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जोयिता मंडल: ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट से लोक अदालत के जज तक का सफर

जोयिता मंडल देश के ट्रांसजेंडर समुदाय के गर्व का प्रतीक बनकर उभरी हैं

FP Staff

जोयिता मंडल देश के ट्रांसजेंडर समुदाय के गर्व का प्रतीक बनकर उभरी हैं. वह नीली बत्ती लगी सरकारी सफेद कार से उतरती हैं. अदालत में आफिस की ओर बढ़ती हैं. फिर जज की कुर्सी पर बैठ जाती हैं. यही वो आफिस है, जहां से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित बस स्टैंड में वह कुछ साल पहले तक जमीन पर सोया करती थीं.

वह पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर जिले के डिंजापुर के राष्ट्रीय लोक अदालत में बैंच जज नियुक्त की गई हैं. संघर्ष और दृढ़इच्छाशक्ति के बूते उन्होंने वह लड़ाई जीत ली है, जो आमतौर पर ट्रांसजेंडर के लिए नामुमकिन होती है.


गुजारे के लिए भीख मांग, नाचा

सफलता की सड़क जोयिता के लिए फूलों की सेज तो कतई नहीं रही. गुजारे के लिए भीख मांगकर गुजारा करना पड़ा. शादी और अन्य समारोहों में अपने समुदाय के लोगों के साथ नाच-गाना करना पड़ा. स्थानीय ट्रेनों में भीख मांगने के दौर से निकलकर उन्होंने जज की कुर्सी तक पहुंचने के लिए लंबा सफर तय किया है.

कॉलेज में फब्तियां कसी जाती थीं

जब वह पैदा हुईं तो उनका नाम जयंता रखा गया. कोलकाता के कॉलेज की पढाई इसलिए बीच में छोड़नी पड़ी, क्योंकि क्लासरूम सहयोगी लगातार फब्तियां कसते थे. क्लास में बैठना दुश्वार हो गया. सामाजिक कार्यकर्ता बन गईं. जिंदगी में जितनी मुश्किलें हो सकती थीं, उन्होंने सबका सामना किया. यूं भी ट्रांसजेंडर को अपने इस समाज में आगे बढ़ने के लिए किसी भी सामान्य शख्स की तुलना में कहीं ज्यादा बाधाओं को लांघना पड़ता है. एक बार उन्हें होटल से बाहर निकाल दिया गया, ये जगह उस अदालत से ज्यादा दूर नहीं है, जहां वह अब जज हैं. उनकी गलती केवल इतनी थी कि वह ट्रांसजेंडर थीं.

वो मुकाम अब पा लिया है

ज्यों ज्यों मुश्किलें बढ़ रहीं थीं. तानों का शिकार बनना पड़ रहा था, वो तय करती जा रही थीं कि पीछे नहीं हटना है. लक्ष्य हासिल करना ही है. वो मुकाम अब उन्होंने पा लिया है. अब लाल पट्टी लगी सफेद कार से वह जज के रूप में उतरती हैं. राष्ट्रीय लोक अदालत में जज की अपनी कुर्सी तक पहुंचती हैं. इस सफलता ने जोयिता को गर्व से भर दिया है. केवल उनका ही सर नहीं उठा है बल्कि उनके पूरे समुदाय और एलजीबीटीक्यू आबादी फख्र महसूस कर सकती है. जोयिता को ये नियुक्ति इस्लामपुर के सब डिविजनल कानूनी सेवा कमेटी ने दी है.

अधिकारों की लड़ाई हुई और मजबूत

जोयिता अब कई सामाजिक कामों से जुड़ी हुई हैं. उन्हें लगता है कि उनके सामाजिक कामों के चलते ही ये पोजिशन उन्हें दी गई है. लोग वाकई इससे खुश हैं. उन्हें बधाइयां मिल रही हैं. उनकी सफलता उनके समुदाय के लोगों में प्रेरणा देने का काम कर रही है. एलजीबीटीक्यू के अधिकारों की लड़ाई में ये एक मील का पत्थर भी है.

ये वाकई शानदार है

जोयिता कहती हैं, ये वाकई शानदार अवसर है. पहली बार किसी ट्रांसजेंडर को ये मौका दिया गया है. सरकार ने जो कदम उठाया है, वो वाकई तारीफ के काबिल है. मैं इस्लामपुर की सब डिविजन कानूनी सेवा कमेटी की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे इस लायक समझा.

हम भी सक्षम हैं, मौका तो मिले

वह कहती हैं, हम किसी से कम नहीं हैं. हम भी किसी भी काम को करने में सक्षम हैं. बस हमें खुद को साबित करने के लिए मौका चाहिए. मैं खुश हूं और गर्व भी है कि ये मौका दिया गया. मैं लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करूंगी और चाहूंगी कि कुछ हटकर करके दिखा पाऊं.

न्यूज़ 18 से साभार