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जेईई की इस टॉपर को आईआईटी नहीं जाना

वृंदा राठी की रूचि इंजीनियरिंग के बजाए रिसर्च में अधिक है.

Namrata Mishra Tiwari

जेईई की पढ़ाई, बास्केटबॉल, फुटबॉल और बांसुरी वादन. 17 साल की वृंदा राठी को ये चारों समान रूप से पसंद है. लेकिन, उनकी एक और पसंद जानकर यकीनन आप अचरज में पड़ जाएंगे.

महाराष्ट्र के नासिक की वृंदा ने जेईई परीक्षा में ऑल इंडिया रैंकिंग 71 पाकर लड़कियों में प्रथम स्थान पाया है. लेकिन, हैरानी की बात यह है कि अपनी उम्र के दूसरे युवाओं की तरह वृंदा आईआईटी नहीं जा रहीं. हालांकि उनके लिए जहां चाहें उस आईआईटी संस्थान में प्रवेश लेना आसान हो गया है. लेकिन, आईआईटी जाना उनके लक्ष्य में कभी शामिल नहीं रहा.


वृंदा को शोध कार्यों में रूचि है और उन्होंने बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएस) में दाखिला लेना तय किया है.

वृंदा राठी

रिसर्च बनाम इंजीनियरिंग की जंग में हमेशा रिसर्च पिछड़ती रही है. छात्र इंजीनियरिंग और उसमे भी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) को हमेशा ज्यादा तरजीह देते रहे हैं. क्या इसके पीछे आईआईटी का हाइप है, ग्लैमर है या रिसर्च के प्रति अवेयरनेस की समस्या है.

रिसर्च में जॉब की उतनी संभावनाएं नहीं

क्या रिसर्च के लिए आकर्षण की कमी इसलिए है क्योंकि, जरूरी धीरज की कमी है ? इसपर वृंदा कहती हैं, अवेयरनेस की समस्या नहीं लगती क्योंकि, सरकार की कई योजनाएं हैं. सरकार स्कॉलरशिप देती है. रिसर्च फील्ड के बारे में लोग जानते हैं क्योंकि, किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना की परीक्षा तो सभी देते हैं फिर भी लोग नहीं जाते हैं. इसलिए क्योंकि, उन्हें यहां रिसर्च में जॉब की उतनी संभावनाएं शायद नहीं लगती और उधर, आईआईटी के बाद बड़े पैकेज मिलते हैं.

वृंदा राठी

वृंदा को गणित में रूचि रही है. नासिक में नॉन रूटीन मैथेमेटिक्स की क्लास में जाती थीं. वहां के टीचर बताते थे कि उनके किन-किन छात्रों ने गणित में शोध कार्य किया. आईआईएससी में कौन से विषय में रिसर्च करना यह अभी तय नहीं किया है. वहां तीन सेमेस्टर के बाद तय करना होता है.

जेईई परीक्षा की तैयारी के दौरान वृंदा के 6 घंटे कोचिंग में गुजरते थे. बाकी घर में कुछ पढ़ाई होती थी. आठवीं कक्षा में बांसुरी से दोस्ती हो गई. ये दोस्ती इतनी मजबूत थी कि, वृंदा ने बाकायदा बांसुरी बजाने का क्लास लगा लिया. एक साल पहले तक ये सिलसिला जारी था लेकिन, पढ़ाई के चक्कर में बांसुरी क्लास छोड़नी पड़ी. बांसुरी से तनाव कम होता है लेकिन वृंदा इसमें मेडिटेशन के लाभ पाती हैं.

बांसुरी बजाना मेडिटेशन के जैसा है

वृंदा कहती हैं, उनके लिए बांसुरी बजाना मेडिटेशन के जैसा है. दिमाग में इतने सारे विचार होते हैं कि, उन्हें दूर करना मेडिटेशन से भी मुश्किल लगता है. संगीत से यह आसान हो जाता है. रिलैक्स होना आसान हो जाता है.

वृंदा राठी

वृंदा की मां कृष्णा राठी आर्किटेक्ट हैं और आर्किटेक्चर कॉलेज में पढ़ाती भी हैं. पैरेंट के लिए बच्चे जैसे हैं वैसे उन्हें स्वीकार करना और फिर आगे बढ़ना ज्यादा जरूरी मानती हैं. वह बताती हैं कि, खेल कूद जरूरी है, इससे बच्चे खराब नहीं होते. खुद को रिफ्रेश करने के लिए एक घंटे बास्केटबॉल और फुटबॉल खेलना भी वृंदा की दिनचर्या में शामिल था.

इसी रूटीन को संभालते हुए 21 मई को होने जा रहे अडवांस्ड एग्जाम के लिए उनकी तैयारी शुरू है.