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जेएनयू वाइस चांसलर के नाम छात्र संघ अध्यक्ष का खुला खत

जेएनयू कोई ईंट-गारे की इमारत नहीं जिंदा कौमों की निशानी है

Mohit Pandey

सर,

पिछले 17 जुलाई को रजिस्ट्रेशन की शुरुआती तारीख से मैंने आपको कई पत्र लिखे और इसके जवाब चाहे, आपसे मुलाकात करने की कोशिश की. आप से कई सारे मुद्दों पर बात करनी थी- जैसे कि इस बार एमए में मेरिट लिस्ट नहीं आई है, मेरे समेत कई छात्र-छात्राओं का रजिस्ट्रेशन रूका हुआ था. हालांकि हमेशा की तरह नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा.


आज रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख निकल चुकी है और आपके फरमानी राज के मुताबिक मैं विश्वविद्यालय का स्टूडेंट नहीं हूं. हालांकि मैं अभी भी अपने स्टूडेंट होने के अधिकार को लेकर लड़ रहा हूं. आपसे बार-बार यह पूछना चाहता हूं कि क्या आपकी रूल बुक में यह नियम है कि आप मेरा स्टूडेंट होने का अधिकार ही छीन लें और वो भी इसलिए कि मैंने आपसे कुछ सवाल उठाए हैं?

सर, मुझे मालूम है कि यह मसला बड़ा है, और मेरे या किसी एक स्टूडेंट तक सीमित नहीं है. इसकी एक झलक मुझे तब मिली जब एक कार्यक्रम में कुछ वक्ताओं ने आपके सामने बैठकर, या यूं कहा जाए आपसे हामी भरवाकर जेएनयू पर कब्जा करने, जेएनयू को युद्ध लड़ कर जीतने की बात की. इन लोगों ने अपने हिंसा से भरे बयानों द्वारा जेएनयू की सकारात्मक छवि को किनारे ढकेलने की पूरी कोशिश की.

आपको शायद पता नहीं हो (क्योंकि इस विषय पर आपका कोई ट्वीट नहीं देखा) लेकिन इन अनाप-शनाप बयानों के ठीक तीन दिन बाद हमारे जेएनयू के हजारों छात्र- छात्राओं ने एमफिल/पीएचडी के डिसरटेशंस जमा किए. इन डिसरटेशंस  में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, अर्थव्यवस्था, मीडिया, कला, संगीत, भाषा का महत्व आदि जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों से जुड़े कार्य थे. आने वाले दिनों में ये काम देश के निर्माण में भरपूर सहयोग करेंगे.

आप लोगों के लिए जेएनयू एक ईंट-गारे से बनी हुई इमारत 

मैंने जब आपके टैंक वाले बयान और आपकी मौजूदगी में जेएनयू के खिलाफ दिए गए बयानों के बारे में और गंभीरता से सोचा तो मुझे लगा कि आप लोगों के लिए जेएनयू एक ईंट-गारे से बनी हुई इमारत है. जमीन का एक टुकड़ा है. रूल बुक के कुछ पन्ने हैं, एडमिनिस्ट्रेशन में पड़ी हुई कुछ कुर्सियां हैं और एक टेबल से दूसरे टेबल पर जाने वाले कुछ कागजों का ढेर है. इसे आप कब्जा कर, इसे जीत लेने की घोषणा कर के ढोल पीटना चाहते हैं. लेकिन हम जेएनयू में पढ़ने वालों के लिए ऐसा नहीं है. जेएनयू जिंदा कौमों की निशानी है, असहमति की जुबानी है, फरमानी और तानाशाही के खिलाफ प्रतिरोध है और सोचने वालों की मौजूदगी दर्ज कराने वाली एक जगह है.

यही वजह है कि मैंने आपके फरमानी राज की सविनय अवज्ञा करते हुए अपना फाइन न भरने का फैसला किया है. सर, आपको पता होगा कि आपके प्रशासन ने हम तमाम छात्र-छात्राओं पर अलग-अलग मुद्दों के बारे में सवाल उठाने पर कई सारे केस लगाए हैं. कैंपस में जो भी लोग सवाल पूछते हैं, उनपर किसी न किसी बहाने से केस डाले गये हैं. ये सारे मुद्दे छात्रहितों से जुड़े मुद्दे हैं. हमारे वहां सीटें नहीं हैं, हमारा एक साथी छात्र नजीब अहमद कैंपस से गायब है. उसके साथ मार-पीट करने वालों पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. कैंपस में आरक्षण में कटौती हुई और सामाजिक न्याय के प्रावधानों से छेड़छाड़ हुई.

जेएनयू में पढ़ने वाले छात्र- छात्राओं की स्कॉलरशिप (छात्रवृत्ति) काफी दिनों के बाद आ रही है. ढाबे रात 11 बजे बंद हो रहे हैं, प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है. इनमें से हर एक मुद्दे पर जब भी हम लोग सवाल पूछने या विरोध जताने पहुंचे हैं तब हमको जांच का डर दिखाया जा रहा है. आपने कैंपस के काफी सारे छात्र-छात्राओं पर केवल डराने के लिए झूठी एफआईआर कर रखी है. हद तो तब हो गई जब आपने जेनयूएसयू का बैनर बांधने, अपॉइंटमेंट मांगने पर हम पर जांच बिठा दी है. कुछ मामलों में तो आप जांच पूरी हुए बिना ही हमें सजा दे बैठे.

छात्र हितों और जेएनयू की तरफदारी वाले इन एक भी मुद्दों पर आपकी तरफ से कोई भी सकारात्मक पहल नहीं की गई. क्या आपको पता है कि अगर आप इसी तरह से हम पर फाइन लगाते रहे तो वो लाखों में जाएगा. हम कुछ लोग मजबूरी में फाइन दे भी सकते हैं, लेकिन उन मुद्दों का क्या?

कुर्सियों पर बैठकर रूल बुक के जरिए जेएनयू को चलाया 

आपने 2016 की शुरुआत में जेएनयू ज्वाइन किया. आपके ज्वाइन करने के तुरंत बाद से जेएनयू के छात्र- छात्राओं की जिस तरह से धरपकड़ हुई वो हमने करीब से देखी. उस समय कई सारे पहले के कुलपतियों ने, प्रशासकों ने जेएनयू के बारे में लिखा था. उन लोगों ने भी आपकी ही तरह कुर्सियों पर बैठकर रूल बुक के जरिए जेएनयू को चलाया था, लेकिन इन तमाम लोगों ने जेएनयू में चलते- फिरते, सोचने वाले लोगों के अस्तित्व को भी महत्व दिया था. आज आपने इस सोच की कब्र खोद दी है. जब आपके टैंक और आपके सहयोगियों के कैप्चर वाले बयान पर हो- हल्ला मचा, मैं उस समय नए छात्रों के प्रवेश में मदद कर रहा था. इन नए छात्रों की मौजूदगी, उनके जेएनयू का हिस्सा बनने के उत्साह में मुझे जेएनयू के भविष्य की एक झलक मिली.

मुझे लगा कि जेएनयू के बने रहने के लिए आजादखयाली का बने रहना बहुत जरूरी है. बहुत जरूरी है यहां स्कॉलरशिप वाली नीतियों के लिए प्रतिरोध का जिंदा रहना. बहुत जरूरी है वाद-विवाद, संवाद और सकारात्मकता के जरिए जेएनयू में आने वाले कल को बनाना. लेकिन, आपके मंसूबे इन सबकी हत्या के दिखाई देते हैं और इसीलिए मैं आपके नियमों की सविनय अवज्ञा करता हूं.

मोहित के पांडे