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पंजाब से ज्यादा अलग नहीं है केजरीवाल की 'उड़ती दिल्ली'

आम आदमी पार्टी दिल्ली में नशे के खिलाफ प्रयास नहीं कर पा रही है तो पंजाब में कैसे करेगी?

Pallavi Rebbapragada

पिछले साल आई फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ने पंजाब में नशे की समस्या पर ध्यान खींचा था. इसमें कोई शक नहीं कि जो पंजाब एक समय हरित क्रांति का सबसे चमकता उदाहरण था, उसका भविष्य आज अपने ही नशे में धुंधला रहा है. उसकी आर्थिक और राजनीतिक उलझनें धुआं बनकर बादलों में उड़ रहीं हैं.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब के लोगों को इस समस्या से राहत दिलाने का वादा करते आ रहे हैं.


लेकिन हैरत की बात है कि दिल्ली, जिसकी कमान केजरीवाल के हाथ में है, नशे के मामले में पंजाब से ज्यादा पीछे नहीं है.

दिल्ली में भी बड़ी है नशे की समस्या

दिल्ली में आज केवल पांच नशा मुक्ति केंद्र हैं. इन्हें सरकार और एनजीओ साथ में चला रहीं हैं. द्वारका के अंबराही गांव, विवेक विहार की नंदनगरी और इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के पास महिपालपुर जैसे इलाकों में ऐसे सेंटर स्थित हैं.

इन सेंटरों में काम करने वाले डॉक्टरों का मानना है कि राजधानी के घरों में और सड़कों पर लगभग 2.5 लाख नशे से पीड़ित लोग हैं. इनमें औरतें और बच्चे भी हैं.

पिछले 10 साल के अपने आंकड़ों के आधार पर उनका कहना है कि इनमें से 25,000 लोगों को अति आवश्यक इलाज की जरूरत है. हर साल इन सेंटरों में 200 से 300 नशे से पीड़ित लोग ही भर्ती होते हैं. लेकिन भर्ती होना भी ठीक होने की गारंटी नहीं है.

अंबराही गांव में मुस्कान फाउंडेशन चलाने वाले डॉक्टर भारत भूषण का कहना है, ‘सरकार के 3 हफ्ते के डिटॉक्स कोर्स की रिलैप्स रेट 30 से 90 प्रतिशत के बीच है. इसका यह अर्थ है कि अधिकतर मरीज कोर्स खत्म करने के कुछ हफ्तों बाद ही फिर से लत का शिकार हो जाता है.'

अधिकतर लोग ऐसे कूड़ाघरों या गंदगी से भरी जगहों पर इस्तेमाल की जा चुकी नीडल से नशा करते हैं.

अनुदान में देरी से मुश्किल में नशा मुक्ति केंद्र

इन सेंटरों को केंद्र सरकार से राशि मिलती हैं. सामाजिक न्याय और अाधिकारिता संबंधी स्थायी समिति ने 2015-2016 में दिल्ली में नशा मुक्ति के लिए 41.6 लाख का अनुदान किया था. इस मामले में दिल्ली सरकार का काम केवल निरीक्षण और सिफारिश का है. लेकिन इसमें भी देरी की वजह से पिछले साल अक्टूबर तक किसी भी सेंटर को अपनी डेढ़ साल की निधि नहीं मिली थी.

खुले में चलता है ड्रग्स का खेल.

डॉक्टर भूषण कहते हैं, ‘एक सेंटर के महीने भर का खर्च 1.5 लाख है. डेढ़ साल तक एक रुपए की भी मदद न मिले तो तो 30 लाख रुपए अपनी जेब से देना काफी कठिन है. आज केजरीवाल पंजाब में अपनी छाप छोड़ने की कोशिश में हैं, लेकिन दिल्ली का क्या?’

बिना अनुदान ऐसे केंद्रों का बचे रहना मुश्किल है. कभी दिल्ली की मुख्यमंत्री पद के लिए केजरीवाल की प्रतिद्वंद्वी रहीं किरण बेदी की नवज्योति फाउंडेशन भी लगभग 10 साल पहले अनुदान के अभाव के कारण बंद हो गई थी.

नशे का जंजाल

पूर्वोत्तर दिल्ली के सीलमपुर इलाके में आज भी कई घर ऐसे हैं जहां पूरा खानदान नशे का शिकार है.

सेवा डिस्पेंसरी के डॉक्टर नफीस बताते हैं, ‘यहां दिल्ली जल बोर्ड की इमारत का पुराना खंडहर है जहां लोग दिन रात भांग, चरस और गांजा लेते हैं. ब्लॉक ए, सी, बी और के में जो दवा की दुकानें हैं वहां बिना पर्चे के एविल, दिअजेपाम, निट्राजेपाम, एलप्रैक्स और फेनार्गन जैसी दवाई बेची जा रही हैं.’

न्यू उस्मानपुर पुलिस थाने के पास नशे में धुत्त पर शख्स.

सामाजिक कार्यकर्ता आसिफ चौधरी कहते हैं, ‘सीलमपुर के सार्वजनिक शौचालयों में टूटी नीडल्स मिलती हैं. यहां हर वर्ग किलोमीटर में 30,000 लोग रहते हैं. कैसी हालत है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. मानसिक रोगों के इलाज का अस्पताल पास में ही है लेकिन मेंटल हेल्थ बिल के तहत किसी भी नशे से पीड़ित इंसान को या तो खुद भर्ती होने की इच्छा होनी चाहिए या उसके सगे-संबंधियों को उसे भर्ती करवाना होगा. जब पूरा मोहल्ला ही नशे का शिकार है, तो ऐसा कैसे मुमकिन है.’

आसिफ का आरोप है कि आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद सीलमपुर में नए दारुखाने खुले हैं जो स्कूलों और अस्पतालों से 100 मीटर की दूरी पर भी नहीं हैं.

इस मामले में सीलमपुर के विधायक हाजी इशराक खान का कहना था कि ‘जब डीडीए हमें 1000 मीटर जमीन देगी तो हम नशा मुक्ति सेंटर बनाएंगे.’

कुल मिलाकर दिल्ली भी नशे में उड़ रही है. नशे की उड़ान के लिए गरीबी डोर है और लाचारी का मांझा है. सवाल है कि अगर आम आदमी पार्टी दिल्ली की इस उड़ान को नहीं रोक पा रही है तो पंजाब में अपनी पतंग कैसे उड़ा सकेगी? शायद, वह भी बादलों का ही खेल होगा.