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कश्मीर से ग्राउंड रिपोर्ट: गहराता डर, मजबूत होती एंटी-इंडिया भावना

अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में आजादी समर्थक भावनाएं गहरी हैं

Ishfaq Naseem

एक बंदूकधारी आदमी एक इमारत से निकला, जिससे कुछ ही दूरी के चौराहे पर युवक को पुलिस पर पत्थर बरसा रहे थे. उस बंदूकधारी ने एक महिला, पुरुष और उनके चिंतित बच्चों को घर से बाहर न जाने की हिदायत दी. पुलवामा के प्रीचू गांव में बीजेपी कार्यकर्ता गुलाम अब्दुल नेन्ग्रो के आंगन के अंदर एक अजनबी की उपस्थिति ने संदेह और डर पैदा कर दिया.

सोमवार को उनके पड़ोसी को अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली चलाकर घायल कर दिया था. श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल में उसकी हालत अब भी गंभीर बनी हुई है.


दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में अनंतनाग संसदीय क्षेत्र के इस हिस्से में आजादी समर्थक भावनाएं गहरी हैं. निसार अहमद मीर नाम का एक युवा जब सोमवार को टहलने के लिए निकला, तब उस पर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोलियां दाग दीं. निसार की बहन मीमा जान इस डर से फोटो खिंचवाने या कैमरे से डरती हैं, क्योंकि वह नहीं चाहती कि उसे भी कहीं उसके भाई की तरह किसी अनहोनी का सामना करना पड़े. अपने घर के बाहर बरामदे में बैठी मीमा ने कहा कि उसके भाई का किसी भी राजनीतिक पार्टी से संबंध नहीं था.

प्रतीकात्मक तस्वीर

पुलवामा के पुलिस अधीक्षक रईस अहमद का कहना है कि निसार को उग्रवादियों ने गोली मारी. अहमद ने कहा, 'हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि आतंकवादियों ने उसे आखिर किस कारण से अपने निशाने पर लिया. किसी राजनीतिक दल से जुड़े होने के कारण या फिर उन्हें विश्वास था कि वह सुरक्षा एजेंसियों के लिए काम कर रहे हैं. हमारे पास रिपोर्ट है कि वह बीजेपी से जुड़े थे - हालांकि इस बात का पुख्ता पता लगाया जा रहा है.'

सोमवार की उस मनहूस शाम को मंजूर अहमद नेन्ग्रू ने गोलियों की आवाज सुनी और बचने के लिए भाग लिए. उन्होंने कहा, 'मैं अपनी दुकान खुली छोड़ कर अपने घर की तरफ़ भागा. मुझे लगा कि वो मुठभेड़ थी, लेकिन कुछ राउंड गोली चलने के बाद ही मैं अपने घर से लौटा और फिर अपनी दुकान बंद कर दी.'

एक गोली निसार के पेट में लगी थी, जबकि एक गोली हाथ में और एक अन्य गोली पैर में लगी थी. मीमा ने कहा कि उन्हें एसएमएचएस के आईसीयू से जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है. लेकिन उन्हें अब भी गहन देखरेख में रखा जा रहा है. निसार की बहन कहती हैं, 'मेरा भाई प्लंबर का काम करता था और पिछले कुछ महीनों से पीठ के दर्द से परेशान था. इस कारण वह बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था. गोली चलने के कुछ दिन पहले ही वो ठीकहुआ था. हमने उसे पुलवामा हॉस्पिटल में शिफ्ट कराया था, जहां से उसे एसएमएचएस भेज दिया गया.'

प्रीचू के मेन मार्केट में कपड़ा सिलने की अपनी दुकान के बाहर बैठे बशीर अहमद बट ने कहा, 'किसी को पता नहीं कि निसार को किसने गोली मारी.' उसने कहा कि किसी ने भी बीजेपी कार्यकर्ता गुलाम अहमद नेन्ग्रू का समर्थन नहीं किया था, 'कोई नहीं जानता कि यहां कौन क्या है?' उसने बीजेपी कार्यकर्ता के बारे में कहा, 'वह यहां अपने दम पर है. कोई भी उसका समर्थन नहीं करता है. मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने यहां किसी तरह की कोई रैली भी नहीं की है.'

पुलवामा के मेन मार्केट में प्रीचू से कुछ किलोमीटर दूर नकाबपोश युवकों ने स्थानीय पुलिस स्टेशन के पास तैनात सुरक्षाबलों पर भारी पत्थरबाजी की. सैकड़ों युवा सड़कों-गलियों में घुस गए. कॉलेज और स्कूल बंद करा दिए गए, बाजार में दुकानों के शटर गिराने के लिए दुकानदारों को मजबूर कर दिया गया था. इसे रोकने और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए ही सुरक्षाबलों ने आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल किया.

प्रतीकात्मक तस्वीर

करीमाबाद में आजादी की भावनाएं गहराई हुई हैं. यह वही करीमाबाद है, जो पिछले साल हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद विरोध-प्रदर्शन का केंद्र रहा था.

23 वर्षीय अकीब अहमद पंडित ने अपने जख्मी हाथों को हवा में लहराते हुए बताया कि पुलिस ने पिछले साल सितंबर में उसके गांव में छापा मारा था. इस दौरान उसके हाथों में चोटें आईं, क्योंकि वह लोहे की चाहरदीवारी से घिरे घर में घुसने की कोशिश कर रहा था. उसने कहा कि पिछले कुछ दिनों में पुलिस और सेना की छापेमारी उन लोगों की तलाश में ज्यादा बढ़ गई है, जिन्हें 'पत्थर चलाने की घटनाओं में फंसा दिया गया है.'

उसने कहा, 'सरकारी सुरक्षाबल हमें बिना किसी कारण के परेशान करते रहते हैं. पिछले साल वो दहाड़ते हुए आए और हमारी खिड़कियां और दरवाज़े तोड़ डाले".

67 साल के बुज़ुर्ग गुलाम नबी ने कहा कि भारत सरकार ने कश्मीर के लोगों को संयुक्त राष्ट्र संकल्प के तहत जनमत संग्रह का अधिकार देने के अपने वादे को पूरा नहीं किया. वो आगे कहते हैं, 'लोग यहां भारतीय शासन से आजादी से कम कुछ भी नहीं चाहते हैं.'

एक दुकानदार रियाज़ पंडित ने कहा, 'अगर चुनाव रद्द नहीं किए गए होते, तो लोग करीमाबाद में चुनाव का बहिष्कार करते. सरकारी सुरक्षा बल हम पर अत्याचार कर रहे है,. वे हमें परेशान कर रहे हैं. वे लोगों को पत्थर चलाने के मामलों में फंसा रहे हैं, जबकि ये लोग उसमें कहीं से भी शामिल नहीं थे.'