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झारखंड: 16 लड़कों ने किया आदिवासी युवती से गैंगरेप

हैवानों ने युवती और उसके दोस्त की गर्दन पर चाकू रखा फिर 6 लड़कों ने सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया

Brajesh Roy

वो चीखती रही, चिल्लाती रही, मिन्नतें करते-करते कई दफा सुध भी खो बैठी, फिर भी हैवानियत के ठेकेदारों ने अपनी मनमानी को नहीं छोड़ा. झारखंड के दुमका में एक आदिवासी बेटी की अस्मत को हैवानो ने तार-तार कर दिया.

8 गांव के 16 लड़कों ने तीन दिन पहले शाम के वक्त मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना को अंजाम दिया. 17 नामजद अभियुक्तों में से 16 की गिरफ्तारी पर पुलिस ने वाहवाही भी लूट ली.


उधर अस्पताल में इलाजरत पीड़ित बेटी ने मांग की है कि उसे मौत मिल जाए, अब इस पीड़ा के साथ वो आगे की जिंदगी नहीं काट सकती.

घटना ऐसी कि कलेजा मुंह को आ जाए. हम और आप ऐसी घटना के बाद एक बार फिर यह सोचने पर विवश हैं कि आखिर हमारी बेटियों के साथ हैवानियत की ये घटनाएं क्यों नहीं थमती ? ऐसी क्या चूक हो रही है हमसे कि इस तरह की घटनाएं बदस्तूर आज भी जारी हैं.

पीड़िता का बयान हमारी व्यवस्था पर तमाचा है 

झारखंड की उपराजधानी दुमका में शाम के वक्त मोटरबाइक शोरूम में काम करने वाली वह 19 वर्षीय युवती अपने दोस्त के साथ दिग्धी की तरफ घूमने निकली थी. शहर से महज दो ढाई किमी के दायरे में ही वो अपने दोस्त के साथ सड़क किनारे बैठकर बातें कर रही थी. इतने में ही वहां 6 युवक आ गए और उन सबने युवती और उसके दोस्त से मोबाइल फोन छीनते हुए पांच हजार रुपए की मांग की.

इस दौरान उन्होंने युवती से छेड़खानी शुरू कर दी. इतना ही नहीं फोन करके अपने कई साथियों को उन युवकों ने बुला भी लिया. देखते ही देखते 16-17 लड़के वहां इकट्ठा हो गए. सभी ने युवती के दोस्त की पहले खूब पिटाई की. इसके बाद युवती और उसके दोस्त की गर्दन पर चाकू रखा फिर युवती के साथ 6 लड़कों ने सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया.

इस दौरान बाकी के हैवानों ने अपने फोन से वीडियो बनाने का काम किया. इसके बाद नग्न युवती को तालाब में ले जाकर नहलाया, फिर उसके दोस्त के पास छोड़ कर सभी अपनी बाइक स्कूटी से आराम से चलते बने. शाम 6 बजे से लेकर यह कुकृत्य लगभग आधी रात तक चलता रहा.

हैवानों के चले जाने के बाद बेसुध नग्न पड़ी युवती को उसके दोस्त ने अपने कपड़े पहनाए. किसी तरह दोनों अस्पताल पहुंचे. जब यह खबर अस्पताल से पुलिस और फिर आम लोगों तक पहुंची तो सबके होश उड़ गये.

पीड़ित युवती तो अगले दो दिन तक लगभग बेहोशी की हालत में ही रही. शारीरिक से कहीं ज्यादा उस बेटी ने जो मानसिक पीड़ा झेली उसने उसको तोड़ दिया. यही वजह है कि अब वो इस समाज की व्यवस्था में आगे जिंदगी नहीं जीना चाहती.

परंपरा के अनुकूल घटना के बाद जो पुलिसिया अनुसंधान चलता है वह प्रक्रिया इस मामले में भी जारी है. जिला के एसपी मयूर पटेल ने शुक्रवार को प्रेस कांफ्रेंस कर 16 नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना दी. पुलिस ने अपनी उपलबद्धियों की बानगी पेश करते हुए तस्वीर भी खिंचवायी.

यहां पुलिस कप्तान ने यह भी कहा कि आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा के लिए वह हर संभव प्रयास करेंगें. लेकिन पुलिस कप्तान ने इस दौरान ये नहीं कहा कि आगे से इस तरह की घटनाएं नहीं होंगी. दरअसल पुलिसिया लचर व्यवस्था और प्रशासनिक अक्षमता ही ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देती हैं. अपराधी सपने में भी किसी हरकत के विषय में नहीं सोच सकते यदि हमारी व्यवस्था में सेंध न हो.

बेबीलोन के शासक हमुराबी के संविधान को याद करने की जरूरत 

समय के हिसाब से इस तरह की घटनाओं के मद्देनजर एक बार दुनिया के पहले लिखित संविधान की चर्चा होनी ही चाहिए. बेबीलोन के शासक हमुराबी ने न केवल दुनिया को पहला लिखित संविधान दिया था बल्कि उसका पालन भी कठोरता के साथ वह करवाता था.

‘जैसे को तैसा’ सिद्धांत पर आधारित हमुराबी के संविधान के तहत यदि कोई मकान अपने निर्धारित सुनिश्चित अवधि के पहले गिर जाए और उससे किसी व्यक्ति का पैर टूट जाए तो बदले में मकान बनाने वाले कारीगर को ढूंढ कर उसके भी पैर तोड़ दिये जाएं.

असर भी हुआ, कहा जाता है कि हामुरबी के शासन काल में सोने जवाहरात से लदी एक बुढ़िया भी घने जंगलों से सुरक्षित गुजर जाया करती थी. खैर, इस प्रसंग की चर्चा इसलिए कि इतिहास को कभी कभी जरूर पढ़ा जाए.

आखिर क्यों नहीं थम रही हैं ऐसी घटनाएं? 

वैसे तो पूरा देश ही ऐसी घटनाओं से बार-बार शर्मसार होता रहा है. झारखंड के संदर्भ में कुछ बातें थोड़ी हटकर प्रतीत होती दिखाई पड़ती हैं. सबसे पहली बात यह है कि यहां अपराधी बेखौफ हो चुके हैं. अपराध की मनोवृति ने उनकी मानसिकता को कुंद कर दिया है और इसके पीछे पुलिस का नकारात्मक रवैया है.

पुलिस के माध्यम से जो कानून का डर होना चाहिए वो पीछे छूटता दिखाई दे रहा है. अपने नैसर्गिक कार्य से परे ऊपरी उगाही और नेताओं की मक्खनबाजी की पहचान बनती जा रही है पुलिस की.

इतना ही नहीं लाख कागजी दावे के बावजूद पुलिस सहयोगी की भूमिका में नजर नहीं आती. सिर्फ पुलिस ही नहीं प्रशसनिक अधिकारी भी ऐसे प्रयासों को लेकर उदासीन नजर आते हैं.

खास तौर युवाओं को लेकर जो योजनाएं बननी चाहिए वो फिलवक्त तक हवा हवाई ही प्रतीत होतीं हैं. रांची की मनोचिकित्सक डॉ उषा नरसरिया कहतीं हैं ‘इस तरह की घटनाओं पर नकेल कसने का सबसे सही उपाय है युवाओं को जागरूक करना, उन्हे रोजगार से जोड़ना.

साथ ही पुलिस को  युवाओं के लिए मानसिक प्रशिक्षण की योजना पर भी कार्य करना चाहिए.’ मनोचिकित्सक की राय इस संदर्भ में तार्किक ही नहीं लाभकारी भी है.

कहां चूक रही है हमारी व्यवस्था 

दरअसल राजनीतिक बदलाव के साथ सामाजिक विकास और बदलाव को आज भी हम सहज तरीके से समझ नहीं पा रहे हैं. देश के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजनाओं और घोषणाओं की लंबी कतार लगा दी है. उसी तरह झारखंड के मुख्यमंत्री लगभग उसी तर्ज पर अपने शासन में ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारों को बुलंद करने की कोशिश में दिन रात जुटे दिख रहें हैं. बावजूद इसके चूक हो रही है.

सरकार की इच्छा शक्ति अभी भी पूरी तरह से जमीनी धरातल से कोसो दूर है. शहर में लोगों को मीडिया और प्रचारतंत्र के माध्यम से सरकारी प्रयासों की कुछ जानकारी हो जाती है. लेकिन जंगल पहाड़ों से घिरे गांव कस्बो तक विकास की यह कवायद पहुंच ही नहीं पा रही है.

शिक्षित समाज की परिकल्पना, युवाओं का पलायन, उनकी बेरोजगारी, और उनका कौशल विकास, फिलहाल ये देखने को नहीं मिल रहा है. हां यहां रघुवर की सरकार ने पहल जरूर कर दी है पर शायद उसे गांव तक पहुंचने में अभी वक्त लगेगा.

बहरहाल, सरकारी प्रयासों के साथ प्रशासनिक सूझ बुझ अब अपने लिए लगे यह जरूरी है. हमारे युवाओं में अपने लिए विश्वास जगे, यह जरूरी है. हमारी बेटियां सुरक्षित और चेहरे पर मुस्कान लिए सबल हों, अब यह जरूरी है. झारखंड के दुमका की घटना सीख है, एक सबक है, इसे याद रखना भी आगे जरूरी है.