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जेएनयू में स्कूल फॉर संस्कृत और इंडिक स्टडीज में उपजा ताजा विवाद

स्कूल फॉर संस्कृत और इंडिक स्टडीज के जरिए संस्कृत के विशेष केंद्र का स्कूल के रूप में उत्थान की बात ने जेएनयू की गलियों के वैचारिक द्वंद को एक बार फिर सबके सामने ला दिया है.

FP Staff

जेएनयू में स्कूल फॉर संस्कृत और इंडिक स्टडीज की शुरुआत पर दिल्ली स्थित विश्वविद्यालय के शिक्षक खफा हो गए हैं. उनके अनुसार उनकी मायूसी का कारण है कि इस मुद्दे पर विस्तार रूप से चर्चा नहीं कराई गई है.

स्कूल फॉर संस्कृत और इंडिक स्टडीज के जरिए संस्कृत के विशेष केंद्र का स्कूल के रूप में उत्थान की बात ने जेएनयू की गलियों के वैचारिक द्वंद को एक बार फिर सबके सामने ला दिया है.


इसे निर्णय लेने की प्रक्रिया का खुला विरोध बताते हुए खफा शिक्षकों ने आरोप लगाया कि इस पर व्यापक परामर्श तक नहीं हुआ है. जबकि इस बात का खंडन करते हुए एग्जिक्युटिव कॉउसिल ने कहा कि अकादमिक महत्वों के इन मामलों पर कोई व्यापक परामर्श नहीं होता है.

बता दें कि हाल ही में एग्जिक्युटिव कॉउंसिल ने स्कूल फॉर संस्कृत और इंडिक स्टडीज के अनुमोदन के बाद लोगों से ई-मेल के जरिये विचार आमंत्रित किये थे.

स्पेशल सेंटर फॉर संस्कृत स्टडीज के अध्यक्ष प्रोफेसर गिरीश झा ने भी मेल पर विचार आमंत्रित करने की बात कही है.

भाषा नहीं दर्शनशास्त्र है संस्कृत

एग्जिक्युटिव कॉउसिल के एक सदस्य ने कहा कि सेंटर फॉर इंडियन लैंगुएज को स्कूल ऑफ इंडियन लैंगुएज में तब्दील करने का विचार तो हमेशा से रहा था, जिसमें संस्कृत उसका एक हिस्सा हो सकता था. लेकिन वर्तमान चाल वैचारिक उद्देश्यों से प्रेरित है जिसका मानना है कि संस्कृत एक भाषा से बहुत ज्यादा है, बल्कि एक दर्शनशास्त्र है.

जबकि जेएनयू प्रशासन ने दावा किया है कि संस्कृत के लिए एक विशेष केंद्र तो पहले से ही था लेकिन अब यह एक स्कूल है. जो इस संस्थान को भाषा के विस्तार और अध्यन को बढ़ावा देने के लिए अधिक शक्ति देती है.