जेएनयू, नाम ही काफी है. बाकी सब खुद ही लोग समझ लेते हैं. बुधवार रात मौका मिलते ही मैं भी छात्र संघ चुनावों से पहले होने वाली नामचीन प्रेसिडेंशियल डिबेट देखने गया. मंचस्थल की डी में खड़ा हुआ मैं हतप्रभ था. छात्रों के झुंड़ मधुमक्खी के छत्तों की तरह नजर आ रहे थे. पैर रखने की भी जगह नहीं.
सारे उत्साहित और जोश से भरे हुए! चाहे बाप्सा हो, आईसा हो या एबीवीपी, हर तरफ भरपूर ऊर्जा. कोई ढपली, कोई डमरू, कोई ड्रम तो कोई शंखाकार बाजा लेकर मैदान में था. भाषण से पहले ही माहौल गर्म था. हर गुट दूसरे पर भारी पड़ता नजर आ रहा था. छात्रों का एक बड़ा वर्ग वह भी था जो इन समूहों के चारों तरह घेरा बनाए इनका उत्साहवर्धन कर रहा था.
भाषणों की शुरुआत हुई और कई आए और चले गए, मंच पर जब साढ़े तीन फीट का एक दिव्यांग छात्र पहुंचा तो मैंने और कई ने जो उसे नहीं जानते थे, हैरत से देखा. दरअसल वह निर्दलीय ही अध्यक्ष का चुनाव लड़ने आया था.
भाषण की शुरुआत से जो तालियां उसे मिलीं वो अंत तक किसी दिग्गज वक्ता को नहीं मिलीं. ऐसा लग रहा था तब कि बाकी गुटों के प्रत्याशी अपने एजेंडे पर जान लड़ा रहे थे और ये जनाब जेएनयू की अवाज उठा रहे है. फारुख आलम नाम के इस छात्र ने अपनी हर लाइन पर सबको चौंकाया.
एक संगठन को लताड़ता तो दूसरी तरफ से बज रही थी ताली
आलम चिल्लाता, नारे लगाता और इन संगठनों को लताड़ता भीड़ जोरदार तालियां बजाती. अजीब हालात तब होने लगते जब वो एक संगठन को लताड़ता तो दूसरे ताली बजाते और वह ठिठकता और कहता- अच्छा बहुत ताली बजा रहे हो तुम लेफ्ट वालों, अभी मैं तुम पर भी आता हूं. माहौल फिर हंसी के ठहाकों से भर जाता. प्रेसिंडेशियल डिबेट का शो स्टीलर दरअसल आलम ही रहा.
उसने लेफ्ट को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आप तो जब भी कोई मुद्दा उठता है तो सेल्फी खींचने में लग जाते हैं आपको कुछ नहीं चाहिए सिर्फ एक स्मार्टफोन और उसमें फेसबुक. आप दिखावा करते हो. फिर पूरा माहौल तालियों से भर जाता है... लेफ्ट की खिंचाई देख बाप्सा के लोग ताली बजाना शुरू कर देते हैं...इस बीच आलम फिर चिल्लाता है...रुको तुम बाप्सा वालो मैं तुम्हारी भी पोल खोलता हूं. बताओ.. हर मुद्दे पर रोड़ा डाल कर शकुनी का काम क्यों करते हो, फिर जोरदार तालियां बजने लगती हैं.
अंत में आलम ने एबीवीपी को निशाना बनाते हुए कहा कि आप भी बहुत खुश हो रहे तो बताओ नजीब को कहां गायब किया. आप भारत माता की बात करते हो ...मैं कहता हूं कि अगर तुम्हारी भारत माता में नजीब की मां और मेरी मां शामिल नहीं है तो मैं उसे भारत मां नहीं मानता. फिर जोरदार तालियों से पूरा माहौल गूंज उठा.
जेएनयू के कई मुद्दों पर रखी बेबाक राय
आलम ने पूछा कि मैं 5 साल से यहां हूं लेकिन दिव्यांगों के पक्ष में एक पर्चा तक नहीं लिखा गया. यहां मुथुकृष्ण खुदकुशी कर लेता है लेकिन कोई उसके बारे में बात नहीं करता.
जाने-अनजाने उसने हर संगठन को अहसास कराया कि मुद्दों की लाइन नहीं होती वो सीधे सरल और हल करने के लिए सबके सामने आते हैं न कि उस पर राइट और लेफ्ट का कलर डालने के लिए. डिबेट में सबसे कमजोर पैरवी एनएसयूआई की वक्ता की ओर से दिखाई दी. एबीवीपी, लेफ्ट यूनिटी पैनल और बाप्सा की ओर से अपने बात मजबूती से रखी गई.