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केरल त्रासदी: CM पिनरई के इनकार के बावजूद सरकार पर क्यों लग रहे हैं लापरवाही के आरोप?

सरकार को इस मामले में और शर्मिंदगी तब उठानी पड़ी जब राज्य के मुख्य सचिव ने खुले आम ये स्वीकार कर लिया कि बांसुरा सागर वाले मामले में गलती हुई है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए

Naveen Nair

एडिटर्स नोट: केरल इन दिनों भीषण बाढ़ से जूझ रहा है. वहां के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसे विध्वंसकारी बताते हुए कहा है कि 1924 के बाद से अब तक की ये प्रलयंकारी बाढ़ है. बाढ़ से अब तक 350 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं. नवीनतम सूची के मुताबिक अब तक लगभग 80,000 से ज्यादा लोगों को बचाया जा चुका है. राज्य भर में 1500 से ज्यादा राहत शिविर बनाए गए हैं जिसमें वहां पर अभी 2,23,139 लोग शरण लिए हुए हैं. फ़र्स्टपोस्ट कड़ियों में इस भीषण बाढ़ के कारणों और प्रभावों पर सिलसिलेवार तरीके से विश्लेषण करेगा और वहां के लोगों की जिंदगी, राज्य की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर पड़ने वाले दीर्घावधि और तत्काल प्रभावों के बारे में आपको विस्तार से जानकारी देगा.

केरल अभी भी बाढ़ और उसके बाद की समस्याओं से जूझ रहा है. लेकिन 1924 के बाद की सबसे प्रलयंकारी बाढ़ से जूझते राज्य की परेशानी खत्म होने से पहले ही राज्य के सामने दूसरी मुसीबत सामने आ गई है. वहां पर बाढ़ के मुद्दे पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. अगर आपदा पर हो रहे विवाद के कारणों की पड़ताल की जाए तो एक बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है और ये सवाल इतना बड़ा है कि उसका सीधा जवाब वहां की लेफ्ट सरकार को देते बन नहीं पा रहा है. सवाल ये है कि क्या सरकार ने बांधों के गेट खोलने से पहले जो निर्धारित मापदंड स्थापित किए गए हैं, उनका पालन राज्य के 33 डैमों के गेट खोलने से पहले किया था? या उन मापदंडों को नजरंदाज करते हुए डैम के गेट खोले गए थे. और दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये है कि क्या इस बाढ़ से राज्य में मची विनाशलीला कम हो सकती थी अगर बांधों के गेट खोलने से पहले निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाता.


इस भयंकर बाढ़ की वजह से राज्य के 363 नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है ऐसे में अगर इस मामले में किसी भी तरह की लापरवाही का आरोप साबित हो जाता है तो ये पिनराई विजयन सरकार के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है.

पार्टियों से जुड़ी प्रतिबद्धताओं से इतर कई लोगों ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है. वहां के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मौके का फायदा उठाते हुए सरकार पर निशाना साधा है. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग की है.

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केरल कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रमेश चेन्नीथला ने आरोप लगाया है कि केरल की बाढ़ मानव निर्मित त्रासदी है और राज्य को इस त्रासदी से इसलिए जूझना पड़ा है क्योंकि बिना सही समय पर सही चेतावनी दिए हुए बांधों के गेट को खोल दिया गया था जिससे लोगों को संभलने का मौका ही नहीं मिला. केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला के बुधवार को तुरत फुरत बुलाई गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार पर आरोप लगाया कि ‘सरकार के पास इससे निपटने की योजना पहले से तैयार नहीं थी. अचानक पानी छोड़ने से पहले लोगों के उनके रहने वाले जगहों से निकालने की कोई योजना सरकार ने नहीं बनाई थी ऐसे में ये समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि इस त्रासदी के लिए पूरी तरह से राज्य की सरकार जिम्मेदार है.’

लेकिन चेन्नीथला की बातों को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि वो विपक्ष में हैं और इस मौके पर वो सरकार पर हमला करके राजनीतिक बढ़त लेना चाहते हैं. चेन्नीथला के आरोपों में दम इसलिए लग रहा है क्योंकि हाल ही में राज्य के तीनों प्रमुख नदी-बांधों की व्यवस्था को संचालित करने में गंभीर लापरवाही के मामले सामने आए हैं. इन्हीं बांधों से छोड़े गए पानी की वजह से लाखों लोगों पर कहर टूट पड़ा. बाढ़ से राज्य में हजारों लोग बेघर हो गए और सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.

जहां एक तरफ इडुक्की-पेरियार सिस्टम मिसमैनेजमेंट का शिकार दिखाई दे रहा था वहीं सबरीगिरी-पंपा और बंसुरा सागर-कबानी सिस्टम के खोलने से पहले लोगों को सही समय पर चेतावनी जारी नहीं की गई थी. बड़े बांधों से पानी छोड़ने के पहले एक निश्चित समय पर चेतावनी जारी करने का नियम है लेकिन यहां पर लगता है कि उन नियमों की अनदेखी की गई थी.

प्रथम दृष्टया ये प्रतीत होता है कि राज्य की मशीनरी बाढ़ जैसे बड़े खतरे की गंभीरता को समय रहते समझ नही पायी और अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रही. सरकार की इस विफलता और लापरवाही ने बाढ़ के दौरान सही तरह से चलाए जा रहे राहत और पुनर्वास कार्यक्रमों के लिए मिलने वाली सराहना पर भी पानी फिर जाने का खतरा पैदा हो गया है. आइए देखते हैं कि आखिर इन तीनों बड़े बांधों के सिस्टम में क्या गड़बड़ी हो गई जिससे की पूरे राज्य में इतनी बड़ी तबाही मच गई.

भारी बारिश से इडुक्की डैम में इतना पानी भर गया कि उसके गेट खोलकर पानी छोड़ना पड़ा

इडुक्की-पेरियार सिस्टम

जहां तक राज्य में बिजली उत्पन्न करने का सवाल है इडुक्की डैम निश्चित रूप से राज्य की जीवन रेखा है. लेकिन ये एक बड़ा जलाशय भी है जो कि पेरियार नदी से जुड़ा हुआ है. पेरियार नदी राज्य की सबसे लंबी नदी है और उसके पास सबसे ज्यादा पानी छोड़ने की भी क्षमता है. इडुक्की डैम में पानी के नियंत्रण में किसी भी तरह की अगर लापरवाही बरती जाती है तो ये राज्य के उन चार जिलों में तबाही फैला सकती है जहां से पेरियार नदी गुजरती है. केरल की वर्तमान त्रासदी में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है.

9 अगस्त के दिन अचानक केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (केएसईबी) के अधिकारी नींद से जागे जब उन्होंने देखा कि इडुक्की जलाशय में पानी का स्तर बढ़ कर 2399 फीट तक पहुंच चुका है जबकि जलाशय की कुल क्षमता ही 2403 फीट की है. राज्य के अधिकतर बांधों की निगरानी और नियंत्रण करने वाली केएसईबी को कई लोगों ने उस समय से ही चेतावनी देनी शुरू कर दी थी जब पानी ने 2395 फीट के स्तर को पार किया था. लेकिन बार-बार ध्यान दिलाने के बाद भी केरल राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. यहां तक कि उसने पानी के स्तर को बनाए रखने के आर्थिक कारणों का भी हवाला दे दिया.

केएसईबी के चेयरमैन एनएस पिल्लई को जब उस समय मीडिया ने इस बात का ध्यान दिलाया तो उन्होंने मीडिया को जवाब देते हुए कहा था कि ‘अगर हम इस समय पानी छोड़ते हैं बोर्ड को प्रति महीने बिजली उत्पन्न करने में 10 लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा. हम लोगों ने स्थिति पर नजर बनाए रखी हुई है और जरूरत पड़ने पर हम उचित कार्रवाई करेंगे’

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अब इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहें या लापरवाही, इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड से या तो निगरानी में चूक हो गई या फिर वो पानी के प्रवाह का अनुमान लगाने विफल रही, जिससे इतनी बड़ी त्रासदी हो गई. बोर्ड को ये अनुमान नहीं था कि आने वाले कुछ दिनों में ईदामलायार बांध से पानी छोड़ने का बाद भी इतना पानी इकट्ठा हो जाएगा.

13 अगस्त तक पहुंचते-पहुंचते केरल में बारिश ने ऐसी रफ्तार पकड़ ली जैसे लग रहा हो कि आसमान से आफत बरस रही हो. ये हैरान करने वाली बात है कि केएसईबी ने भारतीय मौसम विभाग और अन्य ऐजेंसियों की राज्य में भारी बारिश की चेतावनी पर भी गौर नहीं किया. अगर बोर्ड ने ऐसा किया होता तो शायद वो अपने यहां से नियंत्रित रूप से पानी को छोड़ते या पहले से कोई अन्य योजना की तैयारी करते जिससे कि नुकसान कम होता. ऐसे में 13 अगस्त तक पानी का बहाव बढ़ कर 15 लाख लीटर प्रति सेकेंड हो गया था. 15 अगस्त तक स्थिति इतनी विकराल हो गई कि बोर्ड के पास इडुक्की बांध के पांचों गेट खोलने के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं बचा. इसके अलावा मुल्लापेरियार बांध और ईदामलयार बांध को भी पूरे फ्लो के साथ खोल दिया गया. ऐसे में इडुक्की सिस्टम ने पेरियार नदी में इतना पानी भेज दिया कि पेरियार नदी ने अपने रास्ते में आने वाली सभी चीजों को डुबो डाला.

मुल्लापेरियार बांध

स्पष्ट है कि बोर्ड ने स्थिति के सामने आने पर इससे निपटने के उपाय किए, न कि क्रियाशील तरीके से इसे रोकने के लिए पहले से किसी तरह के नियंत्रण के उपाय किए थे.

सांसद और पूर्व जल संसाधन मंत्री एन के प्रेमचंद्रन ने इस पर सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि उन दिनों डैम सेफ्टी ऑथारिटी कर क्या रही थी? डिसास्टर मैनेजमेंट ऑथारिटी क्या कर रही थी? उन्हें बांधों के गेट खुलने से पहले उससे होने वाले नुकसानों का आकलन क्यों नहीं किया था? क्या इस सभी स्तरों की विफलता नहीं कहेंगे?

सबरागिरी-पंपा और बांसुरा सागर-कबानी सिस्टम

अगर ये जल प्रबंधन की विफलता थी जिसने की पेरियार नदी को कोच्चि शहर में भेज दिया था तो पथानमथिट्टा और खास करके पंडानाड में तो पूर्व चेतावनी सिस्टम के पूरी तरह से फेल हो जाने की कहानी थी. इन दोनों जगहों पर लोगों को सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना करना पड़ा था. पुल्लाड में रहनेवाले श्रीधरन नायर का कहना है कि उन्होंने पंपा को ओवरफ्लो होते हुए पहले भी देखा है और उसमें कोई नई बात नहीं थी. लेकिन नायर चुभते हुए सवाल के साथ पूछते हैं कि लेकिन इस बार नदी कि किनारे से छ किलोमीटर दूर पुल्लाड के मेरे आधे घर को पानी ने कैसे डुबो दिया, इसे आप कैसे समझाएंगे?

चेंगन्नूर के रहने वाले विजयन का कहना है कि वो लोग 14 अगस्त की रात में उस समय नींद से जागे जब उनके घरों के अंदर पानी घुस चुका था. विजयन का कहना है कि ‘सरकार का कहना है कि उसने लोगों को इस संबंध में पहले ही चेतावनी दे दी थी. हो सकता है कि उन्होंने टेलीविजन चैनलों पर ऐसा कहा हो कि पंपा नदी के किनारों पर रहने वाले लोग अपना ध्यान रखें. लेकिन मेरे मकान के एक तल्ले को नदी के पानी से कैसे पूरी तरह से डुबो दिया जबकि उनका घर तो नदी से कई किलोमीटर दूर है?’

सरकार की पूरी मशीनरी लोगों को घर घर जाकर समय से पहले, बाढ़ की जानकारी देने में पूरी तरह से विफल साबित हुई. इसके अलावा उन्हें इस बात का जरा भी अनुमान नहीं था कि सबारीगिरी जलाशय के खोलने पर पंपा नदी किस तरह से अपने किनारों को तोड़ते हुए अपने आसपास के शहरों में भारी तबाही मचा सकती है. ये एक तरह से पूरे सिस्टम की विफलता थी जो कि ये अनुमान लगाने में पूरी तरफ से फेल हो गई थी कि एक बड़ी मानवीय त्रासदी बिल्कुल सिर पर खड़ी है.

पूर्व मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंदन के सलाहकार रहे जोसेफ सी मैथ्यूज चेंगन्नूर के रहने वाले हैं. चेंगन्नूर जिले के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से एक है. जोसफ इन दिनों पूरे समय वहीं पर डेरा डाले हुए हैं. जोसफ का कहना है कि ये त्रासदी कई स्तरों पर विफलता का परिणाम है, जिसने पथानमथिट्टा को लगभग डुबो ही दिया.

जोसफ का कहना है कि हरेक बांध का एक ऑपरेशनल मैन्युअल है और जब कभी भी बांध के दरवाजे खोले जाते हैं इसके लिए निर्धारित किए मापदंडों को आधार बनाया जाता है. जोसफ का दावा है कि ‘ये साफ है कि इस बार इन सबका सही तरीके से पालन नहीं किया गया है. देखिए, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि अगर आपके पास बांध के दरवाजों को खोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है तो आप उसे खोलेंगे ही. लेकिन आपने लोगों को पहले से ये सूचना क्यों नहीं दी कि पानी आने वाला है और आप लोग ऊंची जगहों पर चले जाएं. अगर ऐसा किया जाता तो मरने वाले कई लोगों की जान बच सकती थी.’

अगर स्थानीय स्तर से मिलने वाली खबरों पर यकीन किया जाए तो पथानमथिट्टा के जिलाधिकारी तक को ये सूचना नहीं दी गई थी कि सबरागिरी प्रजेक्ट के दो प्रमुख बांध पंपा और कक्की डैम के दरवाजे खोले जा रहे हैं. अगर इस बात कि पुष्टि हो जाती है तो ऐसा करना अपराधिक कृत्य के अलावा कुछ नहीं होगा.

हालांकि पथानमथिट्टा जिले के कलेक्टर ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है लेकिन वायनाड जिले में उनके समकक्ष ने अपनी बात मुखरता से रखी है. उन्होंने खुल कर कहा है कि बांसुरा सागर बांध के दरवाजों को खोलने से पहले उन्हें किसी तरह की कोई जानकारी नहीं दी गई थी. इस बांध के खोले जाने से जिले के 9 पंचायतों में बाढ़ आ गई थी.

सरकार को इस मामले में और शर्मिंदगी तब उठानी पड़ी जब राज्य के मुख्य सचिव ने खुले आम ये स्वीकार कर लिया कि बांसुरा सागर वाले मामले में गलती हुई है और इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. दरअसल जब वायनाड के जिलाधिकारी ने इस मामले में अपने हाथ खड़े कर दिए तो मुख्य सचिव को ये स्वीकार करने के सिवाए कोई चारा नहीं बचता था.

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन

इस लापरवाही ने पथानामथिट्टा को कब्रिस्तान के रूप में तब्दील कर दिया होता मगर किस्मत के कारण ऐसा हो नहीं सका. यहां पर अधिकतर घर दो मंजिलों के बने हुए हैं. ऐसे में जब घरों में पानी घुसने लगा और उसने पहली मंजिल को पूरी तरह से डुबो दिया तो लोग अपने घर की दूसरी मंजिल और छतों पर पहुंच गए और वो तब तक वहीं रहे जब तक कि उनतक मदद नहीं पहुंची.

मुख्यमंत्री ने किया आरोपों से इंकार

इधर केरल के मुख्यमंत्री ने इस मामले में लगे लापरवाही के सभी आरोपों से इंकार किया है और इस त्रासदी के लिए मूल रुप से प्रकृति को ही जिम्मेदार ठहराया है.

सीएम पिनराई विजयन ने मीडिया के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि 'विपक्षी दलों के नेता सरकार पर तथ्यहीन आरोप लगा कर लोगों को भरमाने का काम कर रहे हैं. बाढ़ केवल बांध के गेट खोलने से ही नहीं आई थी बल्कि जिस तरह से राज्य में भयंकर बारिश हुई थी उसे भी लोगों को त्रासदी के कारणों में शामिल करने के लिए ध्यान में रखना चाहिए. बांधों के गेट खोलने से पहले लोगों को पूर्व में सूचना दे दी गई थी.'