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दिल्ली की हवा में दम घुट रहा है और केजरीवाल पॉल्यूशन में पॉलिटिक्स देख रहे हैं

प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है और प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाती है

Kinshuk Praval

दिल्ली की हवा जानलेवा हो चुकी है. सुबह के वक्त घरों से बाहर न निकलने की चेतावनी दी जा रही है. लेकिन राजनीति की फिजां उससे भी ज्यादा खराब है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बीजेपी और कांग्रेस पर दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने का आरोप लगाया है. वो कहते हैं कि केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है. पिछले साल भी सीएम केजरीवाल ने ऐसा ही कहा था. केजरीवाल ये मानते हैं कि दिल्ली की हवा में बढ़ते प्रदूषण के पीछे राजनीतिक साजिशें हैं और दिल्ली सरकार उन साजिशों का शिकार.

आम जनता के नायक बन कर अरविंद केजरीवाल उभरे थे. गले में मफलर और खांसती हुई उनकी तस्वीरें लोगों को आम आदमी साबित करने का काम करती थीं. लेकिन आज प्रदूषण से दिल्ली खांस रही है. प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है. प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाते हैं.

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में पांच गुना कमी आई है तो हरियाणा सरकार का कहना है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी कमी की गई है. लेकिन केजरीवाल का आरोप है कि पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में सांस लेने में घुटन हो रही है.

क्या सिर्फ आरोपों की पराली जलाने से दिल्ली का प्रदूषण कम हो जाएगा या फिर राजनीतिक हवा में आचरण की गुणवत्ता में सुधार आ जाएगा?

सवाल ये भी उठता है कि क्या पहली बार जहरीली हवा में दिल्ली सांस लेने को मजबूर हो रही है? क्या पहली दफे आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में ऐसे दमघोंटू हालात देख रही है?  हर साल दिवाली से पहले जलती पराली और बाद में दिल्ली की हवा में दम घुटने लगता है. लेकिन खतरनाक प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली पर ही ठीकरा फोड़कर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की राजनीति आखिर कब खत्म होगी?

दिल्ली में बाकी महीने भी वायु के गुणवत्ता स्तर में लगातार गिरावट दर्ज होती है. उसे लेकर दिल्ली सरकार के पास एक्शन प्लान क्या है? दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन का फॉर्मूला लाकर प्रदूषण पर लगाम कसने का दावा किया था. लेकिन इसके बावजूद एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार से एक्शन प्लान मांगा था. यहां तक कि दिल्ली की स्टील इंडस्ट्री के प्रदूषण पर लगाम कसने में नाकाम रहने की वजह से केजरीवाल सरकार पर कोर्ट ने 50 करोड़ का जुर्माना भी लगाया है. एनजीटी ने रिहाइशी इलाकों में प्रदूषण फैलाने वाली ओद्योगिक इकाईयों के खिलाफ कार्रवाई न करने पर दिल्ली सरकार के खिलाफ जुर्माना लगाया था.

प्रतीकात्मक तस्वीर

दिल्ली के वाहनों से सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है. साल भर दिल्ली की हवा गाड़ियों से निकलते धुएं, निर्माण कार्य से उठने वाली धूल और औद्योगिक प्रदूषण की वजह से हवा जहरीली होती जाती है. अब सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर सख्ती दिखाते हुए दस साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल के वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया है. ऐसे में दिल्ली सरकार को पुराने और जहरीला धुआं उगलते वाहनों पर सख्ती करने की जरूरत है ताकि कोर्ट का आदेश पूरा हो सके.

दिल्ली में 1 नवंबर से 10 नवंबर तक निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है. सवाल उठता है कि ये कदम कुछ पहले क्यों नहीं उठाए गए? कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री जैसे रेत, ईंट, मलबा या दूसरी चीजों को ढंक कर रखना जरूरी होता है. लेकिन दिल्ली में जगह-जगह इनका ढेर खुले में दिखाई देना आम बात है. चाहे वो प्राइवेट कंस्ट्रक्शन हो या फिर सरकारी निर्माण हो. प्रदूषण के खिलाफ पर्यावरण को लेकर बनाए गए नियमों की खुलेआम धज्जियां हवा में धूल की तरह उड़ती दिखाई देती हैं.

सच तो ये है कि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों का दिल्ली सरकार पालन नहीं करवा सकी है.  प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है. जरूरी ये है कि दिल्ली सरकार ऐसी टीमें बनाएं जिनमें पीडब्लूडी और एमसीडी के साथ दिल्ली पुलिस के कर्मी भी शामिल हों ताकि जहां सख्ती की जरूरत हो वहां सख्ती से निपटा जा सके.

खुले में कूड़ा जलाने को रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने अबतक क्या सख्त कदम उठाए? भलस्वा लैंडफिल साइट में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही जिससे  जिससे दिल्ली की हवा में जहर घुलता जा रहा है. वहीं नरेला और बवाना में भी कूड़े के ढेर खुलेआम जलाए जाते हैं. खुद EPCA यानी पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण संरक्षण प्राधिकरण ये जानता है तो DPCB यानी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी ये मानता है.

ऐसे में NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल जब द‍िल्ली सरकार से प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए एक्शन प्लान मांगती है तो दिल्ली सरकार पांच महीनों का समय मांगती है. ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली पहली बार प्रदूषण की मार झेल रही है और ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल सरकार को दिल्ली की आबो-हवा का पुराना अनुभव नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों फिर दिल्ली सरकार अपनी तैयारियों का खाका इतने साल बाद भी नहीं बना सकी?

खुद सीएम केजरीवाल का कहना था कि अगर राजनीति से ऊपर उठ कर एक साथ सहयोग करें तो दिल्ली की हवा की सूरत बदली जा सकती है. ऐसे में क्या सिर्फ ऑड-ईवन के भरोसे और पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल किया जा सकेगा? जाहिर तौर पर दिल्ली के पड़ौसी नहीं बदले जा सकते हैं. वहां से हवा आएगी और उन हवाओं का रूख नहीं बदला जा सकता है.

सरकार को सबसे पहले प्रदूषण के कारकों को चिन्हित करना होगा और उनका विकल्प सोचना होगा. सरकार ये सुनिश्चित करे कि लैंडफिल साइट और दूसरी जगहों पर कचरा न जलाया जाए, पॉवर कट की वजह से डीज़ल जेनरेटर का ज्यादा इस्तेमाल न हो, धुआं फेंकने वाले पुराने वाहन सख्ती से जब्त हों, ईंट-भट्टे सर्दियों के मौसम में बंद रखे जाएं और धूल भरी सड़कों पर पानी का लगातार छिड़काव हो.

बहरहाल, एक बार फिर प्रदूषण से गहराती धुंध में दिल्ली सरकार अपनी राजनीति की आबो-हवा ठीक करने में जुटी हुई है. एक दूसरे पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ने की कवायद हो चुकी है. हर साल सर्दियां आएंगी. आबोहवा में धुंध का पहरा होगा. पड़ौसी राज्यों में पराली जलेगी और फिर दिवाली भी आएगी. उसी कोहरे की राजनीति में बयानों की जहरीली हवा भी चलेगी जो ये कहेगी कि इस दमघोंटू हवा के लिए हम नहीं ‘वो’ जिम्मेदार हैं. उस ‘वो’ की तलाश जारी रहेगी.