमारे के लिए कभी बहुत अहम नहीं रहा है. अब तक हमने भी इस अदालत को कोई भाव नहीं दिया है.

यह कहना गलत है कि फांसी रुक गई है. ऐसा नहीं है. कोर्ट ने बस इतना किया है कि उसने पाकिस्तान के इस रुख को दोहराया कि वह अगस्त तक जाधव की मौत की सजा पर अमल नहीं करेगा और इसपर पाकिस्तान से आश्वासन मांगा. यह आश्वासन दिया नहीं गया है. ऐसे में हमें तय करना होगा दरअसल हमारा लक्ष्य क्या है?

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भारत चाहता क्या है?

अगर हमारा लक्ष्य जाधव को बचाना है तो हमें यह छाती ठोकना, ढोल पीटना और उछल-कूद बंद करना होगा… जाधव कैद में हैं, हम नहीं. हमे सुनिश्चित करना होगा कि हमारे अति-उत्साह में कहीं उन्हें बलि का बकरा न बना दिया जाए. पाकिस्तान की न्याय-व्यवस्था की लानत-मलामत करना हमारी प्राथमिकता नहीं है. हमारी प्राथमिकता तो जाधव को उनके परिवार से फिर मिलाना है.

अगर हमारा लक्ष्य इस पूरे मामले के लिए जरिए पाकिस्तान को एक 'दुष्ट' देश साबित करना और आईसीजे में उसकी हार के लिए बेइज्जत करना है तो हमें सोचना होगा कि क्या इससे एक इंसान का जीवन खतरे में पड़ता है... और ऐसा हुआ तो क्या हम इस बोझ के साथ जी पाएंगे.