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केरल में बाढ़: न वक्त पर जगी सरकार, न ही थी किसी आपदा से निपटने की पूरी तैयारी

राज्य की सरकार ने आपदा के विनाशकारी हालात को समझने तक सक्रिय न होकर इसे और ज्यादा कठिन बना दिया

Srinivasa Prasad

नदियों, झीलों और पहाड़ियों का शानदार नेटवर्क केरल को सपनों का संसार बनाता है, लेकिन आपदा आने पर यही सपना बहुत जल्द दुःस्वप्न में भी बदल सकता है. 44 नदियां, उनकी 30 सहायक नदियां, 55 बांध और 1,500 किलोमीटर बैकवाटर नहरें राज्य में आसानी से बाढ़ ला सकती हैं. और जब ऐसा होता है, तो यह शानदार धरती बचाव दल के लिए मौके पर पहुंचने और जीवन बचाने में एक उलझन भरा भू-भाग भी बन सकती है. तब भगवान का यह प्रसिद्ध अपना देश, भगवान के एक भयानक शाप में बदल सकता है और राज्य में तबाही मचाने वाली 94 सालों की सबसे विनाशकारी बाढ़ ने यही साबित किया है.

सही समय पर संभली नहीं राज्य सरकार


अगर इलाकों में पहुंचने में मुश्किल से राहत प्रयास कठिन है, तो राज्य की वामपंथी सरकार ने आपदा के विनाशकारी हालात को समझने तक सक्रिय न होकर इसे और ज्यादा कठिन बना दिया. जबकि इन हालात की शुरुआत को करीब एक महीने का वक्त बीत चुका है और ज्यादा से ज्यादा टीमें पानी में घिरे लोगों को बचाने की कोशिश कर रही हैं, राज्य में यह भावना जोर पकड़ रही है कि सरकार इस महाआपदा को समझ पाने में नाकाम रही है. जब इस आपदा के संकेत दिखने शुरू हो गए, तब भी राज्य ने समय से केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग पर जोर देने के बजाय बाढ़ राहत पर केंद्र के साथ मोल-तोल शुरू कर दिया कि यह इसे नकद मिलनी चाहिए.

लगभग पूरे राज्य को प्रभावित करने वाली बाढ़ की तीव्रता और फैलाव, वास्तव में दिमाग को हिला देने वाला है. 29 मई से अब तक 320 से ज्यादा लोग मारे गए हैं. बचाव दल राज्य भर में लोगों को खोजना जारी रखे हुए हैं और ऐसे में मौतों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ने की संभावना है.

करीब 1,500 राहत शिविरों में लगभग दो लाख लोगों को रखा गया है. 1 जून से, राज्य में 16 सेंटीमीटर की सामान्य मात्रा के मुकाबले 21 सेंटीमीटर बारिश हुई है और अभी बारिश से राहत के संकेत नहीं हैं.

लापरवाही की क्या वजह रही?

प्रकृति के प्रकोप की शायद ही कभी सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है, लेकिन नदियों और जलाशयों के बढ़ते जलस्तर और विनाशकारी बारिश के पूर्वानुमान, और यह देखते हुए कि केरल के दुर्गम इलाकों में सामान्य दिनों में भी पहुंच पाना बेहद मुश्किल होता है, इस महाप्रलय के आने से पहले ही खतरे की तेज और साफ घंटी बज जानी चाहिए थी.

मौसम की चेतावनियों और समय आने पर की जाने वाली तैयारियों के बारे में प्रतिक्रिया, जो आप ओडिशा के नवीन पटनायक या आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू या तमिलनाडु की स्वर्गीय जे. जयललिता में (हालांकि वह अपनी मृत्यु के करीब के वर्षों में अपेक्षाकृत कमजोर पड़ गई थीं) देख सकते हैं, केरल में बाढ़ से निपटने में उस समय गायब दिखी, जब बाढ़ के आसार दिखाई देने लगे थे.

प्रत्यक्ष रूप से यह तुलना तीन कारणों से अनुचित लग सकती है. एक: चक्रवात आमतौर पर तीव्र होते हैं लेकिन व्यापक नहीं होते, जिससे पहले से ही बचाव और राहत योजनाओं पर अमल करना आसान हो जाता है. दो: मौजूदा केरल की बाढ़ की तुलना में चक्रवात आमतौर पर कुछ दिन रहते हैं. तीन: इन राज्यों में चक्रवात आते रहते हैं और इससे निपटने के लिए क्या कदम उठाना चाहिए, इसके लिए यहां अभ्यास किए गए हैं.

चेतावनी के संकेतों की उपेक्षा की गई

लेकिन बड़ी आपदाओं के पहले के उदाहरण ना होना कोई बहाना नहीं हो सकता, खासकर जबकि एक बड़ी आपदा आती है, और इसके संकेत भी थे. बाढ़ ने सिर्फ एक रात में केरल को नहीं डुबाया है.

जुलाई 1924 के बाद से केरल ने इस पैमाने पर आपदा को नहीं देखा है, जब तीन हफ्तों तक 33.7 सेमी की मूसलाधार बारिश ने आज के केरल कहे जाने वाले भूभाग पर पेरियार नदी में बाढ़ ला दी है. 1924 की जलप्रलय, जिसमें 5000 फुट ऊंचाई पर बसे मशहूर पहाड़ी स्टेशन मुन्नार के अधिकांश हिस्से को भी डुबा दिया था, केरल के लोकगीतों और लोकसाहित्य का हिस्सा है. तब से राज्य ने जो आपदाएं देखी हैं, वे अपेक्षाकृत कम तबाही वाली रही हैं, और छोटे क्षेत्रों में सीमित रही हैं.

लेकिन मौजूदा आपदा के शुरुआती संकेतों पर वाम सरकार की तरफ से केवल रुटीन प्रतिक्रिया देखने को मिली. जब केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 19 जुलाई को नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, उनकी कई मांगों में बाढ़ राहत भी एक थी और यही इकलौती मांग थी, जिस पर प्रधानमंत्री ने सहमति जताई थी. इसके बाद कई परियोजनाओं को लेकर एक अवांछनीय वाकयुद्ध शुरू हुआ, जिसमें केंद्र द्वारा केरल में परियोजनाओं की मंजूरी नहीं दिए जाने और जिन्हें मंजूरी दी गई थी लेकिन उनको राज्य द्वारा पूरा करने में विफल रहने के आरोप लगाए गए.

जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, हालात और खराब होते गए, राज्य ने इससे निपटने में खुद को लाचार पाया. विजयन ने कई बार केंद्रीय नेताओं से बात की और इसका नतीजा था केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का प्रभावित क्षेत्रों का 12 अगस्त का हवाई दौरा. इस दौरे के बाद, राजनाथ ने कहा, '... केरल में स्थिति बहुत गंभीर है ... चुनौती का सामना करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों मिलकर काम करेंगे.'

सीपीएम-बीजेपी का भाईचारा?

सौभाग्य से, संकेत यह है कि केंद्र और राज्य वास्तव में एक साथ काम कर रहे हैं. विजयन ने अगले ही दिन राजनाथ को एक पत्र में लिखा, 'हम इन कठिन समय में केंद्र सरकार द्वारा विशेष देखभाल और ध्यान दिए जाने के लिए आभारी हैं.' सेना, नौसेना, वायुसेना और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की कम से कम 80 टीमें राहत कार्यों में लगी हैं.

केरल की वाम मोर्चा सरकार के साथ ही केंद्र की एनडीए सरकार को भी इसका बड़ा श्रेय जाता है कि सीपीएम-बीजेपी की दुश्मनी, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में हत्याएं हुईं, के बावजूद संकट को एक बड़े टकराव में बदलने की इजाजत नहीं दी गई. केरल के लोगों को उम्मीद करनी चाहिए कि राज्य में सामान्य स्थिति बहाल होने तक यह भाईचारा कायम रहेगा.

यह मानना सही है कि केरल को सामान्य स्थिति में लौटने में कुछ समय लगेगा. बारिश बंद होने और जलस्तर घटने के बाद भी, राज्य पीड़ितों के पुनर्वास की महती जिम्मेदारी का सामना करेगा. राज्य को वापस सामान्य स्थिति में लाने के लिए सभी पार्टियों के सामूहिक और समन्वित प्रयास की जरूरत होगी.

(लेखक का ट्विटर हैंडल है @sprasadindia)