view all

कश्मीर में टेरर फंडिंग: हुर्रियत नेताओं के खिलाफ छापेमारी से कैसे खत्म होगा आतंकवाद!

घाटी में नृशंस हिंसा का जो दौर चला उस पर रोक लगाई जा सकती थी

David Devadas

कश्मीर में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को हवा देने के लिए हवाला के जरिए धन का लेन-देन करने वाले हुर्रियत नेताओं पर सरकार ने शनिवार को कार्रवाई की. हालांकि सरकार से इस तरह की कार्रवाई बहुत पहले से ही अपेक्षित थी.

इतना होने पर भी सरकार की ओर से ये सफाई तो बनती है कि टेरर फंडिंग के जिम्मेदार लोगों पर लगाम पहले क्यों नहीं कसी गई? जो विरोध प्रदर्शन आयोजित करने से लेकर हथियारबंद हमलों जैसी आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त थे.


दुखद पहलू ये है कि ये छापेमारी हो सकता है कि ऐसी कार्रवाई हो, मानो अस्तबल का दरवाजा तब बंद किया गया जब घोड़े को खूंटे से बांधा जा चुका था.

पिछले दशक में टेरर फंडिंग करने वालों ने घाटी में उपद्रवों को बढ़ावा देने और माहौल बिगाड़ने की जो कोशिश की है उसकी वजह से जेहादी उन्माद और भड़का है और ये किशोर उम्र के बच्चों में भी फैल गया है जो पिछले साल के विरोध प्रदर्शनों में प्रमुख रूप से शामिल रहे थे.

जिन लोगों के खिलाफ छापेमारी की गई जिसमें पता चला कि उनमें से कुछ ने न सिर्फ पिछले दशक में काफी नुकसान पहुंचाया बल्कि पिछले दो महीनों में भी काफी कुछ किया. उदाहरण के लिए एक बिजनेस ग्रुप जिसके खिलाफ कार्रवाई की गई वो दुबई में इस साल के शुरू में कश्मीरी टीमों के लिए आयोजित क्रिकेट प्रतियोगिता का मुख्य आयोजक था.

कश्मीर के किशोर वर्ग के बच्चों का मानस प्रभावित करने में जिनकी भूमिका है उन्हें मैच खेलने के लिए दुबई ले जाया गया. ये जानना रोचक होगा कि वहां जो दावतें उड़ाई गईं उनके लिए भुगतान किसने किया?

देरी से अपर्याप्त कदम

उपद्रव मचाने के लिए सड़क पर उतरी पीढ़ी 25 साल से कम उम्र के लोगों की है. टेरर फंडिंग के लेनदेन पर लगाम कसने से इन किशोरों और नौजवानों के उन्माद में कोई कमी आएगी ऐसा नहीं लगता. ज्यादा से ज्यादा ये होगा कि उनकी गतिविधि पर थोड़ी रोक लग जाएगी.

उपद्रव मचाने वाले ज्यादातर लोग 25 साल से कम उम्र के हैं

हिंसा पर उतारू लड़कों को धन मिलने या ना मिलने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. पूरी घाटी में इन लोगों को पैसे मिलने में ज्यादा दिक्कत नहीं है. विदेशी ताकतों को भी संभवता हवाला के जरिए धन के लेन-देन के लिए नए रास्ते तलाशने, खाते के जरिए धन भेजने, निर्यात में ज्यादा बिल दिखाकर भुगतान बढ़ाने और बड़ी या छोटी धनराशि सीधे भेजने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं होगी.

एक दशक की देर

घाटी में नृशंस हिंसा का जो दौर चला उस पर रोक लगाई जा सकती थी अगर सत्ता में मौजूद लोगों ने एक दशक पहले इस तरह की टेरर फंडिंग पर रोक लगाई होती. कुछ लोगों के गुप्त इरादों की वजह से देश का भविष्य दांव पर लग गया.

अगर दस साल पहले भी टेरर फंडिंग के लेनदेन पर लगाम कसी गई होती तो भी वो पर्याप्त नहीं होता. हालात से निपटने के लिए बहुस्तरीय कार्रवाई की जरूरत थी. सत्ता में बैठे लोगों को चाहिए था कि वो कश्मीर में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की कोशिश करते और उत्तरदाई, सक्षम और साफ सुथरी व्यवस्था बहाल करने का प्रयास करते.

युवाओं की आकांक्षाएं होती हैं कि सभी को सम्मान, न्याय और उत्तरदायी प्रशासन हासिल हो. पिछली केंद्र सरकार के दौरान भ्रष्टाचार, अक्षम और वसूली के जरिए भर्ती और प्रवेश देने वाले कार्यक्रमों के आयोजन के अलावा युवाओं को ज्यादा से ज्यादा क्या हासिल हुआ?.

केंद्र सरकार ने जनता की भलाई के लिए कुछ करने की बजाय 2009 में छह सालों के लिए उमर अब्दुल्ला की सनकी, भ्रष्ट और शोषक सरकार बहाल कर दी. राज्य सरकार से जुड़े कुछ प्रमुख लोगों के कालीन का व्यापार करने वालों से सीधे संपर्क थे जो टेरर फंडिंग और उपद्रव भड़काने में शामिल रहे थे.

बहुत कुछ की जरूरत है

शनिवार को जिन लोगों के खिलाफ छापेमारी की गई उनमें से कई को जम्मू कश्मीर बैंक की ओर जिस प्रक्रिया के तहत लोन दिया गया, लोन की अदायगी का कार्यक्रम बदला गया और यहां तक कि लोन माफ भी किया गया उसकी जांच की जरूरत है.

औपचारिक और बेनामी व्यापारिक साझेदारियों की भी जांच की जरूरत है. सरकार और सरकार द्वारा संचालित संगठनों की ओर से कुछ लोगों को जो विभिन्न प्रकार के लुभावने ठेके और काम दिए गए उससे उन लोगों की भौंहें पहले भी तनी थीं जो इन लाभार्थियों के साथ उनके रिश्ते जानते थे.

राज्य सरकार के समर्थन से उपद्रव को बढ़ावा दिया गया था

कश्मीर में अलगाववाद और मुख्यधारा के बीच की विभाजक रेखा बहुत धीरे है. पिछले तीन दशकों में यहां कॉन्फ्लिक्ट इकॉनोमी का व्यापक प्रसार हो गया है और इसमें कई तरह की ताकतें शामिल हो गई हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे कुछ लोग भी इनमें शामिल हो गए हैं क्योंकि इस घटिया और गंदे खेल से उनका फायदा जुड़ गया है.

शनिवार को हुई छापेमारियों का एक गड़बड़ पहलू ये है कि ये कार्रवाई चुने हुए लोगों के खिलाफ की गई. जिन चुने हुए लोगों को छोड़ दिया गया उनमें हुर्रियत के कुछ प्रमुख नेता शामिल हैं. कई दूसरे व्यवसायों से जुड़ी शख्सियतों को भी बरी कर दिया गया.

ये तर्क देना छल की तरह है कि इनके खिलाफ जांच अगले चरणों में की जाएगी. कई दशकों से जारी अंधाधुंध खेल के बाद अचानक हुई छापेमारी ने सभी संबंधित लोगों को सचेत कर दिया है.

केंद्र सरकार ने जब डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए पिछले साल नवंबर में व्यापक विमुद्रीकरण लागू कर दिया है तो ऐसे में व्यापक छापेमारी अभियान चलाना ज्यादा मुश्किल नहीं था.