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केरल में अलप्पड़ की घटती जमीन, रेत खनन से गायब हो रहे हैं गांव के गांव

केरल के अलप्पड़ में लोग समुद्र तट से रेत खनन के खिलाफ हैं. उनका आरोप है कि समुद्री कटाव के कारण उनकी जमीनों को समंदर लील रहा है

Bhasha

वीरान घर, धूल फांकते स्कूल, रेत के ढेर, सूने मंदिर और सूखते मैंग्रोव... यह दृश्य आज पोनमाना गांव का है जो कभी दक्षिण केरल में कोल्लम जिले के अलप्पड़ पंचायत का एक खुशहाल, हरा भरा और समृद्ध गांव था.

यहां के स्थानीय लोग समुद्र तट से रेत खनन के खिलाफ हैं. उनका आरोप है कि समुद्री कटाव के कारण उनकी जमीनों को समंदर लील रहा है.


उनका दावा है कि केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की उपक्रम इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (आईआरईएल) और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड (केएमएमएल) की खनन गतिविधियों के कारण गांव के गांव मानचित्र से ‘गायब’ हो रहे हैं.

बचे-खुचे गांवों के अस्तित्वkera को बचाने के लिए और खनन गतिविधियों पर पूर्ण विराम लगाने की मांग को लेकर अलप्पड़ और आस-पास के गांवों के लोग ‘एंटी-माइनिंग पीपुल्स प्रोटेस्ट काउंसिल’ के बैनर तले यहां पास के वेल्लानाथुरुथू में पिछले दो महीने से अधिक समय से क्रमिक भूख हड़ताल कर रहे हैं.

आईआरईएल के एक अधिकारी ने संपर्क किए जाने पर बताया कि कंपनी खनन के सभी नियमों का पालन कर रही है. दोनों कंपनियां 1960 के दशक से कोल्लम के समुद्र तट पर एक साथ रेत खनन में शामिल हैं.

इन गांवों की पड़ताल में वहां वीरान घर, सूनी सड़कें और पोनमना गांव में सूखे पड़े मैंग्रोव के नजारे दिखे. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि ऐसा ही कुछ नजारा अन्य गांवों का भी है.

मैंग्रोव सामान्यतः पेड़ एवं पौधे होते हैं, जो खारे पानी में तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं. मैंग्रोव शब्द पुर्तगाली शब्द ‘मैंग्यू’ और अंग्रेजी शब्द ‘ग्रोव’ से मिलकर बना है. मैंग्यू का अर्थ होता है ‘सामूहिक’ और ग्रोव का अर्थ होता है ‘सामान्य से कम विकसित ठिगने पेड़-पौधों का जंगल.’ हिंदी भाषा में इन्हें ‘कच्छीय वनस्पति’ के नाम से जाना जाता है. जिन स्थानों पर मैंग्रोव पौधे उगते हैं वहां ऑक्सीजन की कमी रहती है. इस समस्या से निपटने के लिए उनमें मैंग्रोव जड़ें होती हैं.

एक ग्रामीण ने बताया कि पोनमना में अब सिर्फ दो परिवार ही रह गए हैं.

प्रदर्शनकारियों के अनुसार दशक पहले अलप्पड़ पंचायत के इस इलाके के लिथोग्राफिक मानचित्र में इसका दायरा करीब 89.5 स्क्वायर किलोमीटर में फैला था, जबकि अब खनन की वजह से समुद्र के कटाव के कारण यह महज 7.6 स्क्वायर किलोमीटर में सिमट कर रह गया है.

अलप्पड़ त्रिवेंद्रम-शोरानूर (टीएस) नहर और अरब सागर के बीच स्थित है.

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि अगर इस भूपट्टी में आगे और कटाव होता है तो समुद्र में नदी के जल के मिल जाने से यह खारा हो जाएगा. इससे समुद्र के स्तर से नीचे स्थित ऊपरी कुट्टानाड के धान के खेतों को नुकसान पहुंचेगा जो कि केरल का ‘धान का कटोरा’ के नाम से मशहूर है.